Presidential Election : श्रीमती द्रौपदी मुर्मू देश की राष्ट्रपति बनने जा रही हैं
योगेन्द्र यादव
Presidential Election : मैने कहा बधाई हो! श्रीमती द्रौपदी मुर्मू देश की राष्ट्रपति बनने जा रही हैं। उनके चेहरे को सपाट देखकर मैंने स्पष्ट किया, बनी नहीं हैं, बनने जा रही हैं। वोट पड़ गए हैं, गिनती की औपचारिकता बाकी है, लेकिन परिणाम में कोई संदेह नहीं है। बात परिणाम की नहीं है, उन्होंने कहा। किसी ना किसी को तो राष्ट्रपति बनना ही था। इनमे क्या खास बात है?
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खास बात तो है, मैं बोला। पहली बार देश की Tribal on the Highest Post समाज के प्रतिनिधि को आसीन होने का मौका मिलेगा, और वह भी एक महिला को! इस बार गणतंत्र दिवस की परेड में सब जनरल और फौजी एक आदिवासी महिला को सैल्यूट करेंगे। आप को न सही, मुझे तो गर्व होगा। जरा सोचिए, टीवी पर इस महिला को देखकर कितनी लड़कियों को प्रेरणा और ऊर्जा मिलेगी।
Draupadi Murmu set to become President : उनके चेहरे पर उत्साह नहीं था। बोले, महिला तो पहले भी इस देश की राष्ट्रपति बन चुकी है। आदिवासी महिला होने में क्या खास बात है? इस सवाल के लिए मैं जैसे तैयार बैठा था। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में साक्षरता 64% थी, लेकिन आदिवासी महिलाओं में सिर्फ 42% थी। अगर ग्रेजुएट की बात करें तो पूरे देश में 9% के करीब थे लेकिन आदिवासी महिला में 3% से भी कम। स्वास्थ्य का कोई भी पैमाना ले लीजिए, चाहे शिशु मृत्यु दर हो या बालिकाओं का कुपोषण या फिर एनीमिया ग्रस्त महिलाएं, आदिवासी महिला की स्थिति देश में सबसे बदतर है। अगर इस देश का कोई अंतिम व्यक्ति है तो वह जरूर आदिवासी महिला ही होगी।
उनकी चुप्पी से हौसला लेकर मैंने बात आगे बढ़ाई। द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना इस देश की अंतिम पायदान पर बैठी 6 करोड़ आदिवासी महिलाओं का सम्मान है। उन्हे मिलने का मौका तो नहीं मिला है, लेकिन उनके बारे में जितना पढ़ा है, उससे यह स्पष्ट है कि वे विलक्षण महिला हैं। गांव की पहली ग्रेजुएट, विकट परिस्थिति में भी शिक्षा हासिल करने की लगन, फिर वापस आकर समाज की सेवा और तमाम व्यक्तिगत आघात के बावजूद सार्वजनिक जीवन में बने रहना। गवर्नर जैसे पद पर रहने के बाद भी समाज से कटी नहीं। Governor of Jharkhand होते हुए द्रौपदी मुर्मू जी ने वहां के सभी कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों का दौरा किया जो दलित आदिवासी और अन्य पिछड़े समाज की लड़कियों के लिए विशेष विद्यालय हैं। यह सब कोई छोटी बात नहीं है।
उन्होंने ध्यान से बात सुनी लेकिन चेहरे के भाव नहीं बदले। बोले: राष्ट्रपति तो रबड़ की मुहर है। उस कुर्सी पर किसी के बैठने से उसी के समाज के लोगों को क्या फर्क पड़ेगा? याद नहीं आपको जब इस देश में सिखों का नरसंहार हुआ था उस वक्त ज्ञानी जैल सिंह इस देश के राष्ट्रपति थे। गुजरात के दंगों के बाद अब्दुल कलाम इस देश के राष्ट्रपति बने। क्या उससे दंगे के पीड़ितों को न्याय मिला? During the tenure of Ramnath Kovid में दलितों पर के उत्पीड़न की अनेकों घटनाएं हुई। क्या फर्क पड़ा?
उनकी बात सुनकर मुझे एक घटना ध्यान आई। Governor of Jharkhand द्रौपदी मुर्मू के 22 जून को एनडीए का राष्ट्रपति प्रत्याशी होने का समाचार आया। उसके 10 दिन बाद मध्य प्रदेश के गुना जिले से खबर आई कि सहरिया आदिवासी समुदाय की 38 वर्षीय महिला Ram Pyari को जिंदा जला कर मार दिया गया। उसके परिवार को मध्य प्रदेश सरकार की ओर से 6 बीघा जमीन दी गई थी। कागज भी उनके पास थे। लेकिन जमीन पर गैर आदिवासी समाज के लोगों का कब्जा था, खेती वही कर रहे थे। ऊपर से रामप्यारी के परिवार को धमका रहे थे।
इस घटना से एक सप्ताह पहले Ram Pyari और उसके पति अर्जुन ने पुलिस को सूचना दी, सुरक्षा मांगी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। जब Ram Pyari ने खेत में जाकर आपत्ति जताई तो उन्होंने वहीं उस पर डीजल छिड़ककर उसे जिंदा जला दिया। इस घटना का वीडियो भी मौजूद है। मैं सोचने लगा, क्या द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से Ram Pyari और उसके परिवार को न्याय मिल जाएगा? क्या यह सुनिश्चित हो पाएगा कि इस देश में एक और रामप्यारी को दिनदहाड़े न जलाया जाए?
मेरी चुप्पी को उन्होंने तोड़ा। वे बोले, देखो प्रतीकों का महत्व मैं भी समझता हूं। अगर राष्ट्रपति को सिर्फ रबड़ की मोहर ही होना है तो मैं भी चाहूंगा कि मोहर पर एक और मुखर्जी, पाटिल, शर्मा या फिर उनकी जगह किसी सिन्हा, रेड्डी और यादव के नाम की बजाय किसी मुर्मू, सोरेन, मुंडा, राठवा, मीणा या फिर जाटव और वाल्मीकि का नाम हो। सैंकड़ों हजारों साल से सत्ता से बहिष्कृत किए गए समाज को न्याय तभी मिलेगा जब उसके प्रतिनिधि खुद कुर्सी पर बैठेंगे।
अब वो रौ में बोलते जा रहे थे। असली सवाल यह है कि किस मार्ग पर चलकर दलित या आदिवासी कुर्सी तक पहुंचेंगे? एक वह क्रांति मार्ग है जो बाबासाहेब अंबेडकर, नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग ने दिखाया था। यानी कि बहिष्कृत समाज के लोग सामाजिक न्याय के आंदोलन के दम पर सत्ता पर काबिज हों। तमिलनाडु के द्रविड़ आंदोलन और कांशीराम जी की बसपा ने कमोबेश यही रास्ता अपनाया था। इस रास्ते से सत्ता हासिल करने पर Use of Social Power बुनियादी सामाजिक न्याय के लिए कर पाता है।
दूसरा मार्ग बराक ओबामा या फिर राष्ट्रपति के आर नारायणन ने दिखाया था। इस तेजस्वी मार्ग पर चलकर सत्ता प्राप्ति सामाजिक न्याय आंदोलन के जरिए नहीं होती, लेकिन सत्ता पर काबिज होकर कुछ नेता अपनी व्यक्तिगत प्रतिभा और वैचारिक प्रतिबद्धता से बहिष्कृत समाज का कुछ हित साध पाते हैं। तीसरे मार्ग को चमचा मार्ग या शिखंडी मार्ग कुछ भी कह लीजिए।
इस मार्ग से आए outcast society के नेतृत्व को बड़ी-बड़ी कुर्सियों पर बैठाया जाता है ताकि वह अपने समाज के विरुद्ध हो रहे अन्याय और अत्याचार को ढकने का काम करें। ऐसे नेता चाहे जितने भी योग्य हो, वे सेफ्टी वाल्व का काम करते हैं ताकि वंचित समाज का गुस्सा ज्वालामुखी की तरह फूट न जाय। सामाजिक अन्याय और शोषण की व्यवस्था को बनाए रखने में वे बहुत उपयोगी साबित होते हैं, जिससे इस वर्ग का वोट भी मिल जाए और सत्ता को इनके लिए कुछ करना भी ना पड़े।
द्रौपदी मुर्मू इनमे से किस मार्ग पर चलेंगी? जब इस सवाल का जवाब मिल जाएगा तब तुम्हारी बधाई भी कुबूल कर लूंगा, यह कहकर उन्होंने अपनी बात पूरी की। बात तो सही थी लेकिन मेरा मन मान नहीं रहा था। मैं किसी और को ढूंढ रहा था जो मेरी बधाई स्वीकार कर ले। Presidential Election से यह तो लग ही गया है कि द्रौपदी मुर्मू देश की अगली राष्ट्रपति बनने जा रही हैं।