सत्ता के लिए किसानों के सामने नतमस्तक हुई मोदी सरकार!

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सी.एस. राजपूत 

खिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी गलती का अहसास हो ही गया। नये कृषि कानूनों के विरोध में एक साल से चल रहे किसान आंदोलन को तमाम तरह से बदनाम करने के बाद भी जब आंदोलन तुड़वाया न जा सका। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में करारी हार दिखाई लेनी लगी तो भाजपा को समझ में आ गया है कि किसानों ने पंगा लेना उसकी सेहत के लिए ठीक नहीं है। २९ नवम्बर को हो शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र के दौरान संयुक्त किसान मोर्चा के ५०० किसानों के दिल्ली में घुसाने के ऐलान से केंद्र सरकार और बौखला गई। दरअसल किसानों की नाराजगी के चलते भाजपा के हाथ से उत्तर प्रदेश निकलने का फीड बैक आरएसएस की खुफिया टीम से मिल रहा था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आतंरिक विवाद भी लोगों के बीच पहुंचने लगा था। उत्तर प्रदेश चुनाव जीतने के लिए भाजपा को नये किसान वापस लेने के अलावा कोई चारा दिखाई न दिया तो आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु पर्व पर देश को संबोधित करते हुए किसानों से माफी मांगते हुए नये किसान कानून वापस लेने का फैसला लिया।
दरअसल नये कृषि कानूनों में जहां कॉरपोरेट घरानों को खाद्यान्न के भंडारण की छूट दी गई थी वहीं कांट्रेक्ट खेती में किसानों की जमीन हथियाने की आशंका किसान नेताओं ने व्यक्त की थी। अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबाने की नीति पर चल रही केंद्र सरकार ने किसान आंदोलन को भी बदनाम करने के पूरे हथकंडे अपनाये। यहां तक कि २६ जनवरी को ट्रैक्टर परेड में लालकिला प्रकरण में किसानों को आतंकवादी तक कहा गया। किसान आंदोलन में पाकिस्तान, चीन से फंडिंग होने का भी आरोप लगाया गया। किसानों को आतंकवादी, नक्सली, देशद्रोही जाने क्या-क्या कहा गया। मतलब किसी भी कीमत पर केंद्र सरकार किसान आंदोलन को खत्म करने चाहती थी। उत्तर प्रदेश में केंद्रीय राज्यमंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष पर अपनी गाड़ी से कुचलकर किसानों की हत्या करने का आरोप भी है, जिसके चलते वह जेल में बंद हैं। बांसगांव के सांसद कमलेश मिश्रा के करीबी रामवृक्ष यादव ने अपने समर्थकों के साथ दीपक गुप्ता नाम के एक युवक के साथ गाली-गलोच करते हुए उसके साथ मारपीट की। उत्तर प्रदेश में ऐसा लगने लगा था कि जैसे केंद्र सरकार में बैठे भाजपा के लोग उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को नीचा दिखाने मंे लगे हैं। गत दिनों सुल्तानपुर में पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के उद्घाटन पर भी मोदी औेर योगी में आंतरिक विवाद की तस्वीरें मार्केट में आई। एक तस्वीर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पीछे चलते दिखाई दिये। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश चुनाव में नये कृषि कानून भाजपा के खिलाफ जा रहे थे। अब किसान कानून वापस लेने के ऐलान के साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार गन्ने के बकाया भुगतान पर भी फोकस कर रही है। मतलब गन्ना किसानों को उनके गन्ने के बकाया भुगतान भी होने वाला है।
दरअसल केंद्र सरकार जहां किसानों की लागत के डेढ़ गुणे मूल्य पर विफल साबित हुई वहीं २०२२ में किसानो की आय दोगुनी करने के मामले में भी पिछड़ती होती प्रतीत हो रही है। कई राज्यों में हुए उप चुनाव की हार ने भी भाजपा को चेहरा दिखाया है। अगले साल उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड समेत पांच राज्य में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भी किसान आंदोलन का असर पड़ने की भी आशंका भाजपा को सता रही थी। यही वजह है कि किसानों की सहानुभूति बटोरने के लिए भाजपा ने नये किसान कानून वापस लिये हैं। जमीनी हकीकत तो यह है कि हर पार्टी बस किसानों के वोट बटेारने की राजनीति करती है। किसानों के लिए योजनाएं तो बहुत चलाई जा रही हैं पर उन योजना का फायदा या तो मंत्री और नौकरशाह उठाते हैं या फिर बिचौलिये। किसानों को तो बस ठगा ही जाता रहा है। दरअसल शीर्षस्थ उद्योगपति गौतम अडानी और मुकेश अंबानी ने खेती से संबंधित हजारों करोड़ के खुदरा व्यापार पर अपनी निगाही गड़ाई हुई थी। यही वजह थी कि नये कृषि कानून बनने से पहले ही अडानिी ग्रुप ने खाद्यान भंडारण के लिए अपने गौदाम बना लिये थे।

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