चला मुनादी का दौर 

0
272
Spread the love
डॉ. कल्पना पाण्डेय  ‘नवग्रह’
ल पड़ा मुनादी का अब दौर
घर-घर शोर घर-घर शोर
पकड़ के पूंछ बचे कामों के
नए कलेवर डंका ज़ोर
घर-घर शोर घर घर शोर।
टूटी है सड़कें गड्ढों में पानी
डीजल पेट्रोल मंहगा
खत्म बिजली की कहानी
कोरोना के पीछे  डेंगू खड़ा है
बढ़ती महंगाई उठता धुआं है
रोए किसान अनाज कहां है
हवा में ज़हर का स्तर बढ़ा है
ढकने सभी को आ गई मुनादी
सपने भविष्य के वर्तमान है काली
आ गई मुनादी आ गई मुनादी।
प्रजा का भरोसा -विश्वास क्षणिक होना बहुत ही कारगर है। हमेशा से त्रस्त जनता को उम्मीद की हल्की -हल्की जलती लौ से प्रकाश के कुछ किरण , दिखावे के और भुलावे के नज़राने पेश करने के चमत्कारिक तरीके हैं, मुनादी का दौर!
चल पड़ा है हर गली -मोहल्ले, गांव -गांव , शहर- शहर प्रचार का जोर -शोर और एलान-ए-जंग । पुराने पर नए कलेवर का आकर्षक और लुभावना,  मुनादी का ज़ोर। पार्टी -पार्टी की अपनी विचारधारा है। पर अवसरवाद की विचारधारा में कोई परिवर्तन नहीं,  चिरशाश्वत ।  जहां अपनी रोटी सेंकने को भरपूर मौका और साजो – सामान मिले वही पार्टी का चेहरा सही,  समय के माकूल और राजनीतिक उसूलों पर खरा।
हो रही मुनादी लैपटॉप , स्कूटी , मेडिकल कॉलेज,  महिलाओं को आरक्षण , मुफ्त बिजली- पानी और न जाने कितने झूठ के आवरण में लिपटे,  आने वाले समय में अनेकानेक लुभावनी संभावनाएं। हम तो बस झांसे में आने के लिए ही चुनावी सरगर्मियों के इंतज़ार में बैठे हैं। कोरोना की मार धीमी हुई है खत्म नहीं । डेल्टा वेरिएंट ने मुंह खोलना शुरू कर दिया है। न तो चेहरे पर मास्क न दो ग़ज दूरी ज़रूरी। चुनावी रैलियां तो मानो प्रभु का आशीर्वाद हैं। सभी अमियरस में नहाए, नियमों की अवहेलना करते ,अपनी दुंदुभी बजाते रोज़ ही नई-नई मुनादी कर रहे हैं।
एक हफ़्ते की बारिश ने आधे भारत को जलमग्न कर दिया ।गांव के गांव तबाह हो गए । पूर्व नियोजित परियोजनाओं की पोल खुल गई । न कोई संसाधन न कोई उपाय न कोई योजना । हां भविष्य के मेडिकल कॉलेजों का शिलान्यास कागज़ों पर हवाई किले ज़रूर बना रहा। डेंगू के सामने जनता बेबस और लाचार है।   हर गली में कूड़े का ढेर, उफनती नालियां, गड्ढों में लबालब पानी। बारिश में बस पानी ही पानी । नालियों से अपने मज़बूत रिश्तों को प्रकट करती, बदबू से भरी, जीवंतता की कहानी। पर इन पर न तो कोई ध्यान है न कोई उपाय ही बचा है। इन से दो-चार होने की, जीवन -पर्यंत व्यावहारिकता को हमें सीख ही लेना है । वर्तमान की झलकियां डर  प्रकट करती हैं पर भविष्य के सुनहरे ख़्वाब की मुनादी जोरों पर है।
राजा को गरीब प्रजा से क्या लेना ?  वर्ग विशेष के सामंतों के झूठे आश्वासनों से प्रजातंत्र के मुसीबतों से पूरी की पूरी छुट्टी।
उदार हृदय जनता बार-बार लुभावनी मुनादी के जाल में फंस जाती है । और फिर ! बाढ़, सूखा, बरसात, अनाज की कमी , महंगाई,  डीजल -पेट्रोल के आसमान छूते दाम, रोज़मर्रा के खाने के सामानों के झमेले में फंसी  प्यारी जनता अपनी ही कराहें सुनती रहती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here