मध्य प्रदेश के कई गांव में भेड़ बकरियों की तरह लगाई जाती है बोली, 10 से 100 रुपए तक के स्टाम्प पर होता है एक साल की शादी का कॉन्ट्रेक्ट, इस कुप्रथा में महिलाएं भी बताई जाती हैं बराबर की जिम्मेदार
चरण सिंह राजपूत
हमारे देश में शादी के बंधन को बड़ा पवित्र रिश्ता माना जाता है। हिन्दू समाज में तो सात फेरों को सात जन्म का बंधन माना जाता है। जब यह शादी का बंधन ही मजाक बनकर रह जाये, बहू बेटियों के शोषण का माध्यम बन जाए, किराये की पत्नी बना दे तो क्या कहा जायेगा ? जी हां मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में ऐसे कई गांव हैं, जहां पर शादी के कॉन्ट्रेक्ट कर बहू बेटियों को भेड़ बकरी की तरह किसी पुरुष के साथ कर दिया जाता है। इस कॉन्ट्रेक्ट के तहत एक साल की शादी होती है। कॉन्ट्रेक्ट पूरा होते ही किराये की पत्नी को उसके घर छोड़ दिया जाता है। इस कॉन्ट्रेक्ट में कुंआरी लड़कियों के अलावा किसी की पत्नियां भी होती हैं। यह अपने आप में शर्मनाक है कि सब ऐसे दौर में हो रहा है जब महिलाएं के मान सम्मान और अधिकार की लड़ाई सड़क से लेकर संसद तक लड़ी जा रही है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा दिया जा रहा है। महिलाओं की लड़ाई लड़ने वाले अनगिनत संगठन देश में चल रहे हैं।
धड़ीचा प्रथा के नाम से जाने जाने वाली इस कुप्रथा के तहत हर साल इस जिले में लड़कियों को किराए पर देने के लिए बाकायदा मंडी सजती है। दूर-दूर से खरीदार भी आते हैं, जिसे जो पसंद आती है उसे कॉन्ट्रेक्ट कर अपने साथ ले जाता है। बीवियों की इस मंडी में लोग महिलाओं और लड़कियों की चाल और ढाल भी देखते हैं। बाकायदा शादी कर लड़की की विदाई की जाती है। हालांकि यह प्रथा अब शासन प्रशासन के खौफ के कारण चोरी छिपे चल रही है। लड़कियों के परिजन अपनी खुशी से सालभर के लिए अपनी बहू बेटियां दूसरे पुरुषों को किराए पर दे देते हैं। यह अपने आप में दिलचस्प है कि इन किराये की बीवियों में कुंवारी लड़कियों के अलावा किसी की पत्नी भी होती है। गरीबी और कच्चे लालच में इस गांव के लोग इस कुप्रथा को आज भी नहीं छोड़ पा रहे हैं। दलाल इन लोगों के गरीबी का फायदा उठाकर मोटा कमाते हैं।
ऐसा भी नहीं है कि इस तरह की शादियाँ कोई अवैध होती हों। बाकायदा इन महिलाओं को एक साल के लिए देने से पहले एक साल का एग्रीमेंट भी होता है। इसके लिए 10 रुपए से लेकर 100 रुपए तक के स्टाम्प पर दोनों पक्ष साइन करते हैं। एग्रीमेंट की शर्ते लिखी जाती है, इसके बाद ही शादियां होती है। इस कुप्रथा में ऐसा भी सुनने को मिलता है कि एक साल का एग्रीमेंट पूरा हो जाने पर यदि संबंधित व्यक्ति कॉन्ट्रेक्ट को आगे बढ़ाना चाहता है तो पैसा देकर उसे आगे बढ़ा दिया जाता है।
इन किराये की बीवियों की शादियों में विभिन्न प्रकार की शर्तें होती हैं। कोई व्यक्ति मां की सेवा करने के नाम पर शादी करता है तो कोई शादी का नाटक करने के लिए किराए बीवी पर ले जाता है। किसी की शादी नहीं हुई है तो कुछ समय उसके साथ बिताने के लिए ले जाता है। कुछ लोग इसे दधीच प्रथा के नाम से जानते हैं। ऐसा नहीं है कि यह प्रथा पुरुषों के दबाव में चल रही है। इस कुप्रथा को बढ़ावा देने में महिलाएं भी बराबरी की जिम्मेदार मानी जाती हैं। कई बार पुलिस के सामने भी इस प्रकार की घटनाएं सामने आईं, लेकिन महिलाओं की चुप्पी के चलते कुछ हो नहीं पाता है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या स्टाम्प पर लिखे गए कॉन्ट्रेक्ट पुलिस के हाथ नहीं लगते हैं ? या फिर जो महिलाएं एक एक साल तक गायब तक रहती हैं उनका पता पुलिस प्रशासन को नहीं चलता है।
मध्य प्रदेश में चलने वाली यह कुप्रथा कई दशकों से चल रही है। इस प्रथा को रोकने के लिए न तो शासन प्रशासन की ओर से की ठोस प्रयास हुए हैं और न ही सामाजिक संगठनों ने कोई अभियान चलाया है। यही वजह है कि आज के इस दौर में इस कुप्रथा को ख़त्म नहीं किया जा सका है। तो क्या यह कुप्रथा महिलाओं सहमति से खत्म नहीं हो रह है या फिर पीड़ित महिलाओं और लड़कियों की आवाज दब कर रह जाती है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे के बीच जब इस तरह की कुप्रथा फलने फूलने की बात सामने आती है तो सरकारों के साथ ही समाज के ठेकेदारों महिलाओं के लिए काम करने के सभी दावे खोखले लगते हैं।
ऐसा ही नहीं है कि इस तरह की प्रथा की बात बस मध्य प्रदेश में में ही सुनने को मिलती है। 2006 में गुजरात के भरुच नेत्रगंज तालुका में भी इस तरह का एक मामला उजागर हुआ था। अता प्रजापति नाम का एक व्यक्ति अपनी पत्नी लक्ष्मी को मेहसाणा में एक पटेल के साथ रहने के लिए छोड़ गया था। उसे आठ हजार रुपए महीना किराया मिलने की बात सामने आई थी। धड़ीचा कुप्रथा पर रीति रिवाज वाइफ ऑन रेंट वेब सीरीज भी बन चुकी हैं। इस वेब सीरीज में दो दोस्तों की कहानी है। इस वेब सीरीज में कुसुम का रोल अभिनेत्री हंसी परमार ने और रानी का रोल पायल गुप्ता ने निभाया है।