International Day of the Aged : बुजुर्ग हमारे वजूद हैं न कि बोझ

0
252
Spread the love

डॉ. सत्यवान सौरभ

बदलते परिवेश में एकल परिवार बुजुर्गों को घर की दहलीज से दूर कर रहें है. बच्चों को दादी- नानी की कहानी की बजाय पबजी अच्छा लगने लगा है, बुजुर्ग अपने बच्चों से बातों को तरस गए है. वो घर के किसी कोने में अकेलेपन का शिकार हो रहें है. ऐसे में इनकी मानसिक-आर्थिक-सामाजिक समस्याएं बढ़ती जा रही है. महँगाई के आगे पेंशन कम होती जा रही है. आयुष्मान योजना में बुजुर्गों को शामिल कर उनके स्वास्थ्य देखभाल के साथ बुजर्गों के लिए अलग से योजनाएं लाने की सख्त जरूरत है.

हमारे देश में बुजुर्ग तेजी से बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन उनके लिए उपलब्ध संसाधन कम होते जा रहें हैं। ऐसे में हम सबकी जिम्मेवारी बनती है कि उन्हें एक तरफ रखने के बजाय उनकी शारीरिक और मानसिक देखभाल करने के लिए समुदायों के जीवन में एकीकृत किया जाना चाहिए, जहां वे सामाजिक परिस्थितियों को सुधारने में पर्याप्त योगदान दे सकते हैं। बुजुर्गों की ‘समस्या’ को ‘समाधान’ में बदलने का प्रयास करना बेहद जरूरी है।

कोरोना काल में देश में बुजुर्ग जनसंख्या और स्वास्थ्य चुनौतियां उभर कर सामने आई है, भारत में उम्रदराज हो रही आबादी के स्वास्थ्य, आर्थिक तथा सामाजिक निर्धारकों और परिणामों की वैज्ञानिक जांच का देश में सबसे बड़ा व्यापक राष्ट्रीय सर्वे किया गया हैं. यह भारत का पहला तथा विश्व का अब तक का सबसे बड़ा सर्वे है जो सामाजिक, स्वास्थ्य तथा आर्थिक खुशहाली के पैमानों पर वृद्ध आबादी के लिए नीतियां और कार्यक्रम बनाने के उद्देश्य से लान्जिटूडनल डाटाबेस प्रदान करता है। इसमें देश तथा राज्यों का प्रतिनिधि सैम्पल सामाजिक आर्थिक परिदृश्य, व्यापक, प्रासंगिक फोकस, लान्जिटूडनल डिजाइन, डाटा संग्रह, गुणवत्ता नियंत्रण तथा भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) के लिए कम्प्यूटर असिसटेड पर्सनल इंटरव्यूइंग (सीएपीआई) टेक्नॉलॉजी का उपयोग शामिल है। इससे विभिन्न राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में तालमेल होगा।

देश में जनसांख्यिकीय, सामाजिक-आर्थिक और अन्य प्रासंगिक क्षेत्रों में उभरते रुझानों को ध्यान में रखते हुए, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक राष्ट्रीय नीति बना रहा है, जिसमें वित्तीय और खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और पोषण जैसे मुद्दों को शामिल किया गया है, विकसित होते भारत में भविष्य में जनसंख्या स्वस्थ होगी और अधिक समय तक जीवित रहेगी। अनुसंधान इंगित करता है कि भारत की 12% आबादी 2030 तक 60 वर्ष की आयु और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि के अनुसार होगी; यह 2050 तक बढ़कर 19.4% होने की उम्मीद है।

60+ आयु वर्ग के पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं होने जा रही हैं। लंबी उम्र बढ़ने से 80 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है, जो लगभग 1.1 करोड़ लोगों के लिए जिम्मेदार है। 100 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 6 लाख लोगों के साथ, भारत में 2050 तक सबसे अधिक संख्या में लोग होंगे। 2011 में वरिष्ठ नागरिकों की संख्या 10.38 करोड़ से बढ़कर 2026 में 17.3 करोड़ और 2050 में 30 करोड़ हो गई। ऐसे में उनके कल्याण के लिए कार्यक्रमों की आवश्यकता बढ़ जाती है।

जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, परिवारों के नाभिकीयकरण, उनके दिन-प्रतिदिन के रखरखाव और उम्र से संबंधित कठिनाइयों के लिए दूसरों पर निर्भरता; बुजुर्ग लोगों के जीवन के लिए एक कठिन चुनौती है। अधिक आर्थिक निर्भरता के कारण बुजुर्ग महिलाओं के लिए समस्या बढ़ जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ 70% बुजुर्ग रहते हैं, आर्थिक कारणों और चिकित्सा सेवाओं की खराब गुणवत्ता के कारण गंभीर स्थिति की ओर जाता है, विशेष रूप से 80 वर्ष से अधिक आयु वालों के लिए। 5.1 करोड़ बुजुर्ग आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है और वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ बढ़ते अपराधों के कारण, बुजुर्ग लोगों की स्थिति दयनीय है।

भारत के वरिष्ठ नागरिकों का प्रतिशत हाल के वर्षों में बढ़ती दर से बढ़ रहा है और इस प्रवृत्ति के जारी रहने की संभावना है। स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारत की छह प्रतिशत आबादी 65 वर्ष और उससे अधिक की थी। जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, हालांकि वांछनीय है, लेकिन इस से आधुनिक दुनिया के लिए नई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। बढ़ती आबादी की समस्या आज कई देशों के लिए चिंता का विषय बन गई है। पेंशन और स्वास्थ्य सेवा के लिए प्रावधान बजट में कमी कर रहे हैं। 100 मिलियन से अधिक बुजुर्गों के घर और अगले तीन दशकों में संख्या में तीन गुना वृद्धि की उम्मीद के साथ भारत के लिए कई चुनौतियों का सामना करना होगा।

बदलते परिवेश में एकल परिवार बुजुर्गों को घर की दहलीज से दूर कर रहें है. बच्चों को दादी- नानी कि कहानी की बजाय पबजी अच्छा लगने लगा है, बुजुर्ग अपने बच्चों से बातों को तरस गए है. वो घर के किसी कोने में अकेलेपन का शिकार हो रहें है. ऐसे में इनकी मानसिक-आर्थिक-सामाजिक समस्याएं बढ़ती जा रही है.महंगाई के आगे पेंशन कम होती जा रही है. आयुष्मान योजना में बुजुर्गों को शामिल कर उनके स्वास्थ्य देखभाल के साथ बुजर्गों के लिए अलग से योजनाएं लाने की सख्त जरूरत है. ताकि हर घर में बुजुर्गों को आशीर्वाद के रूप में देखा जाये, बोझ नहीं।

(लेखक रिसर्च स्कॉलर,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here