चरण सिंह
इसे महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव का परिणाम का असर कहें, इसे उत्तर प्रदेश के उप चुनाव बीजेपी की प्रचंड जीत कहें, इसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बंटेंगे तो कटेंगे नारा का असर कहें या फिर जदयू से मुस्लिमों का होता मोहभंग कि गैर संघवाद का नारा देने वाली नीतीश कुमार की पार्टी जदयू बीजेपी की तरह हिंदुत्व के रास्ते पर आ रही है। तो क्या जदयू एनडीए में शिवसेना की जगह लेने जा रही है। दरअसल एक ओर जहां नीतीश कुमार ने पटना में हाल ही में जमीयत उलेमा हिंद द्वार बुलाई गई वक्फ बोर्ड की बैठक में भाग नहीं लिया वहीं केंद्रीय मंत्री और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करते हुए यहां तक कह दिया कि अल्पसंख्यक जदयू को वोट नहीं करते हैं पर नीतीश कुमार उनके लिए काम करते हैं।
चाहे मदरसों की बात हो या फिर उर्दू शिक्षकों की। नीतीश कुमार ने आगे बढ़कर अल्पसंख्यकों के लिए काम किया है। एक तरह से ललन सिंह ने यह स्पष्ट कर दिया कि मुस्लिम उन्हें वोट नहीं करते हैं। पटना में वक्फ बोर्ड की बैठक में मौलाना अरशद मदनी प्रधानमंत्री के वक्फ नाम की कोई चीज नहीं कहने पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि फिर तो प्रधानमंत्री यह भी कह सकते हैं कि नमाज और जमात का भी कोई दस्तूर नहीं है।
ललन सिंह के इस स्टैंड पर असदुद्दीन पार्टी और लालू प्रसाद यादव की पार्टी ने जदयू पर हमला बोला है। असदुद्दीन के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने कहा कि ललन सिंह ने संवैधानिक पद का अपमान किया है। उनका बयान उनकी आरएसएस और बीजेपी के साथ निकटता दर्शाता है। ऐसे ही राजद प्रवक्ता एजाज अहमद ने कहा है कि ललन सिंह का बयान दर्शा रहा है कि जदय भी बीजेपी की विचारधारा की ओर जा रही है। सीतामढ़ी के सांसद देवेश चंद्र ठाकुर ने भी नाराजगी जताते हुए कहा था कि वह यादवों और मुस्लिमों का कोई काम नहीं कराएंगे।
दरअसल मुस्लिमों जदयू की ओर से यह सोची समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है। नीतीश कुमार की नाराजगी मुस्लिमों से इस बात को लेकर है कि २०२० के विधानसभा चुनाव में जदयू ने ११ मुस्लिम प्रत्याशी चुनावी समर में उतारे थे। पर मुसलमान एक भी प्रत्याशी नहीं जिता पाये। ऐसे ही २०२४ के लोकसभा चुनाव में किशनगंज से मुजाहिद आलम को प्रत्याशी बनाया था पर कांग्रेस प्रत्याशी मोहम्मद जावेद आजाद ने उन्हें हरा दिया था। वैसे भी आज की तारीख में नीतीश कुमार ने बीजेपी के सामने पूरी तरह से आत्मसमर्पण कर रखा है। वह समय समय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पैर छूते दिखाई दे जाते हैं। गैर संघवाद का नारा देने वाले नीतीश कुमार कभी प्रधानमंत्री की तारीफ करते हुए कहते हैं कि कोई नहीं है टक्कर में और कभी उनके पैर छूने लगते हैं। तो क्या जदयू अब एनडीए में शिवसेना की जगह भरने वाली है।
इसे महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव का परिणाम का असर कहें, इसे उत्तर प्रदेश के उप चुनाव बीजेपी की प्रचंड जीत कहें, इसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बंटेंगे तो कटेंगे नारा का असर कहें या फिर जदयू से मुस्लिमों का होता मोहभंग कि गैर संघवाद का नारा देने वाली नीतीश कुमार की पार्टी जदयू बीजेपी की तरह हिंदुत्व के रास्ते पर आ रही है। तो क्या जदयू एनडीए में शिवसेना की जगह लेने जा रही है। दरअसल एक ओर जहां नीतीश कुमार ने पटना में हाल ही में जमीयत उलेमा हिंद द्वार बुलाई गई वक्फ बोर्ड की बैठक में भाग नहीं लिया वहीं केंद्रीय मंत्री और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करते हुए यहां तक कह दिया कि अल्पसंख्यक जदयू को वोट नहीं करते हैं पर नीतीश कुमार उनके लिए काम करते हैं।
चाहे मदरसों की बात हो या फिर उर्दू शिक्षकों की। नीतीश कुमार ने आगे बढ़कर अल्पसंख्यकों के लिए काम किया है। एक तरह से ललन सिंह ने यह स्पष्ट कर दिया कि मुस्लिम उन्हें वोट नहीं करते हैं। पटना में वक्फ बोर्ड की बैठक में मौलाना अरशद मदनी प्रधानमंत्री के वक्फ नाम की कोई चीज नहीं कहने पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि फिर तो प्रधानमंत्री यह भी कह सकते हैं कि नमाज और जमात का भी कोई दस्तूर नहीं है।
ललन सिंह के इस स्टैंड पर असदुद्दीन पार्टी और लालू प्रसाद यादव की पार्टी ने जदयू पर हमला बोला है। असदुद्दीन के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने कहा कि ललन सिंह ने संवैधानिक पद का अपमान किया है। उनका बयान उनकी आरएसएस और बीजेपी के साथ निकटता दर्शाता है। ऐसे ही राजद प्रवक्ता एजाज अहमद ने कहा है कि ललन सिंह का बयान दर्शा रहा है कि जदय भी बीजेपी की विचारधारा की ओर जा रही है। सीतामढ़ी के सांसद देवेश चंद्र ठाकुर ने भी नाराजगी जताते हुए कहा था कि वह यादवों और मुस्लिमों का कोई काम नहीं कराएंगे।
दरअसल मुस्लिमों जदयू की ओर से यह सोची समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है। नीतीश कुमार की नाराजगी मुस्लिमों से इस बात को लेकर है कि २०२० के विधानसभा चुनाव में जदयू ने ११ मुस्लिम प्रत्याशी चुनावी समर में उतारे थे। पर मुसलमान एक भी प्रत्याशी नहीं जिता पाये। ऐसे ही २०२४ के लोकसभा चुनाव में किशनगंज से मुजाहिद आलम को प्रत्याशी बनाया था पर कांग्रेस प्रत्याशी मोहम्मद जावेद आजाद ने उन्हें हरा दिया था। वैसे भी आज की तारीख में नीतीश कुमार ने बीजेपी के सामने पूरी तरह से आत्मसमर्पण कर रखा है। वह समय समय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पैर छूते दिखाई दे जाते हैं। गैर संघवाद का नारा देने वाले नीतीश कुमार कभी प्रधानमंत्री की तारीफ करते हुए कहते हैं कि कोई नहीं है टक्कर में और कभी उनके पैर छूने लगते हैं। तो क्या जदयू अब एनडीए में शिवसेना की जगह भरने वाली है।