बेटी जनमाए हैं तो नाज कीजिए

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देश दीपक 
बिहार समेत देस भर की नारी शक्ति को हिरदय से परनाम… परसों टीबिया पर समचार देख रहे थे। भीडियो में दू गो लेडिज पुलिस के बहादुरी देख के हम त भक्क काटा हो गए। कट्टा लेले तीन गो लफुआ हाजीपुर में बैंक लूटे घुस जाता है अ गेटे पर एगो लेडिज पुलिस पर कट्टा तान देता है, लग त रहा था कि गोलिये मार देगा… लेकिन दुन्नो लेडिज पुलिस डेराई नहीं, तीनों लफुअवन से भिड़ गई। पहिलकी शांति त तनी शांत करेजा के थी लेकिन दूसरकी जूही त मत पूछ भैवा… फूल के जगह चिनगारी निकली। बेटी-बहिन नहीं, सच्छात झांसी के रानी, उ सबके एक्को डेग आगे बढ़े नहीं दी। फैटा-फैटी होवे लगा। एगो लफुआ रायफल छीने के फेरा में था लेकिन जूहिया के हिम्मत के आगे पस्त पड़ गया। धसोरा-धसोरी में जूहिया गिर गई लेकिन हाथ से रायफल नहीं छोड़ी।
दुन्नो बेटी मिलके तीनों लफुअवन के चकरघिन्नी जईसा नचा दी। सार सबके मोटरसैकिलिया छोर के भागे पड़ा। चारों पट्टी हल्ला हो गया। मीडिया-पुलिस सब हाजिर। दुन्नो बेटियन के बहादुरी के चरचा। बिहान सब अखबार में नाम-फोटो छपा। एसपी साहेब बोलाए, गुनो गाए आ सार्टीफिटेक (प्रशस्ति पत्र) देके सम्मानित किए। इनाम में कुछ पईसा-कौड़ी दिए कि नैय दिए, मालूम नहीं… पर लफुअवन गोली चला देता अ एक्को गो मर जाती त सरकार को ढेर पईसा (अनुग्रह अनुदान) देवे पड़ता अ जगहंसाईयो होता। बेटियन त सरकार को दुन्नो (पैसा लगे और बदनामी होवे) से बचा ली। खबर है कि हाजीपुर के कांड के बाद लुटेरवन अब लेडिज पुलिस वाला बैंक में घुसे से थरथरा रहा है। उ सब जेंट्स पुलिस वाला ब्रांच खोजे में लगल है। सरकार के चाहिए कि सब बैंक में जेंट्स के जगह लेडिज पुलिस बईठा दे। न इन्फोर्मेशन लीक होगा न पईसा लुटाएगा।
बहुते बार हमहूं देखे हैं… लेडिज पुलिस सब वर्दी में भी रहती है तो टेम्पू वाला के पूरा भाड़ा देती है। सिपाही जी लोग भाड़ा मांगे पर या तो दांत चियार के चल देता है या वर्दी का धौंस देखा के डेरा देता है। सिविल में रहला पर पांचो रुपया भाड़ा बचावे ला एजेंटी कार्ड देखावे लगता है। कभी-कभी अतहतह कर देता है तो पाब्लिक से थुराइयो जाता है। डिउटी करे में भी लेडिज पुलिस सब टेक्का है। जब जाम के समय सिपाही जी गुमटी के पीछे नुका के खईनी लगाते रहते हैं तब लेडिजे पुलिस छरकी लेके जाम छोड़ाते रहती है। बुद्धा कोलनी मोड़ पर हम एगो लेडिज पुलिस को टोपी से छुपा के किताब पढ़ते देखे थे। पूछे तो बताई थी कि दरोगा के रिटेन के तैयारी में लगल है।
हुआ कि नहीं…ढेर दिन से देखे नहीं हैं। ई लोग थानो में डिउटी करती है त एकदम परफेक्ट। सिपाही-मुंशी सब सौ-पचास के फेर में दाएं-बाएं करते रहता है लेकिन ई सब न। हालांकि ओहनिये के देखा-देखी ई सब भी कभियो-कभियो गड़बड़ा जाती है।…पईसा केकरा ख़राब लगता है जी ? लेकिन माने पड़ेगा भाई… रजवा ई वाला काम (सिपाही भर्ती में महिला आरक्षण) बढ़िया किया है।
आज के डेट में हर जगहे बेटियन के बोलबाला है। अब कौनो इलाका छुट्टल नहीं है। घर के चौका-चूला से लेके बोडर के नाथूला तक। पढ़ाई-लिखाई में त बेटवन के कान काटले हईये है। बियाह के बाद ससुरार के जिमदारी के साथे-साथे नईहरो के फिकिर। का जाने काहे हमनी सब आजो बेटा-बेटी में दू भाव करते हैं। अब त मरला पर बेटी सब आगो देबे लगी है। बेटी जनमाए हैं त ओकरा पर नाज कीजिए, सरम नहीं। अभियो सम्हर जाइए… न त भर जवानी बंस बंस (बेटा-बेटा) चिचियाते रहिए अ उमर बीतला पर बूढ़शाला (old age home) में जाए ला तैयार रहिए।

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