द न्यूज 15
लखनऊ। सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) ने उत्तर प्रदेश में किसानों की फसलों को तबाह कर रहे खुले पशुओं का मुद्दा उठाया है। पार्टी उत्तर प्रदेश शासन और प्रशासन से खुले पशुओं की व्यवस्था की मांग की जा रही है। पार्टी का कहना है कि उ.प्र. के नए प्रमुख सचिव के आदेश के अनुसार 1 से 10 जनवरी तक अभियान चला कर खुले पशुओं को पकड़ा जाना था। समस्या की गम्भीरता को देखते हुए यह अवधि एक हफ्ते के लिए बढ़ा दी गई। सोशलिस्ट किसान सभा 2020 जनवरी से खुले पशुओं को लेकर हरदोई, उन्नाव व बाराबंकी जिलों में अभियान चला रही है और खासकर हरदोई जिले के भरावन विकास खण्ड के तो कई गांवों से लोग पशुओं को लेकर लखनऊ योगी आदित्नाथ के घर बांधने के लिए निकले हैं। 1, 4 व 5 जनवरी को इस तरह के तीन कार्यक्रम लेने के बाद प्रशासन ने एक हफ्ते का समय मांगा। प्रशासन को यह बता दिया गया था कि यदि खुले पशुओं की कोई संतोषजनक व्यवस्था न हुई तो भरावन विकास खण्ड परिसर पर अनिश्चितकालीन धरना होगा और पशुओं को वहीं लाकर बंद किया जाएगा। इस बीच प्रदेश में विधान सभा चुनाव की घोषणा हो गई। 14 जनवरी को खण्ड विकास अधिकारी को सूचना देकर 18 जनवरी से अनिश्चितकालीन धरने की घोषणा हो गई। प्रशासन ने चुनाव आचार संहिता का हवाला देते हुए धरने की अनुमति नहीं दी, जो कभी मांगी ही नहीं गई थी। फिर सोशलिस्ट किसान सभा के सभी प्रमुख कार्यकर्ताओं को धरने में भाग न लेने की नोटिस दी गई और ग्रामीणों को घमकी दी गई कि वे धरने में न शामिल हों। संगठन का तर्क था कि संविधान के अनुच्छेद 21, जीने के अधिकार, जो मौलिक अधिकार है, के आलोक में किसान के लिए चुनाव आचार संहिता का पालन करने के बड़ी प्राथमिकता अपना खेत बचाना है।
भारी संख्या में पुलिस बल लगाकर 18 जनवरी को कार्यकर्ताओं को विकास खण्ड कार्यालय नहीं पहुंचने दिया गया। धारा 144 का उल्लंघन न होते हुए भी 20 कार्यकर्ताओं के खिलाफ दंड प्रकिया संहिता की धारा 107, 116 में मामला दर्ज हुआ जिसमें सबको जमानत लेने के लिए मजबूर किया गया। इसके अलावा सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के आगामी विधान सभा चुनाव में प्रत्याशी मुन्नालाल शुक्ल के ऊपर कठोर कार्यवाही करते हुए उन्हें रु. 2-2 लाख की दो जमानतें और करवानी पड़ीं। अब हरेक दो-तीन दिन पर तारीख लगाई जा रही है। 19 जनवरी, 22 जनवरी, 24 जनवरी, 27 जनवरी, 29 जनवरी के बाद 1 फरवरी को तारीख लगाई गई। स्पष्ट है कि मुख्य मुद्दे को हल करने के बजाए प्रशासन ने कानूनी कार्यवाही में उलझाने का काम किया है।
अजीब बात है कि हरदोई जिला प्रशासन अपने ही मुख्य सचिव के आदेश का पालन करने और खुले पशुओं का प्रबंध करने के बजाए चुनाव आचार संहिता की आड़ लेकर अब इस मुद्दे को उठाने वालों पर पाबंदियां लगा कर उनके खिलाफ मामला बना रहा है। जितनी ताकत और संसाधन 18 जनवरी के भरावन विकास खण्ड पर होने वाले धरने को रोकने के लिए लगा दिए गए यदि वह सारा पशुओं की व्यवस्था करने में लगते तो आम जनता को राहत मिल जाती।
इतना ही नहीं ग्राम प्रधानों पर दबाव बनाया गया कि गावों में लोगों द्वारा इस आशा में जो खुले पशु पकड़ कर रखे गए थे कि वे कहीं गौशाला में ले जाए जाएंग,े उन्हें छोड़ा जाए ताकि यह कहा जा सके कि कहीं कोई खुले पशु नहीं हैं। ग्राम प्रधानों से कहा गया कि वे लिख कर दें के उनके गांव में कोई खुले पशु नहीं हैं। प्रशासन कागज पर ठीक बना रहना चाहता है भले ही किसान के खेत में खुले पशु नुकसान करते रहें। इससे भारतीय जनता पार्टी की सरकार का किसान विरोधी रूख फिर सामने आ गया है।
हकीकत यह है कि खुले पशुओं की संख्या इतनी ज्यादा है कि प्रशासन इन्हें बनी हुई गौशालाओं में रख नहीं सकता और उसके पास इतने संसाधन नहीं कि सभी पशुओं को रखने के लिए गौशालाएं बनाई जा सकें। जब प्रशासन पर सोशलिस्ट किसान सभा दबाव बनाती है तो प्रशासन ग्राम प्रधानों पर अस्थाई गौशालाओं के निर्माण हेतु दबाव बनाता है। 2021 में उप जिलाधिकारी, सण्डीला ने ग्राम पंचायतों सैय्यापुर, महुवा डांडा, डांडा, जाजूपुर, बहेरिया, सागर गढ़ी व जगसरा में गौशाला बनाने का निर्णय लिया लेकिन किसी भी ग्राम पंचायत की भू-प्रबंधन समिति ने इस हेतु प्रस्ताव नहीं पारित किया क्योंकि वहां के ग्राम प्रधान इसके लिए तैयार नहीं हैं। ग्राम प्रधान इस बात से निश्चिंत नहीं हैं कि गौशाला बनाने के बाद सरकार उन्हें गौशाला चलाने के लिए पैसा देगी। संहगवा ग्राम प्रधान मोहम्मद सईद बताते हैं कि काफी दिन उन्हें अपने गांव की गौशाला अपने संसाधनों से चलानी पड़ी और जब पैसा आया भी तो पूरा नहीं। पैसे के अभाव में गाय भूखे मरने को मजबूर होती हैं। गौशाला की देखरेख करने वाले व्यक्ति को भी उसका मानदेय ठीक से नहीं मिलता। ऐसे में कुछ दिनों के बाद पशुओं को छोड़ दिया जाता है। समस्या ज्यों की त्यों बनी रहती है।
जब किसान पशुओं को लेकर योगी आदित्यनाथ के यहां जाने के लिए सड़क पर निकले तो पुलिस प्रशासन ने गाड़ियां मंगा कर पशुओं को गौशाला भेजने के लिए लदवाया। लेकिन गौशालाओं में जगह न होने और स्थानीय ग्रामीणों द्वारा बाहर से नए पशुओं को लाए जाने का विरोध करने के कारण इन पशुओं को बीच में कहीं उतार दिया जाता है। इस तरह एक गांव की समस्या दूसरे गांव पहुंचा दी जाती है।
जिला प्रशासन व उत्तर प्रदेश सरकार खुले पशुओं की समस्या निपटाने में पूरी तरह नाकाम रही है। अधिकारियों की समस्या को निपटाने में कोई रुचि नहीं है और न ही उनके पास पर्याप्त संसाधन हैं।
जब से योगी आदित्यनाथ की सरकार आई है और उसने गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की व तथाकथित गौरक्षकों का ताण्डव शुरू हुआ जिसमें किसी भी व्यक्ति के साथ जो गाय लेकर जा रहा हो के साथ मारपीट करना, यहां तक कि उसकी जान ले लेना, तो गायों की खरीद-बिक्री बंद हो गइ्र्र। तब से अनुपयोगी गोवंश आवारा घूमने लगे और किसानों के खेत चरने लगे। जब किसानों ने खेतों के बचाव के लिए ब्लेड वाले तार लगाए तो सरकार ने उसे ही प्रतिबंधित कर दिया। यानी खुले पशुओं का प्रबंधन करने के बजाए किसानों पर जुर्माना लगा कर उसे ही सजा देने की तैयारी कर ली।
सरकार का जो मूल उद्देश्य गाय को बचाना था वह तो पूरा होता दिखता नहीं। गाय या तो गौशालाओं में भूख से मर रही हैं अथवा सड़कों पर तेज चलने वाले वाहनों से टक्कर होने से। 8 जनवरी को 3 गाय भरावन विकास खण्ड के जखवा पावर हाऊस पर पशु चिकित्साधिकारी का इलाज चलते हुए मरीं जिन्हें जब बाड़े में करीब सौ गोवंश के साथ रखा गया तो खतरनाक जानवरों ने इनके ऊपर हमला कर दिया था। 12 जनवरी को हरदोई जिले में ही 35-40 गोवंश तेरवा घाट पर गोमती नदी के किनारे मरे पाए गए। इससे पहले कि कोई विविाद खड़ा हो अतरौली थाने की पुलिस ने आनन-फानन में इन्हें दफना दिया। हरदोई जिला प्रशासन ने बताया कि ये लाशें नदी में तैरते हुए वहां पहुंची थीं। लेकिन इनकी मृत्यु अभी भी रहस्य बनी हुई है। क्या गायों की इन मौतों के लिए हम सरकार की नीतियों व प्रशासन की संवेदनहीनता को जिम्मेदार नहीं ठहराएंगे? यह जानकारी पार्टी के सोशलिस्ट पार्टी किसान सभा के नेता मुन्नालाल शुक्ल, अशोक भारती, राम स्नेही अर्कवंशी, गंगेश गुप्ता, नसीम, राकेश, राहुल, राम भरोसे, कमलेश पाण्डेय ने दी।