सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पीरियड के दौरान छात्राओं और महिला कर्मचारियों को छुट्टी देने से संबंधित याचिका खारिज कर दी और इस मामले में याचिकाकर्ताओं को केंद्र सरकार के सामने अर्जी लगाने का सुझाव दिया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ जस्टिस पी एस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि चूंकि यह नीतिगत मसला है। ऐसे में याचिकाकर्ता को ेकंद्र सरकार के केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सामने अर्जी लगानी चाहिए।
लॉ स्टूडेंट को सीजेआई चंद्रचूड़ की नसीहत
आपको बता दें कि महिलाओं को पीरियड के दौरान छुट्टी से जुड़ी याचिका के अलावा इसी मसले पर कानून के छात्र ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट भी दाखिल की थी। सुनवाई के दौरान जब चीफ चस्टिस डीवाईचंद्रचूड़ के सामने कैविएट आई तो उन्होंने छात्र को ताकीद देते हुए कहा कि आप लाइब्रेरी में जाकर पढ़ाई करिये, कोर्ट की कार्यवाही में हस्तक्षेप का क्या मतलब है ? आपका यहां कोई काम नहीं है। सीजेआई ने यह भी कहा कि ये कैविएट बस पब्लिसिटी हासिल करने के लिए लगाई गई थी। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम नहीं चाहते हैं कि कानून के छात्र इस तरह की चीजों में कूदें। हालांकि सुप्रीम कोर्ट की बेंच कैविएट लगाने वाले छात्र के एक तर्क स सहमत नजर आई कि अगर इस तरह की छुट्टी के लिए मजबूर किया गया तो हो सकता है कि संस्थाएं महिलाओं का नौकरी देने से कन्नी काटने लगें।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में जो पीआईएल दाखिल की गई थी उसमें पूरे देश में छात्राओं और वर्किंग विमेन के लिए पीरीयड के दौरान लीव की मांग की गई थी। याचिका में खासतारै से जोमैटो, बायजूज, स्विगी, मातृभूमि, एआरपी ग्रुप जैसी कंपनियों का हवाला देतेे हुए कहा गया था कि ये कंपनियां पेड पीरियड लीव देतेी हैं और इसी आधार पर सुप्रीम कोेर्ट से मांग की गई कि राज्य सरकारों को पीरीयड लीव के लिए नियम बनाने का आदेश दें।
याचिका में मेघालय का उदाहरण
याचिका में मैटर्निटी बेनिफिट एक्ट के सेक्शन १४ को प्रभावी तौर पर लागू कराने की भी मांग की गई थी। इस एक्ट को प्रभावी तौर पर लागू कराने के लिए इंस्पेक्टर की नियुक्ति का प्रावधान है। याचिका में कहा गया था सिर्फ मेघालय सरकार ने साल २०१४ में ऐसे इंस्पेक्टर की नियुक्ति के लिए नोटिफिकेशन जारी किया था। याचिका में तर्क दिया गया था कि महिलाओ को पीरियड लीव से वंचित रखना संविधान के आर्टिकल १४ यानि समानता के अधिकार का उल्लंघन है।