सुभाष चंद्र कुमार
समस्तीपुर पूसा। डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय स्थित विद्यापति सभागार में बदलते जलवायु परिदृश्य में प्राकृतिक खेती और इसके महत्व पर चल रहे दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला रविवार को संपन्न हुई। जिसकी अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय कृषि विश्वविधालय के कुलपति, डॉ पुण्यव्रत सुविमलेंदु पांडेय ने एक सतत कृषि पद्धति के रूप में प्राकृतिक खेती के महत्व पर बल दिया।
उन्होंने विषम मौसम परिस्थितियों में इसकी क्षमता और जल उपयोग की दक्षता को रेखांकित किया। डॉ पांडेय ने कहा कि प्राकृतिक खेती को धरातल पर उतारने के लिए सीमित वैज्ञानिक आंकड़े उपलब्ध है। प्राकृतिक खेती पर वैज्ञानिकों को और ज्यादा से ज्यादा नवीनतम टेक्नोलॉजी पर आधारित अनुसंधान करने की जरूरत है।
उन्होंने वैज्ञानिकों से जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक कृषि के सामाजिक-आर्थिक पहलुओं तथा इसके प्रभाव को समझने के लिए और शोध करने का आह्वान किया। इस कार्यशाला में दो दिन में छह तकनीकी सत्र आयोजित किया गया। जिसमें देश भर के दो सौ से अधिक कृषि वैज्ञानिकों ने अपने विचार प्रस्तुत किया। इस कार्यशाला में प्राकृतिक कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास कार्यों को बढ़ाने का आह्वान किया गया।
कार्यशाला में देश के प्रमुख कृषि वैज्ञानिकों ने तकनीकी सत्रों के अतिरिक्त एक पैनलिस्ट चर्चा में भी शिरकत की जिसमें कृषि विश्वविद्यालय आनंद, गुजरात के कुलपति डॉ सी.के. टिम्बडिया और बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ रमेश्वर सिंह भी शामिल थे। डॉ सी.के. टिम्बडिया ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने में डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा बिहार के नेतृत्व की सराहना की।
उन्होंने आशा व्यक्त करते हुए कहा कि अन्य कृषि विश्वविद्यालय भी इसका अनुसरण करेंगे और किसानों के लिए व्यापक कृषि पद्धतियों को विकसित करने का आह्वान किया। डॉ टिम्बडिया ने कहा कि केंद्रीय कृषि विश्वविधालय पूसा ने कुलपति डॉ पी एस पांडेय के नेतृत्व में देश को जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य में प्राकृतिक कृषि की एक नई राह दिखाई है।
उन्होंने कहा कि डॉ पांडेय डिजिटल एग्रीकल्चर, ड्रोन ट्रेनिंग सहित पुरातन प्राकृतिक कृषि पर भी देश को नई राह दिखा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अन्य कृषि विश्वविद्यालय भी पूसा के दिखाये गये रास्ते पर चलने का प्रयास करेंगे। बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ रामेश्वर सिंह ने कहा कि पूसा ने पहले भी कृषि को नई दिशा दी है और आज भी केंद्रीय कृषि विश्वविधालय नवोन्मेषी अनुसंधान में अग्रसर है।
उन्होंने कहा कि पशु विज्ञान विश्वविद्यालय भी केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के विभिन्न सुझावों को अपने विश्वविद्यालय में लागू करेगा उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला में देश के विद्वानों ने नई राह दिखाई है। इस कार्यशाला से जो वैज्ञानिक सत्व निकले हैं वे कृषि के क्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभायेंगे। कार्यशाला का समापन स्नातकोत्तर कृषि महाविद्यालय (पीजीसीए) के डीन सह कार्यशाला के अध्यक्ष डॉ मयंक राय के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
डॉ राय ने विश्वास व्यक्त किया कि दो दिवसीय कार्यक्रम से प्राप्त विचार-विमर्श नीति निर्माताओं को प्राकृतिक खेती पद्धतियों को लागू करने की दिशा में कार्य करने के लिए बहुमूल्य जानकारी प्रदान करेगा। कार्यशाला में विश्वविद्यालय के निदेशक शिक्षा डा उमाकांत बेहरा, निदेशक अनुसंधान डॉ ए के सिंह, जलवायु परिवर्तन पर उच्च अध्ययन केंद्र के परियोजना निदेशक डॉ रत्नेश कुमार झा समेत विभिन्न वैज्ञानिक शिक्षक और पदाधिकारी भी मौजूद थे।