संघर्ष की मिसाल हैं KFC के फाउंडर कर्नल सैंडर्स

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अच्छा आपने कभी सोचा है कि एक इंसान आखिर कितनी बार हार सकता है? 10 बार, 20 बार या ज्यादा से ज्यादा 100 बार? लेकिन इतनी बार फेल होने के बाद भी कोई शख्स टूटे ना, तो ऐसे लोग बहुत ही कम देखने को मिलते हैं। ऐसे ही उदाहरण की मिसाल हैं KFC के फाउंडर कर्नल सैंडर्स, जिन्हें 10, 20 या 100 बार नहीं बल्कि 1009 बार निराशा हाथ लगी। जिस उम्र में लोग रिटायरमेंट लेते हैं, उस उम्र में इनका करियर शुरू हुआ था।

तो हम बात कर रहें है कर्नल हारलैंड सैंडर्स की जिन्होंने कई ना सुनने के बाद खड़ा किया खुद का KFC एंम्पायर. सैंडर्स ने 65 साल की उम्र में KFC की शुरुआत की थी। तो इन सब के अलावा आइए जानते हैं कैसे एक के बाद एक कर्नल सैंडर्स को मिलती रहीं असफलताएं और फिर एक दिन चमक उठी किस्मत। बात करते है कर्नल हारलैंड सैंडर्स की तो इनका जन्म 1890 में अमेरिका के इंडियाना में हेनरीविले में हुआ था। 6 साल की उम्र में ही इनके पिता की मौत हो गई थी। घर के हालात जब खराब हुए तो इनकी मां ने एक फैक्ट्री में काम करना शुरू किया और सैंडर्स अपने छोटे भाई-बहन की देखभाल करने लगे थे। बता दें कि सिर्फ 7 साल की उम्र में ही उन्होंने अच्छा खाना बनाना सीख लिया था। तो वही जब सैंडर्स 12 साल के हुए तो उनकी मां ने दूसरी शादी कर ली।

शादी के बाद उनके सौतेले पिता को हारलैंड सैंडर्स पसंद नहीं थे, जिसके चलते वह अपनी आंटी के पास रहने लगे थे और फिर एक फार्म में काम करने लगे। बता दें कि सैंडर्स उस समय सातवीं कक्षा में पढ़ते थे और उन्होंने सातवीं में ही पढ़ाई छोड़ दी थी। पढ़ाई छोड़ने के बाद वो तमाम तरह के काम करने लगे। इसके बाद फिर वो सेना में भर्ती हुए, लेकिन किस्मत कुछ ऐसी बुरी निकली के उन्हें वहां से निकाल दिया गया। कुछ समय बाद फिर उन्होंने रेलवे में काम किया। सैंडर्स ने करीब 19 साल की उम्र में ही शादी कर ली थी। बता दें कि उन्हें रेलवे की नौकरी भी रास नही आयी और रेलवे में काम करते हुए कुछ विवाद के चलते उन्होंने रेलवे की नौकरी छोड़ दी, जिसके बाद उनकी पत्नी भी बच्चों को लेकर उनसे अलग हो गईं। सैंडर्स ने अपने जीवन में ऐसे बहुत से तमाम छोटे-मोटे काम किए थे।

कभी इंश्योरेंस बेचा, तो कभी क्रेडिट कार्ड बेचे। यहां तक कि टायर भी बेचे, लैंप बनाने और नाव चलाने जैसे कामों में भी उन्होंने हाथ आजमाया। लेकिन उनकी कहीं भी दाल नहीं गल सकी। तो अब आपको आगे बता दें कि सैंडर्स की जिंदगी 1930 में पहली बार पटरी पर आती दिखी, जब उन्होंने केंटकी के कॉर्बिन में एक गैस स्टेशन खरीदा। लेकिन वही बहुत से लोगों ने उनसे कहा कि वो एक रेस्टोरेंट भी खोल लें। आपको बता दें कि सैंडर्स को चिकन के लिए प्यार बचपन से ही था। तो वही ऐसे में वो रेस्टोरेंट में तमाम तरह के खास रेसिपी वाले चिकन बेचने लगे। देखते ही देखते उनका ये काम चल निकला और उनकी मोटी कमाई होने लगी। यहीं पर एक दिन केंटकी के गवर्नर 1950 में आए थे। जब उन्होंने सैंडर्स का चिकन खाया तो उन्हें वह बहुत पसंद आया। फिर क्या था, उन्होंने हारलैंड सैंडर्स को कर्नल की उपाधि दे दी और तभी से उन्हें कर्नल सैंडर्स के नाम से जाना जाता है।

कर्नल की उपाधि देश का बहुत ही सम्मानित टाइटल माना जाता है। कहते है न की कामयाबी साथ में थोड़ी दिक्कतें भी लाती है तो ठीक सैंडर्स के साथ भी ऐसा ही हुआ था. बता दें कि सैंडर्स का जहां पर रेस्टोरेंट था, वहां से एक हाईवे निकलने के चलते उनका रेस्टोरेंट टूट गया और फिर इसके बाद उनके संघर्षों का एक और सिलसिला शुरू हुआ। तो वही सैंडर्स ने सोचा की क्यों ना किसी रेस्टोरेंट को अपनी रेसिपी दी जाए और बिक्री पर मुनाफा कमाया जाए। इसी सोच के साथ उन्होंने तमाम रेस्टोरेंट में जाकर अपनी फ्राइड चिकन रेसिपी को बेचने की डील करनी शुरू की। सैंडर्स जहां जाते वहां से उन्हें निराशा ही हाथ लगती और उन्हें 1009 बार उन्हें ‘ना’ सुनना पड़ा। लेकिन इन सब के बावजूद भी उन्होंने बार नही मानी और इसके बाद उन्हें पहली ‘हां’ सुनने को मिली और यहां से शुरू हुआ कर्नल हारलैंड सैंडर्स KFC की कामयाबी का सफर।

तो भई बहुत ना सुनने के बाद जब कर्नल सैंडर्स को एक रेस्टोरेंट ने हां कर दी तो वो अपना चिकन वहां बेचने लगे और मुनाफे पर कुछ फायदा लेने लगे। वो रेस्टोरेंट को मसाले का पैकेट भेजते थे, जिससे उनकी रेसिपी खुफिया रही और साथ ही लोगों को बेहतरीन स्वाद भी मिला और फिर यही से KFC फेमस होने लगा। इसके बाद 1963 में अक्टूबर महीने में एक वकील जॉन वाई ब्राउस जूनियर और व्यापारी जैक सी मैसी ने सैंडर्स से मुलाकात की और KFC के फ्रेंचाइजी राइट्स खरीदने की इच्छा जताई। शुरुआत में सैंडर्स तो वह मना करते रहे, लेकिन बाद में जनवरी 1965 में उन्होंने 2 मिलियन डॉलर में KFC फ्रेंचाइजी को बेच दिया।

KFC फ्रेंचाइजी डील के तहत सैंडर्स और उन लोगों में ये बात पक्की हुई कि केंटकी फ्राइड चिकन कंपनी अपने खुद के रेस्टोरेंट दुनिया भर में बनाएगी और कभी भी क्वालिटी के साथ किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं करेगी, और साथ ही सैंडर्स को पूरी जिंदगी 40 हजार डॉलर की सैलरी दिए जाने की भी डील हुई। बाद में फिर उनकी सैलरी को बढ़ाकर 75 हजार डॉलर कर दिया गया था। इसके बाद उनकी कंपनी रेनॉल्ड्स और पेप्सिको समेत कई हाथों में गई और अभी इस कंपनी का मालिकाना हक ‘यम ब्रांड्स इनकॉर्पोरेशन’ के पास है। कर्नल सैंडर्स की मेहनत आखिरकार रंग लाई और वो दुनिया के लिए मिसाल बन गए. बता दें कि कर्नल सैंडर्स की मौत 1980 में 90 साल की उम्र में हुई। आज कर्नल सैंडर्स दुनिया में नहीं हैं, लेकिन KFC पर खास दाढ़ी और वेस्टर्न टाई के साथ उनका चेहरा आज भी मौजूद है और जो KFC का चिकन खाने वालों को उन्हें भूलने नहीं देता। आज के समय में KFC की फ्रेंचाइजी 150 से भी ज्यादा देशों में 22 हजार से भी ज्यादा हैं।

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