आज तुम्हारे ढोल से, गूँज रहा आकाश ।
बदलेगी सरकार कल, होगा पर्दाफाश ।।
जनता आपस में भिड़ी, चुनने को सरकार ।
नेता बाहें डालकर, बन बैठे सरदार ।।
जिनकी पहली सोच ही, लूट, नफ़ा श्रीमान ।
पाओगे क्या सोचिये, चुनकर उसे प्रधान ।।
कर्ज गरीबों का घटा, कहे भले सरकार ।
‘सौरभ’ के खाते रही, बाकी वही उधार ।।
साल पचहत्तर बाद भी, देश रहा कंगाल ।
जेबें अपनी भर गए, नेता और दलाल ।।
लोकतंत्र अब रो रहा, देख बुरे हालात ।
संसद में चलने लगे, थप्पड़-घूसे, लात ।।
देश बांटने में लगी, नेताओं की फ़ौज ।
खाकर पैसा देश का, करते सारे मौज ।।
पद-पैसे की आड़ में, बिकने लगा विधान ।
राजनीति में घुस गए, अपराधी-शैतान ।।
भ्रष्टाचारी कर रहे, रोज नए अब जाप ।
आंखों में आंसू भरे, राजघाट चुपचाप ।।
जहां कटोरी थी रखी, वही रखी है आज ।।
‘सौरभ’ मुझको देश में, दिखता नहीं सुराज ।।
(सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से।