सबको चौंकाया
दीपक कुमार तिवारी
रांची(झारखंड)। झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हमेंत सोरेन ने गुरुवार को चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। सोरेन झारखंड के सबसे युवा मुख्यमंत्री भी रहे हैं। 49 साल के सोरेन को इस पद पर पहुंचने के लिए इस बार तीन मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ा। आखिरकार उन्होंने तीनों मोर्चों पर जीत हासिल कर राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में सबसे ताकतवर शख्सियतों में से एक के रूप में अपनी जगह बना ली है।
जमीन घोटाले से जुड़े मामले में जेल से निकलने के बाद हेमंत सोरेन के लिए इस बार का विधानसभा चुनाव काफी कठिन था। उन्हें तीन तरफ से चुनौतियां मिल रही थी। पार्टी का आंतरिक संघर्ष, बाहरी दबाव और विपक्षी दलों द्वारा लगातार किए जा रहे हमले। सोरेन ने इन सबका डटकर मुकाबला किया और आखिरकार विजयी पाने में सफल रहे। चुनाव परिणाम ने यह साबित कर दिया कि हेमंत सोरेन ने झारखंड के राजनीतिक परिदृश्य में सबसे कद्दावर नेताओं में से एक के रूप में अपनी जगह बना ली है।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कठिन कानूनी लड़ाइयों, पार्टी की अंदरुणी बगावतों और व्यक्तिगत असफलताओं से भरी बेहद चुनौतीपूर्ण राजनीतिक यात्रा तय की है। अपने कंधों पर आदिवासी आशाओं और आकांक्षाओं का भार रखते हुए सोरेन को एक कठिन लड़ाई का सामना करना पड़ा।
पहली बार जब उन्होंने जब मुख्यमंत्री कार्यालय में कदम रखा, ऐसा लग रहा था कि परिस्थितियां उनके खिलाफ हैं। फिर भी, प्रत्येक झटके के साथ सोरेन मजबूत होते गए। वे न केवल हाशिये पर पड़े लोगों की आवाज बनकर उभरे, बल्कि राजनीतिक उथल-पुथल के सामने लचीलेपन के प्रतीक के रूप में भी उभरे। उनकी कहानी दृढ़ संकल्प, धैर्य और अटूट संकल्प की है। उनकी कहानी एक ऐसे नेता की गाथा है, जिसने न केवल सत्ता के लिए बल्कि अपने लोगों की आत्मा के लिए हर लड़ाई लड़ी है।
10 अगस्त, 1975 को हजारीबाग के पास नेमरा गांव में जन्मे सोरेन का प्रारंभिक जीवन उनके पिता झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन की राजनीतिक विरासत से प्रभावित था। हालांकि, शुरुआत में उन्हें अपने पिता के उत्तराधिकारी के रूप में नहीं देखा गया था। उनके बड़े भाई, दुर्गा सोरेन नामित उत्तराधिकारी थे। लेकिन, 2009 में उनकी असामयिक निधन के बाद हेमंत राजनीतिक सुर्खियों में आ गए। उन्होंने अपनी इंटरमीडिएट की पढ़ाई पटना हाई स्कूल से की और बाद में बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा, रांची में दाखिला लिया। हालांकि उन्होंने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी।
सोरेन ने अपना राजनीतिक करियर 2009 में राज्यसभा सदस्य के रूप में शुरू किया, लेकिन वहां उनका कार्यकाल अल्पकालिक रहा। उन्होंने 2010 में भाजपा के नेतृत्व वाली अर्जुन मुंडा सरकार में उपमुख्यमंत्री बनने के लिए इस्तीफा दे दिया। 2012 में यह गठबंधन टूट गया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया।
इस झटके के बावजूद सोरेन का झारखंड का नेतृत्व करने का संकल्प कभी कम नहीं हुआ। 2013 में कांग्रेस और राजद के समर्थन से सोरेन महज 38 साल की उम्र में राज्य के सबसे युवा सीएम बने। उनका पहला कार्यकाल अल्पकालिक था, क्योंकि 2014 में भाजपा ने सत्ता संभाली और सोरेन विपक्ष के नेता बन गए। उनके करियर में एक महत्वपूर्ण क्षण 2016 में आया जब भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने छोटानागपुर किरायेदारी अधिनियम और संथाल परगना किरायेदारी अधिनियम में संशोधन करने का प्रयास किया। सोरेन ने आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए एक बड़े आंदोलन का नेतृत्व किया, जिससे न केवल उन्हें व्यापक समर्थन मिला, बल्कि सत्ता में उनकी वापसी के लिए मंच भी तैयार हुआ।
2019 में सोरेन कांग्रेस और राजद के समर्थन से फिर मुख्यमंत्री बने। उनकी झामुमो ने 30 सीटें जीतीं थी। उनका यह कार्यकाल विवादों से भरा रहा। 2023 में वे भूमि घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उलझ गए। 31 जनवरी 2024 को सीएम पद से इस्तीफा देने के तुरंत बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। लगभग पांच महीने जेल में बिताने के बाद सोरेन को झारखंड हाई कोर्ट ने जमानत दे दी थी।
सोरेन ने लगातार कहा है कि उनकी गिरफ्तारी राजनीति से प्रेरित थी। वह अपनी सरकार को कमजोर करने के उद्देश्य से एक साजिश का शिकार थे। इन चुनौतियों के बावजूद राज्य की आदिवासी आबादी के लिए उनकी आवाज उनकी राजनीतिक पहचान के केंद्र में रही है। वह उन पहलों में सबसे आगे रहे हैं जिनका उद्देश्य आदिवासियों को सशक्त बनाना है। उनके नेतृत्व में राज्य सरकार ने ‘आपके अधिकार, आपकी सरकार, आपके द्वार’ योजना शुरू की, जिसने सरकारी सेवाओं को लोगों के दरवाजे तक पहुंचाया।
इसके अलावा, राज्य की पेंशन योजना का विस्तार और ‘मुख्यमंत्री मंइयां सम्मान योजना’ उनके प्रशासन के स्तंभ बन गए हैं। उनका दावा है कि सामाजिक कल्याण के प्रति उनकी सरकार की प्रतिबद्धता किसान ऋण माफी में भी स्पष्ट है, जिसका उद्देश्य 1.75 लाख से अधिक किसानों को लाभ पहुंचाना था। उनकी सरकार ने बकाया बिजली बिल भी माफ कर दिया और 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली प्रदान करने वाली योजना शुरू की।
अपने पूरे राजनीतिक जीवन में हेमंत सोरेन को भाजपा के तीव्र विरोध का सामना करना पड़ा है। उनकी राजनीतिक यात्रा भी पार्टी के आंतरिक संघर्षों से भरी रही है। ऐसी चुनौतियों के बावजूद उनका नेतृत्व लचीला बना हुआ है और राजनीतिक उथल-पुथल से निपटने की उनकी क्षमता ने उनकी स्थिति को और भी मजबूत किया है।