जगजीत सिंह: “कहां तुम चले गए!”
“तुमको देखा, तो ये ख्याल आया, जिंदगी धूप तुम घना साया!” अगर आप गज़ल प्रेमी है तो जाहिर सी बात है आपने ये गज़ल जरूर सुना होगा या यूँ कहे कि जगजीत सिंह की गज़लें जरूर सुनी होंगी।
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उस दौर में लोग ग़ज़ल सुनना इतना पसंद नही करते थे मगर जगजीत सिंह ने अपनी आवाज के जादू से गज़लों को आम लोगों के दिलों तक पहुंचाया। उनका संगीत अत्यंत मधुर है और उनकी आवाज़ संगीत के साथ खूबसूरती से घुल-मिल जाती है। शायरों की महफ़िलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती ग़ज़लों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को पहले पहल दिया जाना हो तो जगजीत सिंह का ही नाम ज़ुबान पर आता है।
शुरुआती दिन!
जब भी बात गजल गायकों की होती है तो जगजीत सिंह का नाम बेहद लोकप्रिय गायकों में शुमार होता हैं। बात करतें हैं उनकी पैदाइश की तो उनका जन्म 8 फरवरी,1941 को राजस्थान के गंगानगर में हुआ था लेकिन उनका पूरा परिवार मूलतः पंजाब के रोपड़ जिले के दल्ला गांव का रहने वाला था।
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उनके बचपन का नाम था जीत मगर करोड़ों सुनने वालों के चलते सिंह साहब कुछ ही दशकों में जग को जीतने वाले ‘जगजीत’ बन गए। बचपन से ही संगीत पिता से विरासत में मिला था। गंगानगर में ही पंडित छगन लाल शर्मा से दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखने की शुरुआत की फिर आगे जाकर सैनिया घराने के उस्ताद जमाल खान साहब से ख्याल, ठुमरी और द्रुपद की बारीकियां सीखीं। पिता की ख्वाहिश थी कि उनका बेटा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाए लेकिन जगजीत पर गायक बनने की धुन सवार थी।
कॉलेज के दिनों से शुरु कर दिया था गाना!
कॉलेज के दिनों में हॉस्टल के लड़के उनके बगल वाले कमरे में रहना नहीं पसंद करते थे क्योंकि वो सुबह सुबह ही उठ कर रियाज़ करने लगते थे। Film Director सुभाष घई और जगजीत कॉलेज के दिनों से ही अच्छे दोस्त थे। एक बार दोनों एक युवा महोत्सव में भाग लेने Bengaluru गए थे।
जब Mic पर Announcement हुआ कि पंजाब यूनिवर्सिटी का छात्र शास्त्रीय संगीत गाने वाला है तो वहा मौजूद सभी लोग जोर जोर से हंसने लगे। ये देख सुभाष घई घबरा गए, उन्हें लगा कि जगजीत का बुरी तरह मजाक बनने वाला है। जगजीत स्टेज पर चढ़े, आंखें बंद की और आलाप लिया और कुछ Seconds बाद वहा पर शांति छा गई। सभी शांति से उनका गाना सुनने लगे और हर 5 मिनट पर ताली बजा रहे थे। जब उन्होंने गाना खत्म किया तो तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूंज उठा। ये सब देख सुभाष के आंखों से खुशी के आंसू छलक उठे।
मुंबई में संघर्ष
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत में उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रोफेसर सूरजभान ने जगजीत सिंह को काफ़ी उत्साहित किया। उनके ही कहने पर वे 1965 में मुंबई आ गए। यहां से शुरू हुआ उनका संघर्ष का दौर। पहले पहले बेरीज़ रेस्तराँ में गाना गाया करते थे। फिर निजी महफिलों ,शादी-समारोह वगैरह में गा कर गुजारा करते थे।
उन दिनों तलत महमूद, मोहम्मद रफ़ी साहब जैसों के गीत लोगों की पसंद हुआ करते थे। रफी-किशोर-मन्ना डे जैसे महारथियों के दौर में फिल्मों में गायन का मौका मिलना बहुत दूर था। तब की मशहूर म्यूज़िक कंपनी एच एम वी (हिज़ मास्टर्स वॉयस) को लाइट क्लासिकल ट्रेंड पर टिके संगीत की दरकार थी। जगजीत ने वही किया और पहला एलबम ‘द अनफॉरगेटेबल्स (1976)’ हिट रहा।
सिख वेश त्यागा
बहुत कम लोग जानते हैं कि सरदार जगजीत सिंह धीमान इस एलबम के रिलीज के पहले जगजीत सिंह बन चुके थे। बाल कटाकर असरदार जगजीत सिंह बनने की राह पकड़ चुके थे। जब एच एम वी ने उनका पहला एल्बम निकाला तो कंपनी ने कवर पर छापने के लिए जगजीत की तस्वीर मांगी। तस्वीर देख कंपनी ने कहा कि लोग एक सिख को गाते देखना नहीं पसंद करेंगे। जिसके चलते जगजीत ने अपना सिख वेश त्यागा।
उसी शाम एक दिलचस्प वाकया हुआ। जब वो अपने बाल कटाने के बाद एक शादी के रिसेप्शन में गाने पहुंचे तो आयोजकों ने उन्हें गाना गाने देने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा हमारी तो एक सिख युवक से बात हुई थी, आप क्यों आ गए? वो कहाँ है? जगजीत ने लाख समझाने की कोशिश की कि मैं ही वो सिख हूँ लेकिन उन्होंने उनकी एक नहीं सुनी।
उन्होंने कहा आप ये क्यों नहीं कहते कि सरदार जी को किसी दूसरे प्रोग्राम में ज़्यादा पैसे मिल रहे थे, इसलिए उन लोगों ने आपको यहाँ भेज दिया। जिसपर जगजीत ने कहा, ‘आप मेरा गाना सुन लें, मैं वहीं जगजीत सिंह हूँ। अगर मेरी आवाज़ वही हुई तो पैसे दीजिए वरना एक पैसा भी मत दीजिए।’ वो एक शर्त पर मान गए कि अगर किसी मेहमान ने शिकायत की तो वो उन्हें गाने के बीच से उठा कर बाहर कर देंगें। जैसे ही जगजीत ने गाना शुरू किया, सारे मेहमान वाह वाह कर उठे।
जगजीत जब अपना करियर बना रहे थे तो मेंहदी हसन और बेगम अख़्तर इस क्षेत्र में ख़ासा नाम कमा चुके थे। लेकिन उनके गायन से ये धारणा सी बन गई थी कि ग़ज़ल शायद आम आदमी के लिए नहीं है, वो लोग बड़े बड़े शायरों के कलाम गाते थे जो अक्सर आम आदमी के सिर के ऊपर से निकल जाते थे। जगजीत ने आसान भाषा के कलाम गाना शुरू किया और ये सुनिश्चित किया कि उनकी गाई ग़ज़ल का एक एक शब्द श्रोताओं की समझ में आए। नतीजा ये हुआ कि लोग लिखी हुई ग़ज़लें पढ़ पढ़ कर उन्हें याद रखने लगें।