वृक्ष-आयुर्वेद

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प्रोफेसर बलवंत सिंह राजपूत  

आधुनिक विज्ञान में भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस ने प्रयोग द्वारा सिद्ध किया था कि पेड़ पौधे आदि वनस्पति भी जीव होते हैं। भारत में वनस्पति के जीव होने की ये मान्यता वैदिक  काल से ही रही है। इसके अनेक प्रमाण सभी वेदों, उपवेदों, वैदिक दर्शनों तथा उपनिषदों में पाए जाते हैं। वनस्पतियों में जीवन होने की अवधारणा  प्राचीन भारतीयों के मन मानस में संस्कार रूप में इतनी गहरी बस गई थी की ग्रामीण अनपढ़ महिलाएं भी बच्चो को रात्रि में पौधों को न छूने का निर्देश ये कह कर देती थी कि रात में पेड़ पौधे सो जाते हैं। कई प्रकार के वृक्षों एवम औषधि पोधों की श्रद्धापूर्वक देखभाल करने एवम विभिन्न अवसरों पर उनकी स्तुति तथा उपासना करने का प्रचलन  भारत में वैदिक काल से है। मनुष्यो तथा जंतुओं की भांति पेड़ पौधों में भी संवेदना होती है तथा उन्हें भी स्वास्थ्य संबंधी व्याधियां होती हैं और वे भी रुग्ण हो जाते हैं । इन पर भी पर्यावरण में प्रदूषण के कुप्रभाव पड़ते हैं और ये भी संगीत एवम वैदिक मंत्रों से प्रभावित होते हैं। ये अवधारणाएं भारतीय जनमानस  में प्राचीन काल से ही व्याप्त हैं।   
पांच हजार वर्षों से भी पूर्व महऋषि पाराशर ( महृषि वेद व्यास के जनक) द्वारा सभी प्रकार की वनस्पतियों पर गहन शोध के बाद वृक्ष – आर्युवेद की रचना की गई थी तथा इसे पेड़ पौधों का स्वास्थ्य विज्ञान घोषित किया गया था। उनके निर्देशन में अत्रेय, हरित, मेल, गर्ग, करल, सुश्रुत, तथा काव्या आदि अनेक ऋषि वनों एवम पर्वतों पर औषध पादपों की खोज में घूमते रहते थे। वराह मिहिर द्वारा रचित ब्रह्म संहिता तथा कौटिल्य द्वारा रचित अर्थ शास्त्र में पाराशर के व्रक्षायुर्वेद का संदर्भ अति विकसित वनस्पति विज्ञान के रूप में दिया गया है। प्राचीन  भारत में  विज्ञान की  अति विकसित विधाओं में  व्रक्षायुर्वेद को भी सम्मिलित किया जाता है। व्रक्षायुर्वेद के निम्नांकित छः अंक (वॉल्यूम्स) उपलब्ध हैं:
i) बीजोत्पत्ति कांड
ii) वनस्पति कांड
iii) गुल्मक्षुप कांड
iv)  वनस्पत्या कांड
v) विरुधावली कांड
vi) क्षितशु कांड
इनमे बीजोत्पत्ति कांड में आठ अध्याय हैं जिनमे उन्नत बीजों को विकसित करने तथा उन्हें  सुरक्षित रखने की अति उन्नत विधियां बताई गई है , उन्नत बीच तकनीक ( सीड टेक्नोलॉजी) विकसित की गई है, उनके रोपण के लिए उत्तम भूमि के चयन एवम मृदा विकास पर विस्तार से वर्णन किया गया है तथा उपयुक्त वातावरण एवम जलवायु का विश्लेषण किया गया है।  विरुद्धावली कांड मे पेड़ पौधों में  वात, पित्त, एवम कफ संबंधित व्याधियों एवम उनके उपचार का विस्तृत वर्णन है।   वनस्पति कांड मे पेड़ पौधों के विकास पर वातावरण एवम पर्यावरण के प्रभावों का विस्तार से वर्णन किया गया है। गुल्मक्षुप कांड मे पेड़ पौधों मे  संवेदना तथा इन पर पड़ने वाले वेदमंत्रो के सकारात्मक प्रभाव का विस्तार से वर्णन मिलता है। क्षित्शु कांड में मानव सभ्यता एवम संस्कृति के विकास में पेड़ पौधों के योगदान को विस्तार से उल्लेखित किया गया है।
वृक्ष आयुर्वेद में किसी पौधे को पानी देने की समानता परम  परमात्मा शिव को जल चढ़ाने से की गई है और उल्लेख किया गया है कि जैसे परमात्मा शिव ब्रह्मांड के कल्याण हेतु विष पीकर अमरत्व देते हैं वैसे हर वृक्ष एवम  हर पौधा कार्बन डाई ऑक्साइड के विष को वायुमंडल से सोख कर सभी प्राणियों को प्राणवायु (ऑक्सीजन) प्रदान करता है।

व्रक्षायुर्वेद में वर्णित इन सभी  वैज्ञानिक तथ्यों को मेरी नव प्रकाशित पुस्तक,
” Historical, Cultural and Scientific Heritages of India”
में विस्तार से किया गया है

(लेखक वरिष्ठ वैज्ञानिक, ( पूर्व) कुलपति, हे. न. ब . गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर;
          कुलपति, कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल एवं उ प्र राज्य उच्च शिक्षा परिषद हैं)

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