द न्यूज 15
नई दिल्ली। क़रीब 10 साल से जेल में बंद मारुति सुजुकी मानेसर के चौथे मज़दूर नेता योगेश यादव को पंजाब हरियाणा उच्च न्यायलय, चंडीगढ़ से आठ फरवरी को ज़मानत मिल गई है। इससे पहले जेल में बंद तीन मज़दूर नेताओं रामबिलास, संदीप ढिल्लों और सुरेश को बीते नवंबर व जनवरी में जमानत मिली थी। सात अन्य मज़दूर नेता अभी भी जेल में हैं और कोर्ट में अगली सुनवाई 21 फरवरी को है। उल्लेखनीय है कि निचली अदालत से मिली उम्रकैद की सज़ा भुगतने वाले 13 मज़दूर नेताओं में से दो पवन दहिया व जिया लाल की बीते साल मौत हो गई थी। मारुति सुजुकी, मनेसर (हरियाणा) के मज़दूर 2011 से यूनियन बनाने का संघर्ष कर रहे थे। 2012 में उन्होंने यूनियन पंजीकृत कराई लेकिन प्रबंधन को कुछ और मंजूर था।
आठ जुलाई, 2012 को प्लांट में हिंसक वारदात हुई जिसमें एक मैनेजर की जलने से मौत हो गई। यूनियन नेताओं का आरोप है कि प्रबंधन ने साजिश के तहत दमन की कार्यवाही की और इसके बाद निर्दोष 148 मज़दूरों को जेल में डाल दिया गया। उन्हें पुलिस व जेल की यातनाएं सहनी पड़ी, लेकिन इस घटना के बाद व्यापक गिरफ़्तारियां हुईं। करीब ढाई हजार स्थाई-अस्थाई मज़दूरों को अवैध रूप से कंपनी से निकाल दिया गया, जिनका संघर्ष आज भी जारी है। इस पूरे प्रकरण में सरकार-मालिक गँठजोड़ खुलकर सामने आया। दूसरी ओर इलाके और देश के मज़दूरों का एक हिस्सा मारुति मज़दूरों के साथ खड़ा हुआ और बिरादराना एकजुटता दिखलाई, जिससे मालिक के पक्ष में खड़ी सरकार और उसकी पुलिस-प्रशासन के मानमानेपन पर एकहद तक रोक लग सकी।
न्यायपालिका तक जमानत याचिका को खारिज करने का कारण विदेशी पूँजीनिवेश प्रभावित होना बताती रही। यानी पूरा तंत्र मालिकों के पक्ष में खड़ा है। पिछले साढ़े नौ सालों से देश व दुनिया की तमाम यूनियनों द्वारा एक निष्पक्ष न्यायिक जाँच की माँग पूंजीपतियों और सरकार के गठबंधन से दरकिनार होती रही और मज़दूरों का लंबा संघर्ष जारी है।
18 मार्च 2017 को सेशन कोर्ट गुडगांव द्वारा सुनाए गए फैसले में 117 मज़दूर बरी हुए, नेतृत्वकारी 13 मज़दूर नेताओं को आजीवन कारावास की सजा तथा 18 मज़दूरों नेताओं को आंशिक सजा मिली। करीब 10 साल से 13 मज़दूर नेता जेल की कालकोठरी में अन्यायपूर्ण उम्रक़ैद की सजा भुगतने को मज़बूर रहे। इस दौरान किसी भी साथी को कोई कानूनी राहत या जमानत तक नहीं मिली।
(मेहनतकश से साभार)