शहर के माहौल को ब्यान कर रही है बेंगलुरु में किसान को मेट्रो में न चलने देने की की घटना
जो किसान घरती का सीना चीर कर अन्न उपजाता है। अपने बेटे को बॉर्डर पर देश की सेवा करने के लिए भेजता है। उस किसान की इतनी दुर्गति क्यों ? क्या अन्नदाता शहरी लोगों को बोझ लगने लगा है। क्या इस किसान ने टोकन नहीं ख़रीदा था ? क्या यह घटना टीवी चैनलों की डिबेट नहीं होनी चाहिए थी।
कल्पना भी नहीं की जा सकती है कि कृषि प्रधान देश में एक किसान को मेट्रो में चलने से रोक दिया जाए। ऐसे में प्रश्न उठता है कि ये कौन लोग हैं जो देश के किसान मेट्रो में चलने से रोक रहे हैं। देखने की बात यह है कि इस किसान को रोकने वाला एक सिक्योरिटी गार्ड है। मतलब कोई अमीर व्यक्ति नहीं बल्कि एक आम आदमी है। निश्चित रूप से जिस सिक्योरिटी गार्ड ने इन बुजुर्ग किसान को रोका, वह गांव से ही नौकरी करने आया होगा।
बुजुर्ग को मेट्रो में चढ़ने से रोके जाने की ये घटना 18 फरवरी को राजाजीनगर मेट्रो स्टेशन पर हुई थी। इससे जुड़े वायरल वीडियो में दिख रहा है कि सिक्यॉरिटी स्टाफ एक बुजुर्ग को इसलिए एंट्री से रोक रहा है कि उसके कपड़े ‘ठीक’ नहीं है। वीडियो में दिख रहा है कि लगेज स्कैनर के पास सफेद शर्ट और धोती में एक बुजुर्ग दिख रहा है। सिर पर गठरी है जिसमें संभवतः कपड़े हैं। सोशल मीडिया पर किसान बताए जा रहे उस बुजुर्ग के पास यात्रा के लिए जरूरी टिकट भी था। इसके बाद भी सुरक्षाकर्मी उसे एंट्री नहीं दे रहे क्योंकि उसके कपड़े ‘ठीक’ नहीं हैं, ‘गंदे’ हैं। कार्तिक सी. एरानी नाम के एक यात्री ने बुजुर्ग को रोके जाने का विरोध किया। वीडियो में वह सिक्योरिटी स्टाफ के फैसले पर सवाल उठाते दिख रहे हैं। उनके साथ एक और यात्री भी सिक्योरिटी स्टाफ से बहस करते दिख रहे हैं कि किसान से सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है। वह तो सिर्फ कपड़े लेकर जा रहे हैं, उन्होंने बीएमआरसी के किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया है। वह सवाल करते हैं कि क्या ये वीआईपी ट्रांसपोर्ट है? क्या मेट्रो आम जनता के चलने के लिए नहीं है? क्या मेट्रो में चलने के लिए ड्रेस कोड लागू है? इस पूरे घटनाक्रम के दौरान बेचारा बुजुर्ग चुपचाप शांत एक दूसरे का मुंह ताकता रहता है। हिंदी बोलने वाले उस बुजुर्ग को समझ ही नहीं आता कि क्या करें। वीडियो के आखिर में दिख रहा है कि सिक्योरिटी स्टाफ से बहस करने वाले युवक ने बुजुर्ग को साथ में लेकर स्टेशन में उनकी एंट्री कराई। वीडियो में उन्हें यह कहते सुना जा सकता है, ‘चलो भैया…कौन क्या बोलेगा?’ बुजुर्ग ने राजाजीनगर से मैजेस्टिक मेट्रो स्टेशन तक सफर किया।
घटना के करीब एक हफ्ते बाद 24 फरवरी को उसका वीडियो एक्स पर वायरल हो गया। लोगों ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जताई। लोगों ने कार्तिक नाम के शख्स की जमकर तारीफ की और बीएमआरसी को खूब खरीखोटी सुनाई। लोगों के आक्रोश के मद्देनजर बीएमआरसी ने घटना की जांच कराई और दोषी सिक्यॉरिटी सुपरवाइजर को बर्खास्त कर दिया। पूरी घटना बेहद शर्मनाक है। गांधी के देश में एक बुजुर्ग को मेट्रो में ये कहकर चढ़ने से रोकने की कोशिश होती है कि उसके कपड़े ‘ठीक नहीं’ हैं। एक आजाद मुल्क में कपड़े, चमड़ी के रंग, भाषा, रंग-रूप वगैरह के आधार पर भेदभाव की घटना की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। अफसोस कि आजादी के करीब 8 दशक बाद भी इस तरह के भेदभाव की घटना हो रही है।