प्रोफेसर राजकुमार जैन
इस खबर को जानकर सन्न रह गया। 50 साल से ज्यादा वक्त जिसके साथ जेल, रेल, धरने प्रदर्शन, जलसे जुलूस, पार्टी बैठकों में गुज़ारे हो और एक पल भी ऐसा नहीं आया जब किसी बात पर खटास या मनमुटाव हुआ हो। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के दिल्ली और राष्ट्रीय अधिवेशनों, समाजवादी युवजनन सभा के सम्मेलनों बैठकों में बरसों बरस एक साथ गुजारे हैं। थान सिंह जोश ऐसे साथी थे जिनको केवल प्रोग्राम की खबर होनी चाहिए थी, यह हो ही नहीं सकता था कि वह उसमें शिरकत न करें।
कभी-कभी काफी हाउस मै 5-7 साथियों के जमघट में ठहाके लगाते हुए मिल जाते थे।
हमेशा मुस्कुराहट, धीमी और महीन आवाज में बातचीत करना उनके स्वभाव में था। हमारे बुजुर्ग मरहूम ज्ञानी रतन सिंह की संगत में उन पर सोशलिस्ट रंग चढ़ा था। दिल्ली के अपने साथी हरभजन आहूजा, सरदार तेजा सिंह, गुरदेव सिंह, दिल्ली के पुराने सोशलिस्ट नेता शंकर दास रोज के बेटे रोज, विनोद सैनी तथा अन्य साथियों के साथ समय-समय पर नारा लगाते हुए सभा में पहुंचते थे। दिल्ली में सोशलिस्टों द्वारा मनाया जाने वाले दो यादगार दिवस, 9 अगस्त1942 क्रांति दिवस की प्रभात फेरी तथा पहली जनवरी को दिल्ली के सोशलिस्ट मिलन के अवसर पर खासतौर से पहुंचने का उनका प्रयास रहता था।दिल्ली के हमारे मरहूम नेता सांवल दास गुप्ता के गली आर्य समाज बाजार सीताराम के नशा बंदी वाले कार्यालय से संचालित गतिविधियों में उनकी अहम भूमिका रहती थी। अखिल भारतीय अंत्योदय संस्थान की मार्फत दिल्ली की वाल्मीकि बस्तियों में छोटे बच्चों को पढ़ाने के लिए भी उन्होंने अभियान चलाया था।
उनकी एक बड़ी खासियत यह भी थी कि हर सभा में चुपचाप पीछे की कतार में आकर बैठ जाते थे, नाम पुकारे जाने पर भी पहली पंक्ति में बैठने से गुरेज करते थे। दिल्ली की सोशलिस्ट पार्टी के कई बार कार्यकारणी तथा पदों पर चुने गए थे। हैदराबाद में समाजवादी युवजन सभा के राष्ट्रीय अधिवेशन में सचिव पद पर भी वे निर्वाचित हुए थे।
आज जब इंसान पद पैसे के लालच में विचारधारा, पार्टी को कपड़े की तरह बदल देता है, साथी थान सिंह कभी भी किसी भी हालत में सोशलिस्ट तहरीक से नहीं डिगें। जब ऐसा साथी चला जाता है तो उस स्थान की पूर्ति आज के दौर में बड़ी मुश्किल दिखाई देती है। दिल्ली की सोशलिस्ट बिरादरी को उनकी बेहद कमी अखरेगी।