सुब्रत रॉय के सहारा का हश्र बिल्कुल जंगल में शेर की बनी फैक्ट्री की कहानी की तरह हुआ है। दरअसल आज के कॉरपोरेट कल्चर पर शेर की फैक्टरी कहानी बिल्कुल सटीक बैठ रही है। यह एक ऐसी कहानी है जो कॉरपोरेट संस्कृति की पोल खोल रही है। इस कहानी में जंगल के राजा शेर को एक दिन फैक्टरी लगाने की सूझी। शेर ने एक फैक्टरी लगा डाली और इस फैक्टरी में सबसे पहले एकमात्र वर्कर चींटी को रख लिया। चींटी समय की बहुत पाबंद थी। वह समय से आती जाती थी और पूरी फैक्टरी का सारा काम अकेले ही करती थी।
शेर की यह फैक्टरी बड़े व्यवस्थित ढंग से चल रही थी।
एक दिन किसी ने शेर को ज्ञान दे दिया कि जब चींटी अकेली इतना सुंदर काम कर रही है तो ऐसे में इसको किसी एक्सपर्ट के अंडर में रख दिया जाये तो यह और बेहतर काम करने लगेगी। शेर ने इन ज्ञानी महाशय की बात में आकर एक मधुमक्खी को प्रोडक्शन मैनेजर अपॉइंट कर दिया। मधुमक्खी रिपोर्ट्स लिखने में बहुत होशियार थी। मधुमक्खी ने शेर से कहा कि सबसे पहले हमें चींटी का वर्क शेड्यूल बनाना होगा और फिर उसका सारा रिकार्ड प्रोपरली रखने के लिए उसे एक सेक्रेटरी चाहिए होगा। शेर ने खरगोश को मधुमक्खी के सेक्रेटरी के रूप में अपॉइंट कर दिया।शेर को मधुमक्खी का यह दिखावे का काम बहुत पसंद आ रहा था।
शेर ने मधुमक्खी से कहा कि चींटी के अब तक कंप्लीट हुए सारे कार्य की रिपोर्ट उसे दी जाये और जो प्रोग्रेस हुई है उसको ग्राफ से शो किया जाये। मधुमक्खी ने कहा ठीक है, मगर उसे इसके लिए कंप्यूटर,लेज़र प्रिंटर और प्रोजेक्टर चाहिए होगा। इन सबके लिए शेर ने एक कंप्यूटर डिपार्टमेंट अलग से बना दिया और बिल्ली को वहां का हेड अपॉइंट कर दिया। अब जो समय चींटी का काम में लगता था वह रिपोर्ट बनाने में लगने लगा। इसका असर यह हुआ कि उसका काम पिछड़ता गया और प्रोडक्शन कम होने लगा।
शेर को फिर किसी ने ज्ञान दे दिया कि एक ऐसा टेक्निकल एक्सपर्ट रखा जाये जो मधुमक्खी की सलाह पर अपना ओपिनियन दे सके। शेर ने मधुमक्खी को एक बंदर टेक्निकल इंस्ट्रक्टर के रूप में दे दिया। अब फैक्टरी में ऐसा माहौल बन चुका था कि चींटी को जो भी काम दिया जाता वह उसको पूरी सामर्थ्य से करती मगर काम कभी पूरा ही नहीं होता तो विवश होकर वह उसको अपूर्ण छोड़कर ही घर आ जाती।
शेर को नुकसान होने लगा तो वह अधीर हो उठा फिर किसी के ज्ञान देने पर उसने उल्लू को नुकसान का कारण पता लगाने के लिए अपॉइंट कर दिया। तीन महीने बाद उल्लू ने शेर को रिपोर्ट सौंप दी, जिसमें उसने बताया कि फैक्ट्री में वर्कर की संख्या ज्यादा है, छंटनी करनी होगी। ज्ञानी के ज्ञान ने शेर का पूरा विवेक खत्म का दिया था। जिस चींटी ने उसे फर्श से अर्स से पहुंचाया था उसका काम अब उसे ख़राब लगने लगा था। छंटनी के नाम पर चींटी को नौकरी से निकाल दिया गया। सहारा में भी यही हुआ है जिन कर्मचारियों ने रात दिन मेहनत को सहारा को बुलंदी पर पहुंचाया वे कर्मचारी ही सहारा के चैयरमेन सुब्रत राय को बुरे लगने लगे और आज सहारा में स्थिति यह है कि सहारा की नींव माने जाने वाले अधिकतर कमर्चारी या तो नौकरी से निकाल दिए गए हैं या फिर सहारा प्रबंधन की दमनात्मक नीतियों से तंग आकर संस्था छोड़कर जा चुके हैं। सुब्रत राय तो निकाले गए कर्मचारियों को पैसा देने को भी तैयार नहीं। जिन एजेंटों ने एक एक पैसा इकठ्ठा कर कर सुब्रत राय को पैसा लाकर दिया। अब सुब्रत राय उन एजेंटों को पैसा देने को तैयार नहीं। एक तरह से उन एजेंटों को पैसा न देकर सुब्रत राय ने उनकी जान को और खतरे में डाल दिया है।
सहारा में पैसा जमा करने वाले निवेशक इन एजेंटों पर पैसे देने का दबाव बना रहे हैं। कई एजेंट तो डर के मारे अपने घरों को नहीं जा रहे हैं। गत दिनों महाराष्ट्र में एक एजेंट के घर घुसकर एक निवेशक ने न केवल गाली गलौज की बल्कि तोड़फोड़ भी कर दी। इसमें दो राय नहीं कि सहारा को भी सुब्रत रॉय को ज्ञान देने वाले उनके सिपहसालारों ने ही डुबाया है। वैसे तो सहारा ही नहीं बल्कि अधिकतर कंपनियों में यही चल रहा है। यही वजह है कि देश में सहारा के साथ ही काफी कंपनियों की हालत बड़ी खस्ता है।