राजेश बैरागी
आपने अपने आसपास पैरोल या फरलो पर आए हुए कितने दोषसिद्ध अपराधियों को देखा है? मेरा अनुभव शून्य है। एक रिपोर्ट के अनुसार देश के कारागारों में उनकी क्षमता से कई गुना कैदी बंद हैं। सजायाफ्ता कैदियों को समय पूर्व रिहा करने पर विचार किया जा रहा है। फिर भी प्रयास यही है कि समाज और देश के लिए संकट उत्पन्न करने वाला कोई बंदी रिहा नहीं किया जाना चाहिए। सजा पाए कैदियों को मानसिक संतुलन व सामाजिक परिवेश से जोड़े रखने के लिए पैरोल और फरलो की व्यवस्था की गई है। फरलो कैदी का अधिकार है जबकि पैरोल प्रदान करना प्रशासन का विवेकाधिकार है। परंतु दोनों ही सुविधाएं कितने लोगों को प्राप्त होती हैं।
इसीलिए आम सजायाफ्ता कैदियों को बामुश्किल ही पैरोल या फरलो पर घर आते देखा जाता है। परंतु वह आम आदमी नहीं है।उसे इसी वर्ष एक फरलो 21 दिन और दो पैरोल 30 व 40 दिन के लिए मिल चुकी हैं। उसपर हत्या, दुष्कर्म के दोषसिद्ध आरोप हैं। वह 2017 से जेल में हैं। क्या उसे जेल में अन्य कैदियों जैसी सजा काटनी पड़ रही है? इसकी पुष्टि कौन कर सकता है। परंतु सरकार की मेहरबानी उसे हासिल है। उसके अनुयाई मतदाता भी हैं। इसी बूते वह जब चाहे अपने ठिकाने पर चला आता है। हत्यारे और दुष्कर्मियों को फूटी आंख न देखने का दावा करने वाले मुखिया के राज्य की पुलिस उसके लिए रक्षा प्रबंध करती है।मेरी आंखें बुलडोजर की राह देखते उनींदी हो चली हैं। इसलिए मैं सिर नीचा करके जपनाम-जपनाम का उच्चारण करने लगा हूं।