पटना। बिहार का विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला इस समय पूरे शबाब पर है। परंपरा और आधुनिकता को समेटे इस मेले में दिन में पशु प्रेमी और बच्चे पहुंच रहे हैं, तो शाम होते ही बड़ी संख्या में लोग थियेटर का आनंद लेने आ रहे हैं। सोनपुर मेला में को गौर से देखें तो पूरे क्षेत्र में मनोरंजन, संस्कृति और रोमांच का एक संगम उतर आया है, जो हर आयु वर्ग के लोगों के लिए खास आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। सारण जिले के सोनपुर में एक महीने तक रौनक बिखरने वाले इस मेला का पुराना इतिहास रहा है।
दरअसल कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर हाजीपुर के कोनहरा घाट और सोनपुर के काली घाट पर गंगा और गंडक नदी के संगम पर डुबकी लगाने के लिए लाखों लोग आते हैं। इसके बाद इस मेले की शुरुआत हो जाती है। बिहार में कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला सोनपुर मेला अपने शबाब पर है। पशु मेले के रूप जाने जाने वाले इस मेले में थियेटर का अपना महत्व है। इस समय केवल देश बल्कि विदेश के लोग भी इस मेले में पहुंच रहे हैं।
समय के बदलते प्रभाव के असर से हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला, पशु बाजारों से हटकर अब ऑटो एक्स्पो मेले का रूप लेता जा रहा है। पिछले कई वर्षों से इस मेले में कई कंपनियों के शोरूम तथा बिक्री केंद्र यहां खुल रहे हैं। मेले में रेल ग्राम प्रदर्शनी लगी। रेलग्राम में टॉय ट्रेन चलाई जा रही। सोनपुर मेले के प्रति विदेशी पर्यटकों में भी खास आकर्षण देखा जाता है। जर्मनी, अमेरिका, फ्रांस एवं अन्य विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए स्विस कॉटेजों का निर्माण किया जाता है।
यहां हाथियों व घोडों की खरीद हमेशा से सुर्खियों में रहती है। पहले यह मेला हाजीपुर में होता था। सिर्फ हरिहर नाथ की पूजा सोनपुर में होती थी लेकिन बाद में मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश से मेला भी सोनपुर में ही लगने लगा। 2001 में, सोनपुर मेला में लाया गया हाथियों की संख्या 92 थी, जबकि 2016 में 13 हाथियों ने इसे मेले में बनाया।