‘शब्द श्रद्धांजलि’ :  पिता के नाम एक शाम

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पिता के नाम एक शाम
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राजनीतिक और समाजसेवी प्रेम किशोर पांडेय की बेटी लेखिका कल्पना पांडेय ने पिता की पुण्यतिथि पर आयोजित किया ऑनलाइन कार्यक्रम 

द न्यूज 15 
नई दिल्ली/नोएडा। ‘ विद्या -प्रेम संस्कृति न्यास ‘ के तत्वावधान में प्रख्यात लेखिका कल्पना पांडेय के पिताजी प्रेम किशोर पांडेय की पुण्यतिथि का कार्यक्रम ‘शब्द श्रद्धांजलि’  के रूप में ऑनलाइन किया गया। पिता की स्मृतियों को धरोहर के रूप में संजोकर, एक क्रमबद्ध श्रृंखला के रूप में, सतत् चलने वाले,  इस पावन आयोजन का संचालन खुद  डॉ. कल्पना पांडेय ‘नवग्रह’ ने किया।
आयोजन के पीछे छिपे अपने उद्देश्य को बताते हुए उनकी पुत्री ने एक राजनीतिक, समाजसेवी, बहुभाषी और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी, कुशल वक्ता, कवि और शायर के रूप में पिता की सुंदर छवि को याद किया। अपनी जीवन – यात्रा में पिता के व्यक्तित्व को महत्वपूर्ण स्थान देने और उनको अमर बनाने के लिए प्रतिवर्ष 3 मार्च को उनके अवतरण दिवस पर ऐसे व्यक्तित्व को पुरस्कृत कर पितृऋण चुकाने की बात कही, जो सामाजिक- साहित्यिक – सांस्कृतिक सरोकारों के साथ नेक और सरल व्यक्तित्व का धनी हो । प्रशस्ति पत्र शाल और पुरस्कार राशि से सम्मानित कर अपने को गौरवान्वित करने की बात कही।
कार्यक्रम में दो माताओं (मां -श्रीमती विद्या पाण्डेय और सास- श्रीमती राजकुमारी देवी) की उपस्थिति और आशीर्वाद ने आयोजन की पवित्रता को और बढ़ा दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ लेखिका और साहित्यकार श्रीमती सविता चड्ढा ने पिता की छत्रछाया आसमान से करते हुए कहा – जब तक तुम साथ रहे पापा सारा आसमान मेरा था। तुम आसमानी हुए तो  चांद सूरज नक्षत्र अब मेरे हुए।
मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ उपन्यासकार कहानीकार श्रीमती संतोष श्रीवास्तव ने पिता की याद को जीवंत रखने और वितरण की भरपाई पर अपनी शुभकामनाएं दीं और ‘कहा मेरे लिये मेरे पापा किसी सुपरमैन या मैजिशियन से कम नहीं थे, जो हर वक़्त हमारे लिए एक पैर पर कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार खड़े रहते हैं। मगर एक पिता पर घर की ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ बाहर की दुनिया का भी बोझ होता है। जिससे उनकी छवि एक कठोर और एक सख्त दिल वाले व्यक्ति की लगती है, मगर असल में वे ऊपर से नारियल जैसे सख्त थे और अंदर से कोमल। बेटियां अपने पिता से ज्यादा लगाव रखती हैं। कवियत्री निर्मला पुतुल कहती हैं कि बाबू मुझे इतनी दूत मत ब्याहना कि मुझसे मिलने की खातिर तुम्हें अपनी बकरियाँ बेचनी पड़ें।’
विशिष्ट अतिथि के रूप में  मधु चतुर्वेदी गजरौला ने पिताजी की मधुर स्मृतियों को याद कर बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा- ‘ एक बेटी अपने पिता की विरासत को सहेज कर अपनी अस्मिता को और भी सशक्त व समृद्ध कर रही है इस हेतु हार्दिक साधुवाद!यह अत्यन्त प्रेरणास्पद है।  महज़ विस्तार ही विस्तार तो अम्बर नहीं होता।
बुझाए प्यास प्यासों की न जो,सर्वर नहीं होता।।
नहीं माँ बाप की ममता,दुआओं का बसर जिसमें,
भवन वह भव्य हो सकता है,पर वो घर
नहीं होता।’
डॉक्टर दुर्गा सिन्हा उदार ने कहा-‘ मित्र,सखा,साथी,बंधु सब
नाम तुम्हीं से सार्थक हैं
तुम बिन जीवन नहीं काम  का,वैभव सभी निरर्थक है
तुमने ही विश्वास जगाया
पल-पल आगे बढ़ने का
चंदा-सूरज और सितारे ,
मेरे सभी समर्थक हैं।’
डॉ पुष्पा जोशी ने उनको राजनैतिक श्रद्धांजलि देते हुए समसामयिक रचना प्रस्तुत की , पुष्पा सिंह बिसेन (अध्यक्ष नारायणी संस्थान ) ने कहा –  ‘अपने पूर्वजों की स्मृति में क़ोई आयोजन करना बहुत ही पुण्य कार्य होता, और पिता को पुत्री द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके पथ पर चलना बहुत ही श्रेष्ठ आचरण होता है, मुझे खुशी है कि कल्पना जैसी बेटियां दोनों परिवारों की मर्यादा रखते हुए यह सब निभा रहीं हैं।’ , श्रीमती मधु मिश्रा जी ने पिता के स्नेहिल संबल की याद दिलाते हुए कहा- ‘ गिर के जब उठ न पायी, बढ़कर उंगली थामी आपकी।
इस तरह ताकत दिलाई, थी कदरदानी आपकी। ‘  ,  श्रीमती वीणा अग्रवाल जी जन्मदाता के प्रति अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए – ‘ मुझे जिसने उंगली पकड़कर चलाया
मेरे सिर पर ताउम्र है उसकी छाया
मेरी हर तमन्ना को हंसकर निभाया
नमन है पिता तुमसे जीवन यह पाया।’  ,  श्रीमती शकुंतला मित्तल जी ने पिता की स्मृतियों को कुछ इस तरह अपनी शब्द श्रद्धांजलि समर्पित की- ‘ पिता का साया आज फिर यादों में आ लहराया।
स्नेह आपका छतनार वृक्ष  की  जैसे घनेरी छाया।
आज नमन, वंदन तुमको मैं  बार बार हूँ करती
ओजस्वी स्वरूप आपका स्मृतियों में मुसकाया। ‘ ,  श्रीमती ऋचा सिन्हा ने पिता को याद करते हुए कहा-  ‘ पापा तुम्हारे आँगन की कली थी मैं ।
चिड़िया  सी  बहुत  चुलबुली थी मैं ।
अलमस्त  आवारा  बेपरवाह  सी ,
तुम्हारी   मिश्री   की   डली  थी  मैं । ‘ , श्रीमती तृप्ति मिश्रा जी ने पिता के लिए अपनी रचना पढ़ते हुए कहा – ‘ बच्चे खोजें पापा को अब
तुम क्यों ऐसे चले गए
सुना घर सूने गलियारे
भीगी पलकों से तुम्हे पुकारे
तुम क्यों ऐसे चले गए।’  ,  श्रीमती मोनिका शर्मा जी शब्द सुमन अर्पित करते हुए कहा- ‘क़द यूँ बढ़ा तुम्हारा कि
झुकना पड़ा मुझे
तुम तो बढ़े चले गए
रुकना पड़ा मुझे। ‘ ,  श्रीमती ममता सिंह ने कहा- ‘ पिता कोई आम नहीं थे वह शख्स एक मिसाल थे
नसीब वाले होते हैं जिनके पिता साथ होते हैं। ‘ प्रीति राही की उपस्थिति ने अपने मार्मिक शब्दों में कहा- ‘ सभी रंग बेरंग हो गये
दर्द, आंसू,भूख और संधर्ष
शेष हैं बस तुम्हारी सफ़ेद साड़ी
हां बहुत कीमती है, मां की सफेद साड़ी।’ शब्द श्रद्धांजलि की शाम को यादगार बना दिया।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में श्रीमती सविता चड्डा ने कहा कि एक पुत्री का अपने पिता के प्रति यह आदर भाव और आज का सफल आयोजन विश्व की सभी पुत्रियों का मस्तक ऊंचा कर रहा है । उन्होंने यह भी कहा कि आज के आयोजन में सभी भाव श्रेष्ठ और एक से बढ़कर एक रहे । पिता के लिए बेटियां अपने मन में बहुत ही मधुर और आदर का भाव रखतो  हैं यह डॉक्टर कल्पना पांडेय ने सिद्ध कर दिया है । इस अवसर पर श्रीमती सविता चड्डा ने कहा कि विद्या – प्रेम संस्कृति न्यास भविष्य में भी संबंधों की प्रगाढ़ता को लेकर सक्रिय रहेगा और पिता पुत्री के स्नेह आपको पल्लवित करता रहेगा। आमंत्रित अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए पवित्र आयोजन संपन्न हुआ।

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