कुदरत के नज़ारे

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कुदरत के नज़ारे
(बाल कविता)

देखो लगते बड़े निराले,
बादल छाये काले-काले।

बादल घिरे, अँधेरी छाई,
चारों ओर रात घिर आई।

निकले नील गगन के घर से,
टप-टप करके बादल बरसे।

रिमझिम-रिमझिम बरखा लाये,
गर्मी सारी दूर भगाये।

हर्षित देखा जब नील गगन,
बच्चे सारे तब हुए मगन।

छू मंतर हुई गरमी सारी,
मारें सब मिलकर किलकारी।

बनी सब गलियां ताल-तलैया,
नाचे मिलकर ता-ता-थैया।

पानी बरसा इतना खासा,
लगता जैसे हो चौमासा।

देखा तब अजीब तमाशा,
इंद्र धनुष ने रूप तराशा।

कुदरत के ये अजब नजारे,
लगते सबको प्यारे- प्यारे।

-डॉ. सत्यवान सौरभ
(नव प्रकाशित बाल काव्य संग्रह ‘प्रज्ञान’ से साभार।)

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