खिल गया दिग दिगंत

0
105
Spread the love

आ गया ऋतुराज बसंत।
प्रकृति ने ली अंगड़ाई,
खिल गया दिग दिगंत।।

भाव नए जन्मे मन में,
उल्लास भरा जीवन में।
प्रकृति में नव सृजन का,
दौर चला है तुरंत।
खिल गया दिग दिगंत।।

कूकू करती काली कोयल,
नव तरुपल्लव नए फल।
हरियाली दिखती चहुंओर,
पतझड़ का हो गया अंत।
खिल गया दिग दिगंत।।

बहकी हवाएं छाई,
मस्ती की बहार आई।
झूम रही कली-कली
खुशबू हुई अनंत।
खिल गया दिग दिगंत।।

सोए सपने सजाने,
कामनाओं को जगाने।
आज कोंपले कर रही,
पतझड़ से भिड़ंत।
खिल गया दिग दिगंत।।

-डॉ. सत्यवान सौरभ

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here