गणतंत्र दिवस यानि Republic Day हमारे देश का national festival है, जिसे 26 जनवरी को पूरे देश में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन हमारे देश का संविधान लागू हुआ था. लेकिन क्या आपको पता है कि हमारे देश का संविधान 26 नवंबर 1949 में ही बनकर तैयार हो गया था, फिर इसे लागू करने के लिए 26 जनवरी की तारीख का इंतजार क्यों किया गया?
संविधान को लागू करने के लिए 26 जनवरी की तारीख का चुनाव करने के पीछे एक खास वजह है. बहुत कम लोग जानते हैं कि देश में पहली बार स्वतंत्रता दिवस 26 जनवरी 1930 को मनाया गया था. दरअसल 31 दिसंबर, 1929 को कांग्रेस के लाहौर session में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक प्रस्ताव पारित हुआ था. इस प्रस्ताव में यह मांग की गई थी कि अगर ब्रिटिश सरकार ने 26 जनवरी 1930 तक भारत को डोमीनियन स्टेट का दर्जा नहीं दिया तो भारत को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर दिया जाएगा. इसके बाद पहली बार स्वतंत्रता दिवस 26 जनवरी, 1930 को मनाया गया और इस दिन तिरंगा भी फहराया गया था. तभी से 26 जनवरी की तारीख देशवासियों के लिए काफी महत्वपूर्ण हो गई थी. जब देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ तो officially स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को मनाया गया. लेकिन 26 जनवरी की तारीख को यादगार बनाने के लिए 26 जनवरी का चुनाव संविधान लागू करने के लिए किया गया. यही कारण है कि 26 नवंबर, 1949 में संविधान बन जाने के बाद भी दो महीने इंतजार किया गया और 26 जनवरी 1950 में इसे लागू किया गया.
गणतंत्र दिवस से जुड़े कुछ interesting facts
1- 26 जनवरी, 1929 को Indian National Congress ने भारतीय स्वराज की घोषणा की थी. इसलिए भारत का संविधान लागू करने के लिए भी 26 जनवरी की तारीख को चुना गया था. जिस दिन संविधान पर हस्ताक्षर किए जा रहे थे, उस दिन जोरदार बारिश हो रही थी। इसे शुभ संकेत भी माना गया था।
2- जनवरी 1948 में भारत के संविधान का पहला प्रारूप चर्चा के लिए प्रस्तुत किया गया. 4 नवंबर, 1948 को चर्चा शुरू हुई और 32 दिनों तक चली. इस दौरान 7,635 संशोधन प्रस्तावित किए गए, जिनमें से 2,473 पर विस्तार से चर्चा हुई. संविधान को अंतिम रूप देने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिनों का समय लगा था.
3- संविधान को बनाने के लिए डॉ. B. R. अम्बेडकर की अध्यक्षता में एक मसौदा समिति नियुक्त की गई थी. मसौदा समिति का अंतिम सत्र 26 नवंबर 1949 को समाप्त हुआ और सभी की सहमति से संविधान को अपनाया गया. 26 जनवरी 1950 को इसे देश में लागू किया गया.
4- 26 जनवरी को परेड के दौरान राष्ट्रपति को 21 तोपों की सलामी दिए जाने की प्रथा है. 21 तोपों की सलामी भारतीय सेना की 7 तोपों से दी जाती है जिन्हें ’25 पाउंडर्स’ कहा जाता है. पहली सलामी राष्ट्रगान शुरू होते ही दी जाती है और आखिरी सलामी ठीक 52 सेकंड बाद दी जाती है.
5- संविधान की original copy को हिंदी और इंग्लिश में प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने लिखा था. इसे लिखने में उन्हें पूरे छह महीने का वक्त लगा था. इस काम के लिए भारत सरकार द्वारा Constitution House में उनको एक कमरा allot किया गया था.
6- प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने संविधान लिखने के लिए सरकार से कोई भी मेहनताना नहीं लिया था. बस एक मांग की थी कि वे संविधान के हर पेज पर अपना नाम लिखेंगे और आखिरी पेज पर अपने साथ अपने दादा जी का भी नाम लिखेंगे.
7- भारत का संविधान दुनिया का सबसे लंबा और detailed संविधान है. संविधान के हर पेज को प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने खूबसूरत लिखावट और इटैलिक में लिखा है. जब संविधान लागू हुआ, तब इसमें कुल 395 Article , 8 acts थे और यह संविधान 22 भागों में बंटा हुआ था.
8- 26 जनवरी की परेड के दौरान हर साल किसी न किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष यानि head of state को अतिथि के तौर पर बुलाया जाता है. 26 जनवरी 1950 को आयोजित पहली परेड में guest के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति डॉ. Sukarno को आमंत्रित किया गया था.
9- 1950 से 1954 तक गणतंत्र दिवस इरविन स्टेडियम (जिसे अब नेशनल स्टेडियम कहा जाता है), Kingsway, लाल किला और रामलीला मैदान तक आयोजित किया जाता था. 1955 से गणतंत्र दिवस programme राजपथ पर आयोजित किया जाने लगा. 1955 में राजपथ पर आयोजित पहले परेड में guest के रूप में पाकिस्तान के गवर्नर जेनरल मलिक गुलाम मोहम्मद को आमंत्रित किया गया था.
10- गणतंत्र दिवस एक तीन दिवसीय राष्ट्रीय त्योहार है जो 29 जनवरी को beating retreat programme के साथ समाप्त होता है.
11 – 26 जनवरी 1965 को हिंदी को भारत की राष्ट्रीय भाषा घोषित किया गया।
12. यूरोप, एशिया और अफ्रीका के ज्यादातर देशों में पहले world war के बाद महिलाओं को मतदान यानि वोट का अधिकार दिया गया है। न्यूजीलैंड दुनिया का पहला देश है जिसने 1893 में महिलाओं को मतदान का अधिकार दिया और सऊदी अरब सबसे बाद में महिलाओं को वोट देने का अधिकार देने वाला देश है। सऊदी अरब में साल 2015 में महिलाओं को यह अधिकार मिला। फिनलैंड पहला यूरोपीय देश था जिसने महिलाओं को मताधिकार दिया, उसके बाद नॉर्वे का नंबर आया। फिर धीरे-धीरे दुनिया के अन्य देशों में भी महिलाओं को मताधिकार मिलने लगा।