2001 में मोदी के मुख्यमंत्री बनने के समय 5000 करोड़ की पूंजी वाले गौतम अडानी 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के समय 76000 करोड़ की संपत्ति और आज की तारीख में 6 लाख करोड़ से अधिक की संपत्ति के हैं मालिक
ईकोनोमिक्स टाइम्स ने डेटा सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार पिछले साल 31 दिसम्बर तक देश में तक 53 मिलियन लोग थे बेरोजगार
चरण सिंह राजपूत
मोदी सरकार पर जब जनता की उपेक्षा कर पूंजीपतियों के लिए काम करने का आरोप लगता है तो एक बड़ा तबका इसे राजनीतिक विरोध कहता है। ये लोग यह नहीं समझते कि मोदी सरकार में बेरोजगारी सबसे अधिक बढ़ी है। पूंजीपतियों को बढ़ावा देने का आरोप मोदी सरकार पर ऐसे ही नहीं लगता है। दरअसल कोरोना काल में लोग तो तबाह हो गए पर अडानी और अंबानी की संपत्ति में बेहताशा बढ़ोतरी हुई है। गौतम अडानी को तो मोदी ने गुजरात में मुख्यमंत्री बनने से ही बढ़ावा देना शुरू कर दिया था। दरअसल 2001 में मोदी के मुख्यमंत्री बनने के समय 5000 करोड़ की पूंजी वाले गौतम अडानी 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के समय 76000 करोड़ की संपत्ति का मालिक हो गए और आज की तारीख में 6 लाख करोड़ से अधिक की संपत्ति के मालिक हैं। अडानी ऐसे ही इतनी संपत्ति के मालिक नहीं हुए हैं। अडानी पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विशेष कृपा रही है। यह मोदी की अडानी पर विशेष मेहरबानी ही रही है कि जो संसाधन किसी समय सरकार के पास हुआ करते थे वे आज अडानी के पास हैं। हवाई अड्डा बंदरगाह, कोयला खदान विद्युत् उत्पादन वितरण, रेलवे खाद्य भंडारण, वितरण, सौर ऊर्जा बैंक सब कुछ तो है तो आज की तारीख में अडानी के पास है। यह मोदी सरकार की है अडानी के प्रति दरियादिली है कि बीजेपी राज में अडानी का साम्राज्य बीजेपी शासित राज्यों तक ही नहीं है दूसरे अन्य राज्यों में भी फलफूल रहा है।
दरअसल अडानी की संपत्ति जिस तेजी से बढ़ रही है उतनी ही तेजी से देश में गरीबी बेरोजगारी भी बढ़ रही है। मोदी के इन 7 साल में 18000 से अधिक बेरोजगारों ने आत्महत्या की जबकि उसके पहले के 7 साल में 2000 बेरोजगारों ने आत्महत्या की थी।
दरअसल अडानी की संपत्ति जिस तेजी से बढ़ रही है उतनी ही तेजी से देश में गरीबी बेरोजगारी भी बढ़ रही है। मोदी के इन 7 साल में 18000 से अधिक बेरोजगारों ने आत्महत्या की जबकि उसके पहले के 7 साल में 2000 बेरोजगारों ने आत्महत्या की थी।
मोदी सरकार भले ही विभिन्न मुद्दों पर वाहवाही लूटती घूम रही हो पांच राज्यों में चल रहे विधान सभा चुनाव में प्रधानमंत्री अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाते गिनाते थक नहीं रहे हैं पर जमीनी हकीकत यह है कि उनके राज में अडानी अम्बानी जैसे पूंजीपतियों को ही फायदा हुआ है। आम आदमी तो बस बेहाल ही हुआ है। इसमें दो राय नहीं कि आज की तारीख में भारत में बेरोजगारी की जड़ें बहुत गहरी हो गई हैं। भारत में एक बड़ा वर्ग अभी भी रोजगार की तलाश में है और इसमें पढ़े-लिखे युवाओं की संख्या भी बहुतायत है। ईकोनोमिक्स टाइम्स ने डेटा सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार पिछले साल 31 दिसम्बर तक देश में तक 53 मिलियन लोग बेरोजगार थे। इनमें से 35 मिलियन यानी 3.5 करोड़ लोग तो वो थे, जो एक्टिवली रोजगार की तलाश में थे, मतलब ये लोग तो मेहनत करके रोजगार की तलाश में हैं और उन्हें जल्द से जल्द रोजगार की आवश्यकता थी। इसमें से 8 मिलियन संख्या महिलाओं की थी। इनमें 17 मिलियन यानी 1.7 करोड़ लोग वो थे, जिन्हें काम चाहिए मगर वो सक्रिय होकर अभी जॉब नहीं ढूंढ रहे हैं। इसमें महिलाओं की संख्या 9 मिलियन थी।
सीएमआईई के अनुसार वर्ल्ड बैंक ने साल 2020 में महामारी की मार में वैश्विक रोजगार दर 55% और 2019 में 58% आंकी थी, जबकि भारत 43% के स्तर पर था। हालांकि, सीएमआईई के अनुसार यह दर 38 फीसदी है। सीएमआईई का कहना है कि वर्ल्ड बैंक ने साल 2020 में महामारी की मार में वैश्विक रोजगार दर 55% और 2019 में 58% आंकी थी, जबकि भारत 43% के स्तर पर था. हालांकि, सीएमआईई के अनुसार यह दर 38 फीसदी थी।
बेरोजगारी देश के लिए बड़ी समस्या है। बेरोजगारी के आंकड़े छिपाने से इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता। सरकार को रोजगार की व्यवस्था करनी चाहिए। आंकड़े छिपाने से कुछ नहीं होने वाला। देश में रोजगार के लिहाज से नए साल की शुरूआत ठीक नहीं रही है।
जनवरी की शुरूआत में खबर आई थी कि बीते साल लगभग 1.10 करोड़ नौकरियां खत्म हुई हैं और अब महीने के आखिर में नेशनल सैंपल सर्वे आफिस (एनएसएसओ) के एक सर्वेक्षण के हवाले से यह बात सामने आई है कि वर्ष 2017-18 के दौरान भारत में बेरोजगारी दर बीते 45 वर्षों में सबसे ज्यादा रही। बीते दिनों सरकार ने गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण का एलान किया था। उस समय भी सवाल उठा था कि जब नौकरियां ही नहीं हैं, तो आरक्षण देने की क्या तुक है। नेशनल सेंपल सर्वे ऑफिस के पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे के मुताबिक मोदी सरकार में बेरोजगारी ने 45 साल का रिकार्ड तोडा है। रिपोर्ट कहती है कि देश के शहरी इलाकों में बेरोजगारी दर 7.8 फीसदी, जबकि ग्रामीण इलाकों में 5.3 फीसदी है।
जनवरी की शुरूआत में खबर आई थी कि बीते साल लगभग 1.10 करोड़ नौकरियां खत्म हुई हैं और अब महीने के आखिर में नेशनल सैंपल सर्वे आफिस (एनएसएसओ) के एक सर्वेक्षण के हवाले से यह बात सामने आई है कि वर्ष 2017-18 के दौरान भारत में बेरोजगारी दर बीते 45 वर्षों में सबसे ज्यादा रही। बीते दिनों सरकार ने गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण का एलान किया था। उस समय भी सवाल उठा था कि जब नौकरियां ही नहीं हैं, तो आरक्षण देने की क्या तुक है। नेशनल सेंपल सर्वे ऑफिस के पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे के मुताबिक मोदी सरकार में बेरोजगारी ने 45 साल का रिकार्ड तोडा है। रिपोर्ट कहती है कि देश के शहरी इलाकों में बेरोजगारी दर 7.8 फीसदी, जबकि ग्रामीण इलाकों में 5.3 फीसदी है।
गत दिनों फ्रेंडशिप डे के अगले दिन जब प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उद्योगपति मुकेश अंबानी और गौतम अडानी के फोटो शेयर की थी तो राजनीतिक हलके में बड़ा बवाल मचा था। इन तस्वीरों के लेकर सोशल मीडिया पर बड़ा हंगामा खड़ा हो गया था। तब प्रशांत भूषण ने पीएम मोदी की अंबानी और अडानी संग तस्वीर साझा करते हुए कहा था कि हर किसी को ऐसे वफादार दोस्त नहीं मिलता है जो आपके लिए पूरे देश को बेच दे।
प्रशांत भूषण ने जो तस्वीर साझा की थी उसमें पीएम मोदी एक तरफ कारोबारी गौतम अडानी के साथ हंसी ठहाका लगाते हुए दिखाई दे रहे थे तो दूसरी ओर मुकेश अंबानी के साथ नजदियां दर्शा रहे थे। प्रशांत भूषण के अलावा कांग्रेस सांसद राहुल गांधी भी इन तस्वीरों को लेकर कटाक्ष कर चुके हैं। उन्होंने भी एक वीडिया साझा किया था, जिसमें विभिन्न मौकों पर पीएम मोदी के साथ कारोबारी मुकेश अंबानी, गौतम अडानी और अनिल अंबानी दिखाई दे रहे थे। इस तस्वीर के साथ राहुल ने लिखा था कि हम दो हमारे दो की सरकार। इस वीडियो में उन्होंने अंग्रेजी सॉन्ग आई विल भी देयर फॉर यू गाने का इस्तेमाल किया था।
दरअसल अंबानी और अडानी के साथ प्रधानमंत्री की मित्रता पर विपक्ष हमेशा से ही सवाल उठाता रहा है।
दरअसल अंबानी और अडानी के साथ प्रधानमंत्री की मित्रता पर विपक्ष हमेशा से ही सवाल उठाता रहा है।