मतदान के बाद सभी समीकरण आम आदमी पार्टी के पक्ष में
चरण सिंह राजपूत
दिल्ली एमसीडी चुनाव का परिणाम ईवीएम में बंद हो चुका है, जिस तरह से 47 फीसदी मतदान हुआ है और भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने चुनाव को रद्द करने की मांग चुनाव आयोग से की है, पाश कालोनी में कम और झुग्गी बस्तियों में अधिक मतदान हुआ है, उसके आधार कहा जा सकता है कि दिल्ली एमसीडी पर भी केजरीवाल का कब्जा होने के पूरे आसार हो गये हैं। वैसे भी पॉश कालोनियों का वोट भाजपा और झुग्गी बस्तियों का वोट आम आदमी पार्टी का माना जाता है।
दरअसल 4 दिसंबर को हुए मतदान में सुबह से ही बीजेपी नेताओं में निराशा और आम नेताओं में उत्साह देखा जाने लगा था। वैसे भी चुनाव प्रचार में आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने एक न्यूज चैनल पर दावा किया था कि एमसीडी में बीजेपी को मात्र 20 सीटें ही मिलेंगी। उन्होंने दिल्ली की जनता को कूड़े से निजात दिलाने का आश्वासन दिया है। एक निजी चैनल को दिये इंटरव्यू में केजरीवाल ने कहा था कि गत पांच साल में उन्होंने एमसीडी को लाखों करोड़ रुपये दिये हैं फिर भी एमसीडी जनता से ही कूड़ा उठाने के लिए कहती है।
अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि एमसीडी पर 15 साल से बीजेपी का कब्जा है। उन्होंने साफ कर दिया था कि यदि एमसीडी में भ्रष्टाचार चाहते हो तो बीजेपी को वोट दो यदि चाहते हो कि दिल्ली साफ सुथरी हो और एमसीडी में ईमानदारी से काम हो तो आम आदमी पार्टी को वोट दो। वैसे भी आम आदमी पार्टी का नारा था कि एमसीडी भी केजरीवाल की होगी तभी दिल्ली का विकास होगा। ऐसे में यह माना जा रहा है कि लोग यह मानकर चल रहे थे कि एमसीडी में बीजेपी और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार की वजह से काम कम और आरोप प्रत्यारोप ज्यादा होता है। ऐसे में दिल्ली का विकास नहीं हो पा रहा है। समस्याएं पैदा होती हैं। लोग यह कहते सुने जा रहे थे कि एमसीडी में भी केजरीवाल होंगे तो फिर केजरीवाल को किसी तरह का बहाना बनाने का मौका नहीं मिलेगा।
ऐसे में मतदान का जो फीडबैक मिल रहा है उसके अनुसार लोगों ने केजरीवाल के नाम पर आम आदमी पार्टी को वोट दिया है। ऐसे में यदि एमसीडी पर आम आदमी पार्टी का कब्जा हो जाता है तो आम आदमी पार्टी केजरीवाल के मंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के खिलाफ और ज्यादा मुखर हो जाएगी। यदि दिल्ली एमसीडी चुनाव आम आदमी पार्टी जीतती है तो बीजेपी मंदिर प्रकोष्ठ के दिल्ली में मंदिर पुजारियों को वेतन समेत दूसरी सुविधाएं दिलवाने का मुद्दा भी निष्प्रभावी माना जाएगा। दरअसल इस मुद्दे पर लोगों का यह कहना है कि बीजेपी शासित प्रदेशों में मंदिरों के पुजारियों को वेतन देने से कौन रोक रहा है। ऐसे में बीजेपी शासित प्रदेशों में पुजारियों को वेतन क्यों नहीं दिया जा रहा है।
यदि बात आम आदमी पार्टी की करें तो वर्ष 2012 में गठन के बाद आम आदमी पार्टी ने 2013 में दिल्ली का पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। दिल्ली में हुए बीते तीन विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने अपना दबदबा कायम रखा है। 2013 में 70 में से 28 सीटें जीतकर पार्टी ने इतिहास रचा था। इसके बाद 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में आप को अभूतपूर्व सफलता हासिल हुई। एक तरह से पिछले दो चुनाव में आप ने दिल्ली में क्लीन स्वीप किया है, लेकिन अब आम आदमी पार्टी एमसीडी चुनाव में जीत हासिल करने के लिए दमखम लगा रही है।
आप ने 2017 में पहली बार लड़ा एमसीडी चुनाव
इसके अलावा आम आदमी पार्टी ने साल 2017 में पहली एमसीडी का चुनाव लड़ा। इस चुनाव में पार्टी को 272 सीटों में से 26.23 फीसदी वोट शेयर के साथ 48 सीटें जीती। 2015 के विधानसभा चुनावों में आप ने 70 में से 67 सीटों जीत लीं। इस चुनाव में बीजेपी को 3 और कांग्रेस को शून्य सीटें मिलीं लेकिन बीजेपी ने 2017 में एमसीडी चुनाव में 181 सीटें जीतकर लगातार तीसरी बार एमसीडी पर कब्जा जमाया।
1998 से दिल्ली की सत्ता से बाहर बीजेपी
हालांकि बीजेपी 1998 से ही दिल्ली की सत्ता से बाहर है लेकिन गत दो दशकों से एमसीडी पर उसका पूरी तरह दबदबा रहा है। बीजेपी ने एमसीडी पर 2007, 2012 और 2017 में पूर्ण बहुमत से कब्जा जमाया। बीजेपी ने इस बार चौथी जीत हासिल करने के लिए पूरी ताकत लगाई है। एक तरह से एमसीडी चुनाव बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का विषय माना जा रहा है। इसलिए बीजेपी की ओर से चुनाव प्रचार में केंद्रीय मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, सात मुख्यमंत्री और 40 से अधिक स्टार प्रचार के लिए उतारे गये थे।
देखने की बात यह भी है कि बीजेपी की तुलना में एमसीडी चुनाव आम आदमी पार्टी के लिए कहीं अधिक महत्व रखते हैं। तीन विधानसभा चुनाव में दबदबा बनाने के बावजूद वह पार्टी बीजेपी से एमसीडी की सत्ता नहीं छीन पाई है लेकिन इस बार के चुनाव में आम आदमी पार्टी एमसीडी में बीजेपी की सत्ता विरोधी लहर को भुनाने की कोशिश कर रही है। दरअसल बीजेपी और आप दोनों राजधानी में चुनाव को प्रतिष्ठा की लड़ाई बना दिया है।