पुष्प की अभिलाषा’ राष्ट्रवाद की प्रतिनिधि कविता : डा. सुलभ

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पटना । देश के महान स्वतंत्रता सेनानी, कवि और पत्रकार पं माखनलाल चतुर्वेदी सच्चे अर्थों में ‘भारतीय आत्मा’ थे। उन्हें यह महान संबोधन राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने दिया था। वे जीवन-पर्यन्त राष्ट्र और राष्ट्र-भाषा के लिए संघर्ष रत रहे। उनकी बहु-प्रशंसित रचना ‘पुष्प की अभिलाषा’ राष्ट्रवाद की प्रतिनिधि कविता है, जो देश के लिए मर मिटनेवाले लाँखों वीर सपूतों को अशेष प्रेरणा देती है।
यह बातें गुरुवार को साहित्य सम्मेलन में कवि की १३६वीं जयंती पर आयोजित, पुस्तक-लोकार्पण समारोह व कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन-अध्यक्ष डा० अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, वे एक वलिदानी राष्ट्र-प्रेमी थे। उन्होंने स्वतंत्रता-संग्राम में जेल की यातनाएँ भी भोगी और हिन्दी के प्रश्न पर भारत सरकार द्वारा प्रदत्त अलंकरण ‘पद्म-भूषण’ को भी वापस कर दिया। चतुर्वेदी जी अद्भूत प्रतिभा के कवि, पत्रकार और लेखक थे। उनकी प्रथम काव्य-पुस्तक, ‘हिम किरीटिनी’ के लिए१९४३ में उन्हें तबके श्रेष्ठतम साहित्यिक सम्मान, ‘देव-पुरस्कार’ से अलंकृत किया गया था। साहित्य अकादमी की ओर से हिन्दी का प्रथम अकादमी पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव भी उन्हें ही प्राप्त है। उनकी पुस्तक ‘हिमतरंगिनी’ के लिए यह पुरस्कार १९५४ में साहित्य अकादमी की स्थापना के बाद दिया गया था।
इस अवसर पर चर्चित कवयित्री शोभा रानी के काव्य-संग्रह ‘रच अलौकिक ऋंगार’ का लोकार्पण बिहार के पूर्व गृह-सचिव और वरिष्ठ कवि जियालाल आर्य ने किया। उन्होंने कवयित्री को बधाई देते हुए कहा कि लोकार्पित पुस्तक भाव-संपदा से संपन्न छोटी-छोटी किंतु सारगर्भित काव्य-रचनाओं का पठनीय संकलन है। यह कवयित्री की प्रथम कृति है। इसमें नारी-चेतना को भी स्वर मिला है।
इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी वंदना से किया। वरिष्ठ कवि और भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी बच्चा ठाकुर, डा विद्या चौधरी सहित अनेक कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं से वातावरण में रस की वर्षा की। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।

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