वंशवादियों का फायदा उठाते हुए कैसे होगा वंशवाद का विरोध ?

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चरण सिंह 

भारतीय जनता पार्टी एक ओर वंशवाद का विरोध कर रही है और दूसरी ओर वंशवादियों को एनडीए में शामिल कर रही है। बीजेपी की ओर से कांग्रेस में गांधी परिवार, इनेलो में चौटाला परिवार, समाजवादी पार्टी में यादव परिवार, राजद में यादव परिवार, एनसीपी में पवार परिवार को लेकर वंशवाद पर हमला तो बोला जाएगा। वह बात दूसरी है कि हरियाणा में दुष्यंत चौटाला, उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी, महाराष्ट्र में अजित परिवार और अशोक चव्हाण तो बिहार में चिराग पासवान को एनडीए में शामिल किया जाएगा। क्या अजित पवार, चिराग पासवान, जयंत चौधरी और दुष्यंत चौटाला वंशवाद पर टिका नेतृत्व नहीं है ?

 


झारखंड में भी हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन को भी बीजेपी ने अपने साथ कर लिया है। आज की तारीख में बिहार में पशुपति पारस और चिराग पासवान का मामला गर्माया हुआ है। पशुपति पारस मोदी सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री रहे। पशुपति पारस के साथ चार और सांसद थे। मतलब जब पशुपति पारस की जरूरत थी तो वह ठीक थे। अब जब चिराग पासवान ने अपने को साबित कर दिया। यह माना जाने लगा कि पासवान वोट बैंक चिराग पासवान के साथ है तो चिराग पासवान को पांच सीटें दे दी गईं। पशुपति पारस को दरकिनार कर दिया गया। अब पशुपति पारस ने केंद्रीय राज्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है।

पशुपति पारस के इंडिया गठबंधन से चुनाव लड़ने की बात सामने आ रही है। पशुपति पारस यदि हाजीपुर से चुनाव लड़ लिये तो चिराग पासवान के लिए दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। उपेंद्र कुशवाहा अलग से बीजेपी से नाराज हैं। उपेंद्र कुशवाहा का भी अपना वोट बैंक है। हालांकि बिहार में इंडिया गठबंधन में सीटों का बंटवारा नहीं हो पाया है। बिहार में कांग्रेस 15 सीटें मांग रही है और लालू प्रसाद कांग्रेस को 7 सीटें से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं।
यह बात तो माननी पड़ेगी कि बीजेपी विपक्ष की कमजोरी का फायदा उठा रही है। यह इंडिया गठबंधन की कमजोरी ही थी कि जब नीतीश कुमार ने विपक्ष को लामबंद किया तो बीजेपी में बड़ी बेचैनी थी। पटना में जब पहली बैठक नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन की तो विपक्ष की मजबूती देखने को मिली। बेंगलुरु, मुंबई के बाद जब दिल्ली में इंडिया गठबंधन की बैठक हुई तो यहां से नीतीश कुमार की नाराजगी देखने को मिली। टीएमसी की मुखिया ममता बनर्जी ने जब मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम इंडिया गठबंधन के अध्यक्ष पद के लिए पेश किया और अरविंद केजरीवाल ने उसका समर्थन किया तो नीतीश कुमार वहां से नाराज होकर पटना चले आये। तब न तो लालू प्रसाद और न ही कांग्रेस ने उनकी नाराजगी का सम्मान किया। होना यह चाहिए था कि कांग्रेस और लालू प्रसाद दोनों को नीतीश कुमार की मेहनत की तारीफ करते हुए अध्यक्ष पद के लिए उनका नाम पेश करना चाहिए था।

लालू प्रसाद तो अपने बेटे तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने में लगे थे। यही वजह रही कि नीतीश कुमार ने ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया। नीतीश कुमार लालू प्रसाद पर जल्द टिकटों के बंटवारे के लिए दबाव बना रहे थे और लालू प्रसाद उनको टरका रहे थे। जब पत्रकारों ने लालू प्रसाद से टिकट बंटवारे के बारे में पूछा तो उन्होंने यह कहा कि टिकट बंटवारा इतनी जल्द थोड़े ही हो जाएगा। मतलब नीतीश कुमार को एनडीए में जाने के लिए लालू प्रसाद और कांग्रेस ने मजबूर कर दिया। ऐसे ही जयंत चौधरी भी एनडीए में नहीं गये हैं। अजित पवार का भी एनडीए में जाने का कारण शरद पवार का अपनी बेटी सुप्रिया सुले को आगे बढ़ाना रहा। मतलब विपक्ष के दिग्गजों की ओर से गलती हो रही और उसका फायदा बीजेपी उठाती रही। ऐसे में प्रश्न उठता है कि वंशवाद पर टिके इन नेताओं की मजबूरी होगी पर बीजेपी की क्या मजबूरी है कि वंशवाद पर हमला बोलते हुए इन वंशवादी नेताओं को एनडीए में शामिल करा ले। मतलब वंशवादियों को एनडीए में शामिल कराकर आखिर वंशवाद के खिलाफ लड़ाई कैसे लड़ी जाएगी ?

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