चरण सिंह राजपूत
भले ही किसान आंदोलन के दबाव में मोदी सरकार ने तीन नये कृषि कानून वापस ले लिये हों पर किसान आंदोलन भाजपा का पीछा नहीं छोड़ पा रहा है। जहां सरकार पर वादा-खिलाफी का आरोप लगाते हुए ३१ जनवरी को संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले विश्वासघातक दिवस मनाया जा रहा है वहीं पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में किसान नेता भाजपा के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं। किसानों ने जहां पंजाब में अपनी पार्टी बना ली है वहीं उत्तर प्रदेश में भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत लगातार भाजपा के खिलाफ आग उगल रहे हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में किसान आंदोलन का असर विशेष रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में देखा जा रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश वह क्षेत्र है, जिससे उत्तर प्रदेश का चुनावी माहौल बनता है।
यह जग जाहिर है कि मुजफ्फरनगर दंगों के नाम पर भाजपा ने न केवल २०१७ में विधानसभा चुनाव जीता बल्कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा का यह मुख्य मुद्दा था। इस बार इस क्षेत्र में किसान आंदोलन का असर पड़ता दिखाई देख भाजपा कैराना में हिन्दुओं के पलायन को मुख्य मुद्दा बनाने में लगी है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का घर-घर जाकर पर्चे बांटना इसी कड़ी का हिस्सा है।
दरअसल 2013 में सांप्रदायिक दंगे का दर्द झेलने वाला मुज़फ़्फ़रनगर जिले से सटे शामली जिले की कैराना विधानसभा पर भाजपा ने फोकस किया हुआ है। खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह कमान संभाल रखी है। अमित शाह का कैराना में लगना भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति को हवा देना है। यह अपने आप में दिलचस्प है कि अमित शाह को पांच साल बाद कैराना और उसके कथित पलायन की फिर याद आयी है। अमित शाह ने कैराना के 6 परिवारों से मुलाकात के जरिये अपने सांप्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए कहा है कि “ये वही कैराना है जहां पहले लोग पलायन करते थे, जब मैं लोगों से मिला तो उन्होंने कहा कि मोदी जी की कृपा हो गई। उनका मतलब है कि बीजेपी की वजह से इन लोगों का पलायन रुका है। उधर मुजफ्फरनगर के ही रहने वाले किसान नेता राकेश टिकैत ने एक निजी टीवी में दिए इंटरव्यू में कहा कि पलायन रोजगार के चलते होता है।
यह कैराना मुद्दे को ही हवा देना था कि 15 जनवरी को समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी व सिटिंग विधायक नाहिद हसन को नामांकन करते जाते समय यूपी पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था, जहां से विशेष अदालत ने उन्हें 14 दिन के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। दरअसल 6 फरवरी 2021 को सपा विधायक और प्रत्याशी नाहिद हसन, उनकी मां व पूर्व सांसद तबस्सुम हसन, समेत 40 लोगों के ख़िलाफ़ शामली थाना क्षेत्र में गैंगस्टर एक्ट के तहत केस दर्ज़ कराया गया था। भाजपा ने इस मामले को सांप्रदायिक रंग देने की रणनीति बनाई है। इस रणनीति पर अमल को शनिवार 22 जनवरी को अमित शाह कैराना पहुंचे हैं। भाजपा के लिए यह भी एक बड़ी दिक्कत है कि यह क्षेत्र गन्ना क्षेत्र माना जाता है और पिछली तीन सरकारों की तुलना में योगी सरकार में गन्ने के रेट में सबसे कम बढ़ोत्तरी हुई है। किसान नेता राकेश टिकैत समय-समय पर गन्ने के रेट और बकाया का मुद्दा उठाते रहते हैं। किसान आंदोलन के बाद रालोद और सपा के गठबंधन के बाद भाजपा से जाट बोटबैंक खिसकने का डर आरएसएस और भाजपा को सताने लगा है। रालोद के पक्ष में जाट हुंकार भरते हुए प्रतीत हो रहे हैं। शामली में तो कई गांवों में भाजपा नेताओं के प्रवेश का भी विरोध हो रहा है। कई लोगों ने तो अपने घरों पर भी भाजपा नेताओं को खदेड़ने का स्लोगन लगा दिया है।
दरअसल कैराना विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या 3 लाख 17 हजार के क़रीब है। जिसमें 1,10000 मुस्लिम वोट हैं। वहीं क़रीब 90 हजार जाट मतदाता हैं। 11,000 ब्राह्मण, 7000 वैश्य, 4,800 क्षत्रिय, 25,000 गुर्जर मतदाता, 34,000 कश्यप मतदाता, 36,000 दलित मतदाता, भी कैराना में निर्णायक हैं। यह तो एक विधानसभा की बात है। भाजपा इस विधानसभा से पूरे विधानसभा क्षेत्र में माहौल बनाना चाहती है। इस इलाके से हुकुम सिंह 7 बार विधायक और एक बार सांसद रहे हैं। वह समय समय पर हिन्दुओं के पलायन का मुद्दा उठाते रहते हैं। 2017 में भाजपा ने दिवंगत हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को कैराना विधानसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया था, वह बात दूसरी है कि सांप्रदायिक और पलायन के मुद्दे के बावजूद वह चुनाव नहीं जीत सकी थीं। मतलब साफ़ है कि कैराना पर फोकस करना कैराना विधानसभा सीट नहीं बल्कि कैराना में हिन्दुओं के पलायन के मुद्दे को लेकर पूरे प्रदेश के हिन्दुओं को एकजुट करना है।
दरअसल नए तीन कृषि कानूनों के विरोध में चले किसान आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश भाजपा ने भरपूर की है। भाजपा और उसके समर्थकों ने आंदोलित किसानों को देशद्रोही, नक्सली, नकली किसान न जाने क्या क्या बोला। लखीमपुर में तो भाजपा के केंद्रीय राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे ने अपनी गाड़ी से कुचलकर तीन किसानों को ही मार डाला। इन सबके बावजूद टेनी को मंत्री पद से नहीं हटाया गया। इतना ही नहीं नए कृषि कानून वापस लेने के बाद जब किसान एम्एसपी गारंटी कानून के अलावा आंदोलन में किसानों पर दर्ज मुकदमों को वापस लेने और आंदोलन में दम तोड़ने वाले किसानों को मुआवजा देने की मांग पर अड़े तो मोदी ये सभी मांगें मान ली। अब संयुक्त किसान मोर्चा ने 7 जनवरी को बैठक की तो सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए 31 जनवरी को विश्वास घात आंदोलन दिवस मनाने का एलान कर दिया। ऐसे में भाजपा चाहती है कि कैराना में हिंदुओं के पलायन को मुद्दा बनाकर एक हिंदू मुस्लिम का माहौल बनाया जाये।