उत्तर प्रदेश के चुनाव जीतते ही बढ़ जाएगा फिर से नए कृषि कानून लागू करने का अंदेशा !

0
364
Spread the love
चरण सिंह राजपूत 
जो लोग सोच रहे हैं कि नये कृषि कानून लागू होने का अब कोई खतरा नहीं है। वे प्रधानमंत्री के गए वादों पर जरा थोड़ा मंथन कर लें। चाहे इतना काला धन विदेश से लाने का वादा कि हर नागरिक के खाते में 150000 रुपए हर नागरिक के खाते में आ जायेंगे। या फिर  किसान की फसल की लागत से डेढ़ गुना मूल्य देने का वादा हो या फिर हर वर्ष युवाओं को 2 करोड़ रोजगार देने का वादा हो सभी वादे खोखले साबित हुए हैं।  लोगों को सपने दिखाना और उन सपनों के बल पर उन पर राज करना ही मोदी की बड़ी कला है। बड़े से बड़ा संकट टालने की कला में भी मोदी माहिर हैं। जब बीजेपी को कृषि कानूनों के चलते उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में हार का संकट सताने लगा तो किसी भी तरह इस संकट को टालने की रणनीति बनाई गई और कानून वापस ले लिए गए।

बीजेपी का फ़िलहाल मकसद उत्तर प्रदेश चुनाव को जीतना है। यदि बीजेपी ने उत्तर प्रदेश चुनाव जीत लिया तो फिर नए कृषि कानून बनाये जा सकते हैं। इसका बड़ा कारण अडानी से लिया गया अकूत धन बताया जा रहा है। खाद्य भंडारण के लिए बड़े-बड़े गोदाम और रेलवे ट्रैक तक बनाने वाले अडानी इतनी आसानी से मानने वाले नहीं हैं। हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने ऐसे ही एक कार्यक्रम में नहीं बोले हैं कि अभी हम एक कदम पीछे हटे हैं कल फिर हम दो कदम आगे बढ़ेंगे। उनकी यह टिप्पणी कृषि कानूनों के संदर्भ में थी। प्रधानमंत्री के कृषि कानूनों को वापस करते समय उनकी भाषा को भी समझना होगा। उनका आंदोलन कर रहे किसानों को कुछ किसानों कहना और उनको समझा न पाना कहना दर्शाता है कि उनको ये कृषि कानून मज़बूरी में वापस करने पड़े हैं। तो क्या प्रधानमंत्री की मज़बूरी उत्तर प्रदेश के चुनाव जीतते ही खत्म हो जाएगी ?

उत्तर प्रदेश चुनाव जीतते ही बोलने में माहिर माने जाने वाले प्रधानमंत्री फिर से कहने लग सकते हैं कि अधिकतर किसान कृषि सुधार चाहते हैं, लिहाजा कुछ प्वाइंट बदलकर नए कृषि कानून बना दें। ये कानून ऐसे ही वापस नहीं हुए हैं। यही वजह रही कि आंदोलन खत्म करते हुए किसान नेताओं ने आंदोलन खत्म न होने की बात कही थी। गौर करने की बात यह है कि किसानों सरकार किसानों को नक्सली, आतंकवादी, देशद्रोही, नकली किसान बोलती रही। ७०० से अधिक किसानों के दम तोड़ने पर भी जिसकी संवेदनाएं न जागी वह सरकार अचानक नये कृषि कानून वापस लेने को तैयार कैसे हो गई।

दरअसल फिलहाल बीजेपी की रणनीति किसी भी तरह से उत्तर प्रदेश  चुनाव जीतना है। हो सकता है कि किसानों की फसल की लागत का डेढ़ गुना मूल्य को जुमला बोलने की तरह भाजपा नये कृषि कानूनों को वापस लेने को भी जुमला साबित करने में लग जाए। जगजाहिर है कि जब बड़े आंदोलन टूट जाते हैं तो उस तरह के आंदोलनों को खड़ा करने में  वर्षों लग जाते हैं। ऐसा ही अब किसान आंदोलन के साथ हो गया है। यह किसान नेता भी जानते हैं और भाजपा भी कि अब उस तरह के आंदोलन को खड़ा करने में बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। वैसे भी एमएसपी गारंटी कानून को लेकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों के मतभेद देखे जा चुके हैं। सरकार की किसानों की मानी गई मांगों को अमली जामा पहनाने के लिए जो समिति बनाई गई है उसमें किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत  का नाम नहीं था। भले ही केंद्र सरकार ने किसानों की सभी मांगों मान लेने की बात कही हो पर किसानों पर दर्ज मुकदमों और एमएसपी गारंटी कानून पर पेंच फंसना तय है। यही वजह रही कि गाजीपुर बार्डर से जिन किसानों को १० दिसम्बर को जाना था वे १५ दिसम्बर को अपने घरों को रवाना हुए थे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here