चरण सिंह
देश 78 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। हर साल प्रधानमंत्री लाल किले के प्राचीर से ध्वजारोहण करते हैं अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाते हैं। विपक्ष के नेता प्रधानमंत्री के भाषण में कमी निकालते हैं। विभिन्न कार्यालयों में ध्वजारोहण हो जाता है। गली मोहल्लों में तिरंगे दिखाई देते है। जगह-जगह सांस्कृतिक और देशभक्ति पर आधारित कार्यक्रम होते हैं। बस यही है स्वतंत्रता दिवस। क्या इन कार्यक्रमों से कोई कुछ सीखने को तैयार है ? क्या सरकार और विपक्षी नेताओं ने यह जानने की कोशिश की कि यह आजादी कितनी कुर्बानी और बलिदान के बाद मिली है ? क्या आजादी के दीवाने भी सत्ता के लिए संघर्ष कर रहे थे ?
क्या भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, खुदीराम बोस जैसे क्रांतिकारियों ने सत्ता के लिए कुर्बानी दी थी ? क्या लाखों क्रांतिकारियों ने अपना सब कुछ सत्ता के लिए कुर्बान किया था ? यदि नहीं तो फिर आज के नेता सब कुछ सत्ता के लिए क्यों कर रहे हैं ? मतलब आज के नेताओं ने आजादी की कीमत को भुला दिया है।
जब आजादी की लड़ाई में सब कुछ देश के लिए किया जा रहा था तो आजाद देश के नेता सब कुछ देश के लिए क्यों नहीं करते ? या फिर उनके क्रियाकलापों में देशभक्ति क्यों नहीं झलकती ? क्यों सब कुछ सत्ता के लिए करते हैं ? या फिर देश के संसाधनों का इस्तेमाल अपने निजी स्वार्थ के लिए करते हैं। क्या देश के नेता स्वतंत्रता दिवस से कुछ सीखते हैं ? क्या स्वतंत्रता दिवस के बाद नेता कुछ दिन देश के लिए काम करते हैं ? आजादी का मकसद समझे बिना स्वतंत्रता दिवस मनाना मात्र दिखावा है। क्या किसी धर्म विशेष के लोगों ने आजादी हासिल कर ली थी? क्या किसी व्यक्ति विशेष ने आजादी हासिल कर ली थी ?
जब आजादी की लड़ाई में सब कुछ देश के लिए किया जा रहा था तो आजाद देश के नेता सब कुछ देश के लिए क्यों नहीं करते ? या फिर उनके क्रियाकलापों में देशभक्ति क्यों नहीं झलकती ? क्यों सब कुछ सत्ता के लिए करते हैं ? या फिर देश के संसाधनों का इस्तेमाल अपने निजी स्वार्थ के लिए करते हैं। क्या देश के नेता स्वतंत्रता दिवस से कुछ सीखते हैं ? क्या स्वतंत्रता दिवस के बाद नेता कुछ दिन देश के लिए काम करते हैं ? आजादी का मकसद समझे बिना स्वतंत्रता दिवस मनाना मात्र दिखावा है। क्या किसी धर्म विशेष के लोगों ने आजादी हासिल कर ली थी? क्या किसी व्यक्ति विशेष ने आजादी हासिल कर ली थी ?
क्या जाति धर्म में बंटकर आजादी हासिल की जा सकती थी ? नहीं न। जब हिन्दू और मुसलमान ने एक थाली में खाना खाया तब जाकर आजादी मिली थी। मतलब हिन्दू मुस्लिम ने मिलकर आजादी की लड़ाई लड़ी तब जाकर देश आजाद हुआ। क्या अशफाक खां के बलिदान को कम आंका जा सकता है ?
जो लोग आज की तारीख में राजतंत्र की बात करते हैं क्या वह यह समझने को तैयार हैं कि जब देश आजाद हुआ तब जाकर आम आदमी भी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद और विधायक बनने की सोच सकता है। क्या राजतंत्र में आम आदमी राजा बनने की सोच सकता था ? क्या आज के नेता सरदार भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, डॉ. राम मनोहर लोहिया, महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल की विचारधारा या संघर्ष से कुछ सीखने को तैयार हैं ? क्या इन नेताओं को आजादी की कीमत मालूम है ?
जो लोग आज की तारीख में राजतंत्र की बात करते हैं क्या वह यह समझने को तैयार हैं कि जब देश आजाद हुआ तब जाकर आम आदमी भी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद और विधायक बनने की सोच सकता है। क्या राजतंत्र में आम आदमी राजा बनने की सोच सकता था ? क्या आज के नेता सरदार भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, डॉ. राम मनोहर लोहिया, महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल की विचारधारा या संघर्ष से कुछ सीखने को तैयार हैं ? क्या इन नेताओं को आजादी की कीमत मालूम है ?