होली के रंग अपनों के संग

डा. पुष्पा सिंह विसेन  

संत ऋतु के आगमन संग ही एक अद्भुत सी मस्ती तन मन में छा जाती है.और पेड़ पौधों के झड़ते पत्तों के बीच निकली नयी कोंपले और आमों के बौर हमारे मन मयूर को थिरकने पर मजबूर कर देता है.और हम सभी एक नयी ऊर्जा से भर जाते हैं, फागुन माह की पूर्णिमा हमें जाते जाते रंगों के इस इस त्यौहार में सराबोर करते हुए यह सीख भी दे जाती है कि हम सभी पुराने गिले शिकवे भुला कर एक हो गले मिल जाएं.यह हमारे अंतर्मन की प्रेरणा से हो पाता है.और हम चैत्र नवरात्र के पावन पर्व से अपने भारतीय पञ्चाङ्ग एवं पौराणिक मान्यताओं को आत्मसात करते हुए.नव वर्ष के हर्षोल्लास में डूब जाते हैं.सत्य सनातन धर्म की मान्यता को देखिए और समझिये कि माँ आदिशक्ति श्री भवानी के सानिध्य में ब्रत, पूजा, हवन आदि के साथ अर्पण-तर्पण करते हुए अपने नए वर्ष का आरंभ करते हैं. फिर क्यों नहीं हम अपने जीवन में यह सब भूल कर अनेक प्रकार की गलतियों से अपना जीवन प्रभावित कर कष्टों के चक्रव्यूह में फंस जाते हैं? इसका उत्तर हमारे भीतर ही है.
आईए हम सभी सनातन धर्म के अनुयायी हिन्दू समुदाय, चाहें किसी भी जाति वर्ग के हों,हमारे देश में जितनी भी हिन्दू जातियों के परिवार है| हम सभी एक संकल्प लें कि हम माँ आदिशक्ति श्री भवानी की पूजा अर्चना  पूरे वर्ष भर उसी हर्षोल्लास के साथ करें जैसे हम नववर्ष की नवरात्रि के समय करते हैं. सांझ के दिये के साथ दीपोत्सव दीवाली मनाएं, और प्रातः कालीन मां के माथे पर रोली का टीका लगाते हुए. होली की अनुभूति करें| बाकी के सभी कार्य माँ आदिशक्ति श्री भवानी के सानिध्य में करते हुए जीवन यापन करें.
ऐसा हम सभी करें तो हमारी शक्तियां सदैव जाग्रत रहेंगी और हमारा जीवन आनंदमय और प्रगतिशील होगा| आम का फल टिकोरा बनने से पकने तक के अंतराल में हमें एक महत्त्वपूर्ण संदेश देता है. हम सभी कच्चे आम की चटनी बना कर खाते हैं.और युवा आम का अचार बनाकर वर्ष भर के लिए रख लेते हैं. पके आम का मौसम हमारे लिए स्वदिष्ट मिठास बनाये रखने का संदेश देता है कि हम सभी को अपने जीवन में खट्टे मीठे अनुभूतियों को भी सहेज कर रखते हुए भी अपना जीवन सहज और सरल बनाते हुए खुशहाल रहना चाहिए, और समाज, राष्ट्र के साथ हितार्थ समर्पित रहते हुए मानवीयता के साथ व्यवहार कुशल होना चाहिए|
एक काव्यात्मक होली
आओ खेलें संकल्पों की होली,
सजाएं राष्ट्र हित हम ये रंगोली,

इंसानियत का परचम लहराएं,
समरसता का संदेश हम फैलाएं,

हम सभी भारतीय, हिंदुस्तानी,
कर्तव्यबोध से न करें मनमानी,

कोई भी न अब हमारे देश को लूटे,
ना आपसी कलह से हमारा ये टूटे,

दीप जलाएं हम सरहदों पर अपने,
ना खेले लहू से होली सभी हैं अपने,

वसुधैवकुटुबंशब्द के रचयिता हम,
मिटा सके कोई हमें नहीं किसी में दम,

प्रज्ञा पुष्प, स्वस्तिकाश्री, बन हम हर्षाएं
देश में सिर्फ शान्ति,सौहार्द्र हम फैलाएं|

(लेखिका नारायणी साहित्य अकादमी
की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)

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