शुभ दिन की शुभकामना, करो प्रिये स्वीकार। उन्नति पथ बढ़ते रहो, स्वप्न करो साकार

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घर-आँगन ख़ुशबू बसी, महका मेरा प्यार।
पाकर तुझको है परी, स्वप्न हुआ साकार॥
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मंजिल कोसो दूर थी, मैं राही अनजान।
पता राह का दे गई, तेरी इक मुस्कान॥
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मैं प्यासा राही रहा, तुम हो बहती धार।
अंजुली भर बस बाँट दो, मुझको प्रिये प्यार॥
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मेरी आदत में रमे, दो ही तो बस काम।
एक हाथ में लेखनी, दूजा तेरा नाम॥
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खत जब पहली बार का, देखूं जितनी बार।
महका-महका-सा लगे, यादों का संसार॥
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पंछी बनकर उड़ चले, मेरे सब अरमान।
देख बिखेरी प्यार से, जब तुमने मुस्कान॥
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आँखों में बस तुम बसे, दिन हो चाहे रात।
प्रिये तेरे बिन लगे, सूनी हर सौगात॥
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सजनी आकर बैठती, जब चुपके से पास।
ढल जाते हैं गीत में, भाव सब अनायास॥
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आँखों में सपने सजे, मन में जागी चाह।
पाकर तुमको है प्रिये, खुली हज़ारों राह॥
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तुम ही मेरा सुर प्रिये, तुम ही मेरा गीत।
तुम को पाकर हो गया, मैं जैसे संगीत॥
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तुमसे प्रिये जिंदगी, तुमसे मेरे ख्वाब।
तुम से मेरे प्रश्न हैं, तुम से मेरे जवाब॥
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बिन तेरे लगता नहीं, मन मेरा अब मीत।
हर पल तुमको सोचता, रचता ग़ज़लें गीत॥

डॉo सत्यवान सौरभ,
चिंतक, कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार।

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