Judge and Magistrate : जज और मजिस्ट्रेट में अंतर समझिए।

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Judge and Magistrate : मशहूर फिल्म Jolly LLB में सौरभ शुक्ला जज का किरदार निभाते हुए बड़ी पत्ते की बात करते है कि भारत की अदालतों में लाखों मामले Pending है, लेकिन इसके बाद भी एक आम आदमी विवाद होने पर कोर्ट में देख लेने की धमकी देता है क्योंकि उस आदमी का कोर्ट में काफी गहरा भरोसा होता है, और आज हम उसी कोर्ट की बात करेंगे उसके काम करने के तरीके को समझेंगे।

आप सभी ने कभी न कभी खबरों को पढ़ते या देखते समय मजिस्ट्रेट, जज (Judge and Magistrate) का नाम सुना होगा, हम सभी को दोनो एक जैसे ही लगते है क्योंकि दोनो के काम लगभग एक जैसे है, लेकिन इनके बीच कई बड़े Difference भी है, तो चलिए जानते है इन्हीं अंतरो को आज के इस आर्टिकल में।

जज कैसे बनते है :

हमारे भारत देश की न्याय व्यवस्था को भारत के संविधान में परिभाषित किया गया है। संविधान के अनुसार न्याय व्यवस्था के तीन स्तर है –

  • लोअर कोर्ट – इसका अधिकार क्षेत्र अमूमन छोटे शहरों, जिलों तक सीमित रहता है।
  • हाईकोर्ट  – इसे हिन्दी में हम “उच्च न्यायालय” भी कहते है हर राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश में एक हाईकोर्ट स्थित होता है।
  • सुप्रीम कोर्ट – भारत का सुप्रीम कोर्ट जिसे सर्वोच्य अदालत भी कहते है देश में एक ही सर्वोच्य अदालत है जिसका फैसला अंतिम फैसला माना जाता है।
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भारत की सर्वोच्य अदालत

आपको जिले स्तर के कोर्ट में जज बनने के लिए LAW की डिग्री होने के साथ वकालत का 7 साल का अनुभव होना चाहिए। इसके बाद ही आप जज की परीक्षा में बठने के लायक होते है।

ये परीक्षा हर राज्य में स्थित राज्य लोक सेवा आयोग की ओर से न्यायिक सेवा परीक्षा का आयोजन कराया जाता है। हर राज्य के हिसाब से नियम कुछ अलग भी हो सकते है। इसके बाद उच्च न्यायालय, जज की नियुक्ति करता है।

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वहीं मजिस्ट्रेट बनने के लिए LAW की डिग्री होने के बाद सीधे PCS-J यानी प्रोविंशियल सिविल सर्विस (ज्यूडिशियल) के एग्जाम में पास होकर मजिस्ट्रेट बन सकता है। इसके बाद भी कुछ सालों तक ट्रेनिंग दी जाती है फिर वे प्रमोट कर दिए जाते है।

मामलों के प्रकार –

जज और मजिस्ट्रेट (Judge and Magistrate) में अतंर स्पष्ट करने के लिए पहले आपको कोर्ट में आने वाले मामलों की प्रकृति को समझना होगा। तो कुल जमा दो मुख्य मामले होते है पहला सिविल मामले (Civil Cases) और दूसरा क्रिमिनल मामले (Criminal Cases) सिविल मामलों को व्यवहारिक और दीवानी मामले के नाम से भी जाना जाता है वहीं क्रिमिनल मामलों को हिन्दी में दाण्डिक और फौजदारी मामले भी कहते है।

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भारत की एक आम अदालत

सिविल मामलों मे अक्सर जुर्माना लगाया जाता है वहीं क्रिमिनल मामलों में सजा के तौर पर जेल भेज देने का प्रावधान आता है। एक उदाहरण से दोनों को समझते है।

उदाहरण के लिए आपकी जमीन किसी ने हथिया ली हो, ऐसे में आप कोर्ट में जाकर उसकी शिकायत करते है और कार्यवाही के नाम पर आप जमीन का हर्जाना मांगते है, यानी आरोपी पर आप जुर्माना लगाने की मांग कर रहे है। इसे सिविल मामला कहेंगे।

वहीं अगर आप कोर्ट में कार्यवाही के नाम पर सजा की मांग करते है यानी आप आरोपी को जेल भेज देने की मांग करते है, तो इसे क्रिमिनल लॉ के अंतर्गत माना जाता है। दोनों ही मामले आपकी मांग पर निर्भर करते है लेकिन Copyright या Trademark के मामले सिविल मामलों के अंतर्गत आते है।

Judge and Magistrate में अंतर – 

सिविल मामलों का निपटारा जज करते है यानी “व्यवहारिक जज” वहीं क्रिमिनल मामलों का निपटारा मजिस्ट्रेट करते है यानी दण्डाधिकारी, दोनो ही न्यायिक अधिकारी निचली अदालत में अपना काम करते है। लेकिन जिला स्तर की अदालत में जाते ही दोनों ही न्यायिक अधिकारी जज बन जाते है। वहीं हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज को न्यायमूर्ति कहते है।

जिला और सत्र न्यायालय –

जिला स्तर न्यायालय निचली अदालत से एक पायदान ऊपर का न्यायालय है, इस कोर्ट में सिविल मामलों का निपटारा जिला न्यायालय यानी District court में होता है वहीं Criminal मामलों का निपटारा सत्र न्यायालय यानी Session Court में होता है।

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