‘सौरभ’ मेरी गलतियां, जग में हैं मशहूर ।
फ़िक्र स्वयं की कीजिये, पर्दे के मगरूर ।।
मेरे तेवर और हैं, उनके अपने तौर ।
वो चाहें कुछ और हैं, मैं चाहूँ कुछ और ।।
मैं कौवा ही खुश रहूँ, मेरी खुद औकात ।
तू तोते-सा पिंजरे, कहता उनकी बात ।।
मैं तुमको हँसता मिलूं, डालो जितने जाल ।
तेरी जो है ख्वाहिशें, तो मेरे हैं ख्याल ।।
पावन मेरी भावना, मन मेरा उपहार ।
जैसा भी हूँ सामने, तोलो जितनी बार ।।
मेरे मन की वेदना, विपुल रत्न अनमोल ।
पाकर इसको मैं सका, शब्द सीपियाँ खोल ।।
सीखा मैंने देर से, सहकर लाखों चोट ।
लोग कौन से हैं खरे, और कहाँ है खोट ।।
आओ बैठें पास में, समझें हम जज्बात ।
तू शायर दोहा कहे, मैं ग़ज़लों से बात ।।
(सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )