पटना । आनंद कुमार।
भारत के गौरवशाली इतिहास के प्रचार प्रसार हेतु कार्यरत स्वैच्छिक संस्था “संधान” तथा बी डी महाविद्यालय मीठापुर के भारतीय एवं एशियाई अध्ययन विभाग द्वारा परिचर्चा आयोजित की गई मुख्य अतिथि प्रोफेसर जयदेव मिश्रा महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर विवेकानंद सिंह,” संधान” के सचिव संजीव कुमार तथा भारतीय एवं एशियाई इतिहास विभाग की विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर नीतू तिवारी ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। उद्घाटन संबोधन करते हुए स्वैच्छिक संस्था “संधान” के सचिव संजीव कुमार ने बताएं कि आधुनिक बिहार छठी सदी में भारतीय राजनीति का केंद्र रहा है यही सता का केंद्र बिंदु रहा और एशिया महादेश में राजनीति का सबसे शक्तिशाली क्षेत्र रहा है! जो पाटलिपुत्र कुसुमपुर नाम से विख्यात रहा संजीव जी ने इतिहास के जिज्ञासु विद्यार्थियों के लिए ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण तथा विस्तृत जानकारी की योजना बताई। पटना विश्वविद्यालय के “प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के पूर्व विभाग अध्यक्ष एवं कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रोफेसर जयदेव मिश्र के अनुसार प्राचीन इतिहास के बड़े हिस्से का अनुसंधान एशिया खासकर भारत और बिहार के भूमि पर होना है अब तक जो अनुसंधान हुए पुराण तथा जातक कथाओं पर आधारित है इनके प्रामाणिकता के लिए पुरातत्व विज्ञान का सहयोग लिया जाता है इसमें जीव विज्ञान रसायन विज्ञान मृदा विज्ञान आदि का उपयोग किया जाता है आपने आगे बताया प्रचलित वाक्य में कई नाम अपभ्रंश हो गए हैं जैसे नालम से नालंदा,विक्रमशिल- विक्रमशिला तथा तक्षशिल- तक्षशिला हो गया परिचर्चा के दौरान एक श्रोता ने बौद्ध साहित्य के हवाले से वर्तमान पाटलिपुत्र का अस्तित्व बताया । प्रोफेसर जयदेव ने उत्तर दिया कि साहित्य में पाटलिपुत्र का उल्लेख है किंतु स्थान नहीं बताया गया कि किस क्षेत्र को पाटलिपुत्र कहा जाता था अभी गंगा के किनारे के जितने बड़े भाग है उसका कौन सा क्षेत्र पाटलिपुत्र था यह अनुसंधान का विषय है। बिहार के बाहर सभी प्रांतों में प्राचीन इतिहास विज्ञान विषय है। प्रोफेसर जयदेव ने चीनी यात्री ह्वेनसांग के हवाले से बताया की पाटलिपुत्र के भव्यता का जिक्र करते हुए लिखा कि विशाल अभेद्यऔर मनोहारी राजमहल लकड़ी से निर्मित है। ऐसे ही इतिहास के अनेक रहस्यमय में और अनछुए वैज्ञानिक पहलू हैं जो हमारे नई पीढ़ी के जानकारी में जातक कथा के समान है।अध्यक्षीय उद्बोधन करते हुए प्राचार्य प्रो विवेकानंद जी ने बताया की प्राचीन इतिहास को प्रमाणिक तथ्यों के साथ प्रचारित करने की आवश्यकता है यह आम जनों तक पहुंचे क्योंकि इसमें हमारे पुरखों के गौरव महिमा छुपी है। कार्यक्रम के अंत में प्राचीन इतिहास विभाग की अध्यक्ष नीतू तिवारी ने विद्यार्थी तथा अन्य श्रोताओं को संयम से कार्यक्रम को सुनने और समझने के लिए हार्दिक धन्यवाद दिया।