लगे ठिठुरने गात सब,
निकले कम्बल शाल।
सिकुड़ रहे हैं ठंड से,
हाल हुआ बेहाल।।
बाहर मत निकलो कहे,
बहुत ठंड है आज।
कान पकते सुनते हुए,
दादी की आवाज।।
जाड़ा आकर यूं खड़ा,
ठोके सौरभ ताल।
आग पकड़ने से डरे,
गीले पड़े पुआल।।
सौरभ सर्दी में हुआ,
जैसे बर्फ जमाव।
गली मुहल्ले तापते,
बैठे लोग अलाव।।
धूप लगे जब गुनगुनी,
मिले तनिक आराम।
सर्दी में करते नहीं,
हाथ पैर भी काम।।
निकलो घर से तुम यदि,
रखना बच्चों का ध्यान।
सुबह सांझ घर पर रहो,
ढककर रखना कान।।
लापरवाही मत करो,
ठंड हुई पुरजोर।
ओढ़ रजाई लेट लो,
उठिए जब हो भोर।।
डॉ. सत्यवान सौरभ