Maharsatra Political Crisis : राजनीति में गुलामी को ख़त्म करने के लिए दलों से वंशवाद खत्म होना जरूरी
भले ही Maharsatra Political Crisis के चलते शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे की बगावत को राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह से पेश किया जा रहा हो, भले ही इसे भाजपा का खेल कहा जा रहा हो, भले ही एकनाथ शिंदे अचानक बाला साहेब के हिन्दुत्व का राग अलापने लगे हों पर शिंदे की इस बगावत को वंशवाद के खिलाफ क्रांति के रूप में भी लेना चाहिए।
Eknath Shinde ने Uddhav Thackrey Govt को खुली चुनौती देते हुए एक खुला पत्र लिखा है। उन्होंने लिखा है कि आपने जब वर्षा को छोड़ा तो काफी भीड़ वहां दिखाई दी। अच्छा हुआ कि पहली बार इस बंगले के दरवाजे आम लोगों के लिए भी खोले गए। उन्होंने लिखा है कि गत ढाई साल से इस बंगले के दरवाजे बंद थे। विधायक होकर भी हमें आपसे मिलने के लिए आपके करीबियों के आगे-पीछे घूमना पड़ता है।
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Uddhav Thackrey Govt को कटखरे में खड़ा करते हुए एकनाथ शिंदे ने लिखा है कि आपके पास इकट्ठा हुए कथित चाणक्यों ने हमें राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव की रणनीति से दूर रखा । नतीजा अब सबके सामने है। हमें छठी मंजिल पर आप लोगों से मिलने की बात कही गई पर ऐसा कभी हो नहीं पाया। अपने विधानसभा क्षेत्रों पर काम के लिए हमने कई बार संपर्क किया तो आप फोन तक नहीं उठाते।
Eknath Shinde News : एकनाथ शिंदे ने लिखा है कि ये सभी चीजें हम भुगत रहे थे और सभी विधायकों ने यह सहन किया है। हमने आपके आसपास के लोगों को यह बताने की कोशिश की पर किसी ने कुछ नहीं सुना। हिंदुत्व, अयोध्या और राम मंदिर शिवसेना के मुद्दे पर भी उद्धव ठाकरे को लपेटा है ।
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एकनाथ शिंदे के समर्थकों ने उनके पक्ष में पोस्टल भी लगाने शुरू कर दिये है। इन पोस्टरों में शिंदे के साथ बाला साहेब ठाकरे का फोटो है। यह Eknath Shinde News का एक हिस्सा है कि उनके बारे में बताया जाता है कि वह जमीन से उठकर राजनीतिक बुलंदी टक पहुंचे हैं। टेम्पो चलाने वाले एकनाथ शिंदे ने शिवसेना में ऐसी पकड़ बनाई थी कि वह बाला साहेब के बहुत करीब आ गए थे। एकनाथ शिंदे बाला साहेब के इतने करीब थे कि बाला साहेब ने राणे से ज्यादा तवज्जो एकनाथ शिंदे को देना शुरू कर दिया था। शिंदे उद्धव ठाकरे से भी बाला साहेब जैसा सम्मान चाहते थे जो उनका नहीं मिल रहा था।
यह भी जमीनी हकीकत थी कि शिवसेना में बाला साहेब के नेता एकनाथ शिंदे की इसलिए नहीं चल रही थी क्योंकि पार्टी पर बाला साहेब के बाद उनके बेटे उद्धव ठाकरे का कब्जा था। जितने भी राजनीतिक दलों में वंशवादी मुखिया हैं उनकी सरकार बनने पर वंशवादी ही मुख्मयंत्री बनता है। उत्तर प्रदेश सपा में अखिलेश यादव के बाद महाराष्ट्र में शिवसेना में उद्धव ठाकरे बड़ा उदाहरण है। जिस तरह से राजनीतिक दलों में वंशवाद हावी है। राजनीतिक दल संगठन न रहकर एक कंपनी बनते जा रहे हैं। दलों में एक ही विशेष परिवार का कब्जा है। ऐसे में एकनाथ शिंदे का शिवसेना के वजूद को अपनी ओर करने को उनका दुस्साहस नहीं बल्कि साहस माना जाना चाहिए। लोकतंत्र में भी मातोश्री किसी राजा महाराजा के दरबार से कहीं कम नहीं है। बाला साहेब के समय से ही वहां पर माथा टेकने का प्रचलन है।
बाला साहेब ने पार्टी बनाई और अपने बेटे उद्धव ठाकरे को सौंप दी। अब उद्धव ठाकरे के बाद उनका बेटा आदित्य ठाकरे उनका उत्तराधिकारी बनने की लाइन में है। ऐसे में एकनाथ शिंदे जैसे नेता क्या इन वंशवादी नेताओं की गुलामी करने के लिए ही पैदा हुए हैं। उनके मंत्री होने के बावजूद उनसे ज्यादा एनसीपी नेताओं की चल रही थी।
यदि शिवसेना पर एकनाथ शिंदे का कब्जा हो जाता है तो उनकी यह क्रांति वंशवाद के नाम पर चल रहे दलों के लिए एक सबक होगा। बात Family Politics in India की करें तो आजादी के बाद कांग्रेस पर पंडित जवाहर लाल नेहरू का कब्जा रहा तो उनके बाद कांग्रेस (इंदिरा) पर इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी, राजीव गांधी के बाद सोनिाय गांधी और अब एक तरह से प्रियंका गांधी और राहुल गांधी का कब्जा है। ऐसे ही डॉ. राम मनोहर लोहिया और चौधरी चरण सिंह से राजनीतिक पाठ सीखने वाले मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई तो उन्हें बस अपने परिवार की ही याद रही। उनके समय में ही भले उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष राम शरण दास थे पर उनका सभी काम मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल यादव देखते थे।
सपा में उत्तराधिकारी की लड़ाई किसी बाहर के नेता से नहीं थी बल्कि परिवार में ही चाचा भतीजे की थी। मलतब ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी पार्टी के नेता के लिए झगड़ा नहीं हो रहा है बल्कि सिंहासन के लिए झगड़ा हो रहा है। मुलायम सिंह यादव के बाद अब उनका बेटे अखिलेश यादव का हाथों में पार्टी की बागडोर है।
Family Politics in India के मामले में राष्ट्रीय लोकदल का भी यही हाल है। चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक पाठशाला में से भले ही मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद, राम विलास पासवान, शरद यादव, केसी त्यागी जैसे समाजवादी निकले हों पर उन्होंने अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी अपने बेटे चौधरी अजित सिंह बनाया था। अब राष्ट्रीय लोकदल की बागडोर अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी के हाथों में है। ऐसा ही हाल राष्ट्रीय जनता दल का है। जनता दल लालू प्रसाद ने बनाया ओैर उनके बेटे तेजस्वी यादव इसकी बागडोर संभाले हुए है।
बहुजन समाज पार्टी में मायावती ने अपने बाद पार्टी का उत्तराधिकारी अपने भतीजे आकाश को घोषित कर दिया है। एनसीपी में भी शरद पवार के बाद उनकी पार्टी उनकी बेटी सुप्रिया संभाल रही हैं। ऐसे में झारखंड मुक्ति मोर्चा में शिबु सोरेन के बाद उनके बेटे हेमंत सोरेन ने पार्टी की बागडोर संभाल ली है। डीएमके में एम करुणानिधि के बाद उनके बेटे एमके स्टालिन संभाल रहे हैं। लोजपा की बागडोर भले ही पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान के हाथों में न हो पर उनके भाई पशुपति कुमार पारस ने पार्टी पर कब्जा जमा लिया है।
भले ही Bjp Family Politics List ज्यादा लम्बी न हो, भले ही पार्टी नेतृत्व के मामले में वंशवाद न हो पर संगठन और सत्ता में वंशवाद से इंकार नहीं किया जा सकता है। भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा में वंशवाद न पनपने का दावा करते हों पर जमीनी हकीकत यह है कि भाजपा भी वंशवाद पनप रहा है। Bjp Family Politics List के मामले में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह नोएडा से विधायक हैं। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह भाजपा में अच्छे खासे नेता हैं। हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धुमल के बेटे अनुराग ठाकुर केंद्र में राज्यमंत्री हैं।
देश में जिस तरह से राजनीतक दलों में वंशवाद हावी है ऐसे में जहां देश में योग्य नेतृत्व का अभाव का अंदेशा बना हुआ है वहीं राजनीतिक दलों में लोकतंत्र न के बराबर है। यह भी कहा जा सकता है कि लोकतंत्र में राजनीति का राजतंत्र है।
राजनीतिक दलों का यह हाल हेै कि यदि पार्टी के मुखिया या फिर उनके परिवार के किसी सदस्य के संपर्क में आप हैं तो आपकी पूछ है नहीं तो आप कितना भी संघर्ष कर लें आपकी कोई सुनने वाला नहीं है। राजनीतिक दलों में गुलामी के चलते ही देश को जुझारू और ईमानदार नेता नहीं मिल पाते हैं। यह राजनीतिक दलों में वंशवाद का हावी होना ही है कि देश में विपक्ष बहुत कमजोर है। चाहे राहुल गांधी होंं, प्रियंका गांधी हों, अखिलेश यादव हों, तेजस्वी यादव हों, जयंत चौधरी हो, चिराग पासवान हों, सुप्रिया हों, उद्धव ठाकरे हों, आदित्य ठाकरे हों, ये सभी नेता वंशवाद के बल पर अपने दलों के मुखिया बने हुए हैं। Maharsatra Political Crisis को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अब दूसरे वंशवादी दलों में भी शिंदे की तरह बगावत करने वाले पैदा होंगे।