केएम भाई
हर गली हर चौराहा खुद से पूछता है,
क्या तुम्हारे मुल्क का
वजीर-ए-आलम डरता है ..
तुम्हारे मुल्क में लोकतंत्र इतना सस्ता क्यों,
कि नारे लगाने वाला भी
जान-ए-दुश्मन लगता है ..
बड़ी शर्मिंदगी महसूस होती है
जब महफ़िल खाली होती है
और हमारे आने की आहट
भी तुम्हारे लिए गाली होती है ..
तुम्हारे मुल्क का कैसा प्रोटोकॉल है,
कि पेगासस हमारा बेडरूम झाँकता है ..
और हम सड़क पर भी आ जाए
तो तुम्हारे लिए जान-ए-खतरा होता है ..
हर गली हर चौराहा खुद से पूछता है,
क्या तुम्हारे मुल्क का
वजीर-ए-आलम डरता है ..
वजीर-ए-आलम डरता है ..