चरण सिंह
रवा राजपूत समाज बीजेपी के गठन के बाद से ही लामबंद होकर इस पार्टी को समर्थन करता आ रहा है। बिजनौर, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, दिल्ली नारायणा समेत देश के विभिन्न शहरों में रवा राजपूत समाज के लोग रहते हैं। निश्चित रूप से शिक्षा के मामले में हम अग्रणी हैं पर राजनीतिक रूप से हम बहुत पिछड़े हुए हैं। यह हमें स्वीकार करना होगा।
कितने लोग हैं जो कहते घूम रहे हैं कि अब तो हमारी सरकार है। भाई केंद्र और उत्तर प्रदेश दोनों में बीजेपी की सरकार है। रवा राजपूत की क्या उपलब्धि है ? कोई विधायक, सांसद, एमएलसी, राज्यसभा सदस्य, राज्यपाल कोई निगम ? कहीं से विधायक या फिर सांसद का टिकट ?
दिल्ली नारायण को छोड़ दें तो बीजेपी से शून्य मिला है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कहीं से भी किसी को टिकट भी नहीं मिला। मैं इसके लिए बीजेपी को जिम्मेदार नहीं ठहराऊंगा। जिम्मेदार समाज के ठेकेदार हैं। बिना मांगे कुछ नहीं मिलता। अब तो छीनना पड़ता है। हम तो मांगना भी नहीं जानते। पिछलग्गू की मानसिकता छोड़ आगे बढ़कर नेतृत्व की भावना जगानी होगी। यदि ऐसे ही टांगखिंचाई करते रहे पिछलग्गू बनते रहे तो और पिछड़ेंगे। हम मंथन करें कि हमारे समाज में कितने लोग इतने मजबूत हैं जो मजबूती से समाज का वजूद पार्टी नेतृत्व को समझा सकें।
गर्व के के साथ कह सकता हूं कि बिजनौर के ठाकुर हरगुलाल सिंह समाज के सबसे बड़े नेता हुए हैं। उन्होंने डॉ. मनोहर लोहिया, लोक नायक जय प्रकाश नारायण, चौधरी चरण सिंह के साथ काम किया है। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर उन्हें बड़ा भाई मानते थे। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह उन्हें चचा बोलते थे। मुलायम सिंह जैसे नेताओं को हरगुलाल जी ए करके बुलाते थे। हमारे समाज ने तो उन्हें भी कुछ नहीं समझा। इतना ही नहीं हम उनके नाम की चर्चा भी किसी राजनीतिक मंच पर नहीं करते। याद रखिये कि जो समाज पूर्वजों को भूल जाता है वह अपना वजूद खोता जाता है। ऐसा ही हमारा समाज के साथ हो रहा है।
हमें एक ऐसा नेता बनाना होगा जो रवा राजपूत समाज के मान सम्मान और अधिकार की लड़ाई लड़ सके। यह भी समझ लीजिये कोई पैसे वाला आदमी किसी समाज के मान सम्मान और अधिकार की लड़ाई नहीं लड़ पाता है। क्योंकि वह सत्ता से टकरा नहीं पाएगा और सत्ता से टकराए बिना किसी समाज की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है। समझ लीजिये आज की तारीख में कोई फ़क़ीर ही समाज का नेतृत्व कर पाएगा। हां समाज को मिलकर उसे आर्थिक सहयोग करना होगा। कंधे से कंधा मिलाकर चलना होगा।
मंथन कीजिए दूसरे समाज कहां पहुंच रहे हैं। हम कहां हैं ? जमीनी हकीकत यह है कि वजूद खोते जा रहे रवा राजपूत समाज के युवा अपनी पहचान छिपाने लगे हैं। कोई राणा लिखने लगा है तो कोई गहलोत और कोई चौधरी। जरा मंथन कीजिये। समाज के किसी परिवार को कोई दिक्कत आ जाये तो क्या हमारे समाज में कोई ऐसा व्यक्ति है जो खड़ा होकर उस परिवार के लिए लड़ सकेगा। यदि किसी दूसरे समाज से वर्चस्व की लड़ाई हो जाये क्या कोई व्यकित है जो खड़ा होकर समाज के वर्चस्व की लड़ाई लड़ सके। जमीनी हकीकत तो यह है कि हम दूसरे के पीछे भागते हैं और वह दौड़ाता है। समझ लीजिये कि रवा राजपूत शब्द की पहचान बनानी होगी।
समाज के जिम्मेदार लोग तमाम कार्यक्रम करते हैं पर समाज के वजूद को लेकर कार्यक्रम क्यों नहीं करते ? किसी पार्टी के बंधुआ वोटबैंक मत बनिए। समझ लीजिये कि हमारे समाज का कोई भी व्यक्ति किसी भी पार्टी से राजनीति कर रहा है। उसे बढ़ावा दीजिये। सभी पार्टियों को अपने वजूद का एहसास कराइये। जब दूसरे राजपूत हमारे वजूद को भी अपने वजूद से जोड़ लेते हैं तो फिर हमें भी उनको अपने साथ जोड़कर प्रदर्शित करना चाहिए। नगीना में राजपूत 12 फीसदी, बिजनौर में 10 फीसदी, मुजफ्फरनगर में लगभग 8 फीसदी, बागपत और मेरठ में भी इसी तरह से हैं। गाजियाबाद में 8 लाख और गौतमबुद्धनगर में 6 लाख राजपूत हैं।
अब जब राजपूतों ने आंदोलन किया है तब जाकर राजपूतों के वोटबैंक की चर्चा देशभर में हो रही है। लोग पश्चिमी उत्तर प्रदेश को जाटलैंड बोलते हैं। क्यों ? क्योंकि वे लोग अपने वजूद को दिखाना जानते हैं। अब जब राजपूतों का वोट बैंक सामने आ रहा है तो पता चल रहा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजपूत जाटों से कम नहीं बल्कि अधिक हैं। यहां पर 36 बिरादरी के लोग रहते हैं। अपनी ताकत को पहचानने और उसे प्रदर्शित करने की जरूरत है।