“बिहार उपचुनाव में तेजस्वी के लिए अग्निपरीक्षा”

दीपक कुमार तिवारी

पटना। बिहार के चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव इस बार केवल एक साधारण चुनाव नहीं, बल्कि 2025 विधानसभा के ‘सेमीफाइनल’ के रूप में देखा जा रहा है। इस उपचुनाव में सबकी नजरें राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव पर टिकी हैं।

इस चुनाव की दो प्रमुख वजहें हैं: पहली, चार में से दो सीटें पहले राजद के पास थीं, और दूसरी, यह उपचुनाव उस समय हो रहा है जब अगले विधानसभा चुनाव में महज एक साल बाकी है। गया के बेलागंज, भोजपुर की तरारी, कैमूर की रामगढ़, और इमामगंज सीट पर हो रहे इस उपचुनाव में तेजस्वी को खासा संघर्ष करना पड़ सकता है। रामगढ़ और बेलागंज सीटें राजद के लिए प्रतिष्ठा का सवाल हैं, जहां उनके बड़े नेताओं ने जीत हासिल की थी।

राजद की पिछली उपचुनावों में परफॉर्मेंस को देखते हुए चुनौती और भी गंभीर हो जाती है। 2020 से अब तक हुए पांच उपचुनावों में राजद केवल एक सीट पर ही जीत सकी है। बाकी चार सीटों पर उसे कड़े संघर्ष का सामना करना पड़ा है। यहां तक कि उनकी अपनी मजबूत सीट कुढ़नी भी इस लहर में बह गई थी।

इस बार भी चुनौती पहले से कहीं बड़ी है। एनडीए गठबंधन, जिसने 2020 में राजद को मात दी थी, पूरी ताकत से फिर मैदान में है। इसके अलावा, जन सुराज के प्रशांत किशोर ने चुनाव में उतरकर समीकरण को और जटिल बना दिया है। वे पिछली रूपौली जीत का इतिहास दोहराते हुए चुनाव को तीसरे धुरी की ओर मोड़ना चाहते हैं, जिससे कि राजद और जेडीयू को एक और झटका लगे।

बेलागंज में जातिगत समीकरण ने भी स्थिति को पेचीदा बना दिया है। जेडीयू और राजद दोनों ने यादव प्रत्याशी उतारे हैं, और पीके ने मुस्लिम वोटरों को आकर्षित करने के लिए मुस्लिम प्रत्याशी को मैदान में उतारा है। ऐसे में मुस्लिम वोटों का बंटवारा 2025 के लिए राजद की राह कठिन बना सकता है।

रामगढ़ में पार्टी अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर है, जबकि बेलागंज में सुरेंद्र यादव का रुतबा भी चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस हार का सीधा असर राजद के बड़े नेताओं पर पड़ेगा, खासकर तब जब पिछले छह महीने में राजवल्लभ यादव, गुलाब यादव और देवेंद्र यादव जैसे कई बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं।

अगर इस उपचुनाव में जन सुराज अच्छा प्रदर्शन करती है, तो यह राजद के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है। विपक्ष में अभी तेजस्वी बड़े नेता के रूप में माने जा रहे हैं, लेकिन अगर उपचुनावों में उनका प्रदर्शन कमजोर होता है, तो यह 2025 की तैयारी में उनके लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है। एनडीए इस मौके को राजद के कमजोर प्रदर्शन पर तीखा हमला करने के लिए भी भुनाने की कोशिश करेगा।
बिहार का यह उपचुनाव केवल सीटों की जीत-हार तक सीमित नहीं है। यह तेजस्वी यादव और राजद के लिए एक परीक्षा है, जो 2025 में उनके राजनीतिक भविष्य का मार्ग तय कर सकता है।

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