घर-आँगन ख़ुशबू बसी, महका मेरा प्यार।
पाकर तुझको है परी, स्वप्न हुआ साकार॥
●●●
मंजिल कोसो दूर थी, मैं राही अनजान।
पता राह का दे गई, तेरी इक मुस्कान॥
●●●
मैं प्यासा राही रहा, तुम हो बहती धार।
अंजुली भर बस बाँट दो, मुझको प्रिये प्यार॥
●●●
मेरी आदत में रमे, दो ही तो बस काम।
एक हाथ में लेखनी, दूजा तेरा नाम॥
●●●
खत जब पहली बार का, देखूं जितनी बार।
महका-महका-सा लगे, यादों का संसार॥
●●●
पंछी बनकर उड़ चले, मेरे सब अरमान।
देख बिखेरी प्यार से, जब तुमने मुस्कान॥
●●●
आँखों में बस तुम बसे, दिन हो चाहे रात।
प्रिये तेरे बिन लगे, सूनी हर सौगात॥
●●●
सजनी आकर बैठती, जब चुपके से पास।
ढल जाते हैं गीत में, भाव सब अनायास॥
●●●
आँखों में सपने सजे, मन में जागी चाह।
पाकर तुमको है प्रिये, खुली हज़ारों राह॥
●●●
तुम ही मेरा सुर प्रिये, तुम ही मेरा गीत।
तुम को पाकर हो गया, मैं जैसे संगीत॥
●●●
तुमसे प्रिये जिंदगी, तुमसे मेरे ख्वाब।
तुम से मेरे प्रश्न हैं, तुम से मेरे जवाब॥
●●●
बिन तेरे लगता नहीं, मन मेरा अब मीत।
हर पल तुमको सोचता, रचता ग़ज़लें गीत॥
डॉo सत्यवान सौरभ,
चिंतक, कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार।