पंजाब में 56 सालों से कोई हिंदू CM नहीं, पहले President Rule की सच्चाई

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पंजाब में 56 साल
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आशीष जैन 

नई दिल्ली। देश में पंजाब एक ऐसा राज्य है, जिसे हर किसी ने अलग-अलग नजरिए से देखा है। किसी ने पंजाब को हरियाली के नजरिए से देखा तो किसी ने पंजाब को उड़ता पंजाब देखा, लेकिन पंजाब का भारतीय शासन में क्या योगदान है  ।  उसके बारे  में बहुत कम लोग ही जानते होंगे। पंजाब एक मात्र ऐसा राज्य है जिसने भारत के साथ साथ पाकिस्तान में भी शासकों को दिया है।
पंजाब के रहने वाले ज्ञानी जैल सिंह भारत के इकलौते सिख राष्ट्रपति थे, जिसका शासन 1982 से 1987 तक रहा, जिस दौरान ऑपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गांधी की हत्या और सिख विरोधी दंगे हुए थे, जिसके दाग आज भी मिट नहीं पाए हैं। तो वहीं पंजाब ने पाकिस्तान को भी एक राष्ट्रपति दिया था, जिनका नाम मोहम्मद जिया उल हक था, इनका शासन 1978 से 1988 तक रहा। मोहम्मद जिया उल हक का जन्म पंजाब के जालंधर में हुआ था। भारत-पाक के विभाजन में जिया उल हक पाकिस्तान की ओर चले गए थे, जिसके बाद उन्होंने वहां पर पाकिस्तान की कमान संभाली थी।
अब जब राष्ट्रपति की बात हो ही रही है, तो आपको भारत में राष्ट्रपति शासन के बारे में भी बताते हैं। दरअसल पंजाब राज्य ने ही राष्ट्रपति शासन का श्री गणेश किया था। ये बात है साल 1951 की… पंजाब के पहले सीएम गोपी चंद भार्गव कांग्रेस पार्टी से थे, लेकिन अंदरूनी कलह के चलते गोपी चंद को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा, जिसके बाद कोई भी पार्टी अपना बहुमत साबित नहीं कर पाई, जिसके कारण 20 जून 1951 से 17 अप्रैल 1952 तक देश में पहली बार राष्ट्रपति शासन लागू किया गया।
वहीं अब बाद करते हैं भारत के प्रधानमंत्री की, तो पंजाब ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री दिया था, जिन्हें अर्थशास्त्र  का चाणक्य कहा जाता है। मनमोहन सिंह ने अपने शासन के दौरान भारत में बढ़ती मंहगाई और विदेशी मुद्रा को काफी हद तक सुधारा था। इतना ही नहीं, अगर हम पंजाब की ही बात करें तो  पंजाब में पिछले 56 सालों से कोई भी गैर सिख मुख्यमंत्री नहीं बना है। इसके पीछे की कहानी क्या है, तो उसे भी समझिये, तो बात है साल 1966 की। जब भारत के संसद में पंजाब पुनर्गठन एक्ट पारित किया गया, जिसके चलते पंजाब से अलग होकर हरियाणा एक नया राज्य बना, इसी दौरान कुछ क्षेत्र हिमाचल प्रदेश में भी स्थानांतरित किया गया। उसे बाद से ही पंजाब में कोई भी गैर सिख मुख्यमंत्री नहीं बना है, लेकिन  हरियाणा के अलग होने से पहले पंजाब में तीन बार हिंदू मुख्यमंत्री बने थे, पहले थे, गोपी चंद भार्गव, दूसरे थे, भीमसेन सच्चर, तीसरे थे, राम किशन…. ये तीनों ही गैर सिख मुख्यमंत्री थे, जिसके बाद आज भी कोई गैर सिख सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठा है।
पंजाब एक ऐसा राज्य है, जहां पर सबसे ज्यादा दलितों की आबादी है। इसके बावजूद यहां की राजनीति पर जाटों का कब्जा है। लेकिन इस इतिहास को मौजूदा मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह  चन्नी ने बदल दिया। क्योंकि चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री बने।
वैसे तो  पंजाब कांग्रेस का गढ़ रहा है, यहां पर शुरू से ही कांग्रेस का पल्ला भारी रहा है। कहा जाता था कि अगर पंजाब में सरकार बनानी है तो कांग्रेस की शर्तों को मानना होगा। फिर भी यहां पर चुनाव दो मोर्चे पर ही लड़ा जाता रहा । एक ओर कांग्रेस तो दूसरी ओर बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन होता था, लेकिन इस साल पंजाब का चुनाव पंच कोणिय होने जा रहा है। एक ओर कांग्रेस, दूसरी ओर बीजेपी, तीसरी ओर आम आदमी पार्टी, चौथी ओर शिरोमणि अकाली दल, पांचवी ओर किसान संगठन। राजनीतिक माहौल को देखें तो आम आदामी पार्टी और किसान संगठन मिलकर चुनाव का बिलुग बजा रहे हैं।  तो वहीं बीजेपी से अलग होकर शिरोमणि अकाली दल भी किसानों को लुभाने पर जोर दे रही है। लेकिन इतिहास गवहा है कि समय समय पर कांग्रेस ने अपना पासा आखरी समय पर ही फैंका है।

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