ममता के लिए हामी में छिपा ’25’ का राज!, क्या समझेंगे राहुल
दीपक कुमार तिवारी
पटना/नई दिल्ली। लालू यादव कांग्रेस के प्रति इतनी बेरुखी दिखाएंगे, सोनिया गांधी या राहुल ने कभी सपने में न सोचा होगा। विपक्षी खेमे के दूसरे दलों से कांग्रेस के शीर्षस्थ इन दोनों नेताओं को भले कोई उम्मीद नहीं रही हो, लेकिन लालू यादव से उन्हें ऐसी उम्मीद नहीं थी। पहले तेजस्वी यादव ने ममता बनर्जी को ‘इंडिया’ ब्लॉक का नेता बनने पर सहमति दी तो अब लालू यादव ने भी इस पर मुहर लगा दी है। लालू ने भी कहा है कि ममता बनर्जी को ‘इंडिया’ ब्लॉक का नेता बनना चाहिए। लालू के कांग्रेस से जैसे रिश्ते रहे हैं, वैसे में यकीनन यह बात कांग्रेस नेताओं को हैरतअंगेज लगी होगी।
लालू यादव और गांधी परिवार के रिश्ते नए नहीं हैं। सच कहा जाए तो लालू ने उस वक्त गांधी परिवार का साथ दिया है, जब उसके साथ खड़ा होने में कांग्रेस के लोग भी कतरा रहे थे। दरअसल लालू की कांग्रेस से नजदीकी तब बढ़ी थी, जब उन्होंने राम मंदिर के लिए यात्रा पर निकले लालकृष्ण आडवाणी का ‘रथ’ बिहार में रोक दिया था। ऐसा लालू ने तब किया था, जब उसी साल 1990 में भाजपा की मदद से लालू मुख्यमंत्री बने थे। सोनिया गांधी ने जब कांग्रेस की कमान संभाली और कांग्रेस को केंद्र में सरकार बनाने का मौका मिला तो विदेशी मूल के सवाल पर उनका खूब विरोध हुआ। विरोध करने वाले भाजपा के लोग तो थे ही, कांग्रेस के भीतर भी सोनिया पर नेता बंटे हुए थे। लालू ने सदन में सोनिया का साथ दिया था।
ज्यादा पीछे न भी जाएं तो 2023 में राहुल गांधी को जब मानहानि मामले में सर्वोच्च अदालत से राहत मिली तो वे सबसे पहले लालू यादव से मिलने ही गए। उन दिनों लालू किडनी ट्रांसप्लांट के बाद अपनी बेटी मीसा भारती के दिल्ली स्थित आवास पर रह रहे थे। वहां न सिर्फ लालू ने उन्हें राजनीति के मंत्र दिए, बल्कि बिहारी स्टाइल में बने मटन की दावत भी दी। फिर तो लालू के घर राहुल की आवाजाही शुरू हो गई। राहुल गांधी अपनी ‘भारत जोड़ो न्याय’ यात्रा के क्रम में जब बिहार आए तो लालू के बेटे तेजस्वी यादव ने उनके ड्राइवर की भूमिका भी निभाई थी।
हाल के वर्षों में राहुल गांधी को प्रोजेक्ट करने का दूसरा मौका लालू को तब मिला, जब विपक्षी एकता के लिए पटना में गैर भाजपा दलों की पहली बैठक हुई। लालू ने राहुल गांधी को शादी कर लेने की सलाह के बहाने उन्हें विपक्षी गठबंधन के नेता के रूप में प्रोजेक्ट किया था। लालू ने कहा था कि राहुल शादी करें तो विपक्ष के तमाम नेता उनकी बारात में शामिल होने को तैयार हैं। नीतीश कुमार ने तब महागठबंधन के नेता के रूप में विपक्षी नेताओं को एक मंच पर जुटाया था।
राहुल की राह में नीतीश कुमार बाधक न बनें, इसके लिए भी लालू ने गजब की चाल चली। तब यह चर्चा जोरों पर थी कि नीतीश कुमार विपक्षी गठबंधन के संयोजक बनेंगे। लालू ने कहा कि कांग्रेस गठबंधन का नेतृत्व करेगी तो संयोजक की जरूरत ही क्या है। हालांकि इसका ठीकरा राहुल गांधी ने ममता बनर्जी के सिर फोड़ दिया था कि वे ही नीतीश को संयोजक बनाना नहीं चाहतीं।
लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के नेतृत्व को कामयाबी नहीं मिली। ‘इंडिया’ ब्लॉक सरकार बनाने से चूक गया। भाजपा ने बहुमत न होते हुए भी साथी दलों की मदद से सरकार बना ली। उसके बाद हुए हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में विपक्षी गोलबंदी कारगर साबित नहीं हुई। कभी आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल बिदके तो कभी समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव नाराज हुए। ममता ने लोकसभा चुनाव में ही विपक्षी गठबंधन से किनारा कर लिया था। जिस उत्साह से विपक्षी गठबंधन ने आकार लिया, उस पर चुनाव परिणामों ने पानी फेर दिया।
ममता बनर्जी को मौका मिल गया और उन्होंने गठबंधन के नेतृत्व को नाकार बताते हुए खुद लीड करने का शिगूफा छोड़ दिया। उसके बाद तो शरद पवार, उद्धव ठाकरे, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव ने बारी-बारी से ममता का समर्थन कर दिया। लालू और तेजस्वी उस स्थिति में नहीं हैं कि अलग राग अलापते। इसलिए मन-बेमन से उन्होंने भी ममता के प्रस्ताव पर सहमति दे दी है।
हालांकि लालू-तेजस्वी के कांग्रेस से मुंह मोड़ने के पीछे दूसरी वजह बताई जाती है। अगले साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की मनमानी से बचने का लालू-तेजस्वी को मौका मिल गया है। तेजस्वी को मालूम है कि बिहार में कांग्रेस कोई करिश्मा करने की स्थिति में नहीं है। 2020 के चुनाव में कांग्रेस ने लालू को पटा कर जरूरत से अधिक सीटें ले ली थीं, लेकिन जीत का स्ट्राइक रेट वैसा नहीं था। दर्जन भर सीटों के कारण तेजस्वी सीएम बनने से चूक गए थे। इस बार तेजस्वी कांग्रेस को उतना भाव देने के मूड में नहीं हैं।
कांग्रेस ने पहले से ही विधानसभा चुनाव में सीट शेयरिंग का जो फॉर्मूला बनाया है, उसमें आरजेडी उलझ सकता है। लोकसभा में 9 सीटों पर लड़ कर कांग्रेस ने तीन सीटें जीती हैं, जबकि आरजेडी ने 23 पर लड़ कर सिर्फ चार सीटें जीतीं। कांग्रेस जीत के स्ट्राइक रेट को बिहार विधानसभा के चुनाव में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला बनाना चाहती है। बिहार कांग्रेस प्रभारी शाहनवाज आलम ने दो दिन पहले ही पार्टी मीटिंग में कहा था कि ‘इंडिया’ ब्लॉक में कोई बड़ा भाई या छोटा भाई नहीं है। हाल के लोकसभा चुनाव में जिस पार्टी का जो स्ट्राइक रेट रहा है, उसी आधार पर सीटों का बंटवारा होगा।