नीतीश कुमार की बीमारी से उठ रहे सियासी सवाल

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 टूट चुकी है 19 साल की परम्परा!

दीपक कुमार तिवारी

नई दिल्ली/पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीमार क्या हुए, राज्य में नई राजनीतिक उठापटक की कहानी शुरू हो गई। कुछ हो न हो, पर नीतीश कुमार कुछ इसी तरह से बीमार रहे तो एनडीए की राजनीति किंतु-परंतु के घेरे में तो चली ही जाएगी। इसके साथ ही एनडीए के छोटे दल जो बड़ा चेहरा दिखाने लगे हैं, उनकी टकराहट की गूंज कुछ बढ़ भी सकती है। सबसे ज्यादा चिंता की बात भाजपा के लिए ही हो जाएगी, क्योंकि बिहार में ‘कुर्सी की राजनीति’ में नीतीश कुमार उनके लिए तो तुरुप का इक्का ही हैं। दिलचस्प तो यह है कि बीमारी के कारण नीतीश कुमार जिन महत्वपूर्ण कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हुए, विपक्ष इसे एनडीए में खटपट के रूप में देखने लगा है।
अपने राजनीतिक करियर में नीतीश कुमार के चिंतन में सबसे ज्यादा दलित पीड़ित ही रही है। लेकिन, इस बार नीतीश कुमार के जीवन का नकारात्मक ही सही पर एक रिकॉर्ड बन गया। दरअसल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार गणतंत्र दिवस के मौके पर दलित टोला जाते रहे हैं। लेकिन खुद के रचे इतिहास को खुद नीतीश कुमार ने ही इस बार बदल दिया। दरअसल होता यह था कि गणतंत्र दिवस पर नीतीश कुमार गांधी मैदान आते थे, और यहां से किसी दलित टोले में उनकी उपस्थिति में झंडोत्तोलन होता था।
इस गणतंत्र दिवस पर भी दलित टोला में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जाने का कार्यक्रम तय था। मुख्यमंत्री को फुलवारी शरीफ प्रखंड के महुली गांव के महादलित टोले में जाना था। प्रशासनिक तैयारी की जा रही थी। बड़ा मंच बना। सजावट की सारी व्यवस्था की गई। नीतीश कुमार पटना के गांधी मैदान भी गए, पर सीएम झंडोत्तोलन के बाद सीधे अपने आवास चले गये।
सीएम नीतीश कुमार के बदले मंत्री विजय चौधरी महुली गांव में पहुंचे। विजय चौधरी की मौजूदगी में महादलित टोले के बुजुर्ग सुभाष रविदास ने झंडोत्तोलन किया।इसके अलावा भी कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के नहीं जाने से राजनीतिक गलियारा अफवाहों से भर गया था।
गत माह जनवरी को पटना में देश भर के पीठासीन पदाधिकारियों का सम्मेलन हुआ था। इसमें लोकसभा के अध्यक्ष समेत सारे राज्यों के विधानसभा अध्यक्ष मौजूद थे। कार्यक्रम में नीतीश कुमार को आना था और संबोधन भी करना था। लेकिन नीतीश कुमार कार्यक्रम में नहीं गए।
ज्ञात हो कि 24 जनवरी को कर्पूरी जयंती मनाई जाती है। इस मौके पर उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पटना और समस्तीपुर के दौरे पर आये थे। प्रोटोकॉल तो यही कहता है के नीतीश कुमार को पटना एयरपोर्ट पर ही उप-राष्ट्रपति का स्वागत करना चाहिए था, लेकिन वे वहां नहीं गए। तय यह हुआ था कि स्व. कर्पूरी ठाकुर के गांव में आयोजित कार्यक्रम में उप राष्ट्रपति और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ नीतीश कुमार भी मौजूद रहेंगे। लेकिन नीतीश कुमार मुख्य समारोह में शामिल नहीं हुए।
ऐसे में राजनीतिक जानकार का मानना है कि नीतीश कुमार का ही वह चेहरा है, जो भाजपा को सत्ता के करीब लाता है। और यह बीमारी जिसके कारण महत्वपूर्ण कार्यक्रम तक छूट जा रहे हैं। ऐसे में चुनाव प्रचार से भी अगर नीतीश कुमार दूर रह गए तो एनडीए में दरार तो पड़ेगी ही, जदयू भी विभाजित हो सकती है। सेकंड लाइनर नहीं होने के कारण पार्टी बिखर भी सकती है।इसके साथ ही एनडीए में शामिल छोटे दलों ने पहले से ही डिमांड का पहाड़ खड़ा कर रखा है। तब ये सौ फीसदी स्ट्राइक रेट वाली पार्टियां हिस्सेदारी की सीमा हर हाल में पाना चाहेंगी। और ये स्थितियां महागठबंधन की लड़ाई को अतिरिक्त ताकत दे जाएगा। एनडीए में नीतीश कुमार के विकल्प को ले कर कोई चेहरा भी नहीं है। यह एक यक्ष प्रश्न तो खड़ा हो जाएगा।

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