सी.एस. राजपूत
जिस ट्रैक्टर मार्च को भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत बिना अनुमति के निकालने की बात कर रहे थे। उस ट्रैक्टर मार्च को लेकर ऐसा क्या हो गया है कि आज मैराथन चली संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में उसे स्थगित करना पड़ा। ऐसा क्या हो गयाा कि मोदी सरकार को झुकने के लिए मजबूर करने वाले किसान नेताओं को समझौता करना पड़ा।
मोदी सरकार को संसद सत्र में एमएसपी खरीद पर कानून बनाने का मौका दे दिया। दरअसल मोदी सरकार के नये कृषि कानून वापस लेने के बाद पंजाब के कादिया समेत कुछ जत्थेबंदियां नये कृषि कानून के वापस लेने पर संतुष्ट नजर आ रहे हैं। ये किसान नेता एमएसपी खरीद कानून यूपी के किसानों का मुद्दा मानते हैं। इन संगठनों की बातों से ऐसा लग रहा है कि ये यूपी के किसानों के एमएसपी खरीद कानून को लेकर होने वाले संघर्ष में शामिल होना नहीं चाहते हैं।
कहना गलत न हेागा कि आने वाले समय में सिंघु बार्डर और टिकरी बार्डर पर किसान आंदोलन कमजोर और गाजीपुर बार्डर पर मजबूत होने लगे। दरअसल यूपी में एमएसपी पर खरीद न होने के कारण यहां के किसान एमएसपी खरीद पर कानून चाहते हैं। यही वजह रही कि किसान आंदोलन के एक साल पूरे होने पर सबसे अधिक किसान गाजीपुर बार्डर पर जुटे। यह पंजाब के कुछ किसान संगठनों के अचानक बदले रुख के चलते २९ नवम्बर को पंजाब के ३२ किसान जत्थेबंदियों की बैठक होगी, जिसमें संघर्ष को आगे लेकर जाने को फैसला होगा।
इसी के साथ एमएसपी खरीद कानून को लेकर ४ दिसम्बर को संयुक्त किसान मोर्चा की जो बैठक होगी। मतलब किसान आंदोलन में कुछ नया जरूर हुआ है। दरअसल नये कृषि कानून के विरोध में जो आंदोलन एक साल से चल रहा है यह पंजाब से शुरू हुआ। इसके बाद हरियाणा में जोर पकड़ा। बाद में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान जुटे। चाहे दर्शन पाल सिंह हों, गुरनाम सिंह चढ़ूनी हों, योगेंद्र यादव हों या फिर राकेश टिकैत सभी किसान नेता पंजाब के किसानों के आंदोलन को आक्रामक करने के बाद आंदोलन से जुड़े। किसान आंदोलन ने सबसे पहले सिंघु बार्डर पर जोर मारा और फिर टिकरी बार्डर और फिर गाजीपुर बार्डर।
गाजीपुर बार्डर पर होने वाले आंदोलन को भाकियू नेता राकेश टिकैत ने इतनी मजबूती प्रदान कर दी कि गाजीपुर बार्डर आंदेालन का हॉट स्पाट बन गया। राकेश टिकैत के आंसूओं ने ऐसा समा बांधा कि राकेश टिकैत किसान आंदोलन का चेहरा बन गया। किसान आंदोलन को मोदी सरकार के साथ ही भाजपा और उनके सहयोगी संगठनों और उनके समर्थकों ने बदनाम करने की पूरी कोशिश की हो पर किसान आंदोलन दिन प्रतिदिन मजबूत होता गया। अब उप चुनाव में भाजपा की हार और अगले साल पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा समेत पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में जब भाजपा को हार का डर सताने लगा तो मोदी सरकार ने नये कृषि कानून वापस ले लिये।
ऐसे में किसान नेताओं का उत्साह और आत्मविश्वास आसमान पर है। यदि पंजाब का यह जत्था ऐसे आंदोलन से हटता है तो आंदोलन पर इसका असर पड़ने की पूरी आशंका है। ऐसे में पंजाब के दूसरे जत्थे भी निराश हो सकते हैं।