लक्षद्वीप के मिनिकॉय में बनने जा रहे है IAF फाइटर एयरबेस का जनरल बिपिन रावत कनेक्शन

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पीएम मोदी के हालिया लक्षद्वीप दौरे के बाद मालदीव से उसकी तुलना होने लगी है। लक्षद्वीप को पर्यटन के लिहाज से विकसित करने की बढ़ती मांग के बीच भारत वहां रणनीतिक लिहाज से बेहद अहम मिलिटरी बेस बनाने जा रहा है। ये रणनीति सीडीएस बिपिन रावत के दौर में तैयार की गई थी।

नई दिल्ली।  मालदीव बनाम लक्षद्वीप पर छिड़ी बहस और द्वीपीय देश के अब सस्पेंड हो चुके 3 मंत्रियों की सोशल मीडिया पर बदतमीजी के बीच भारत ने लक्षद्वीप के लिए गेम चेंजर प्लान बनाया है। लक्षद्वीप के सबसे दक्षिणी द्वीप मिनिकॉय में भारत जिस मिलिट्री बेस को बनाने की तैयारी कर रहा है, वह गेम चेंजर साबित होगा। इस द्वीप की भौगोलिक स्थिति उसे रणनीतिक लिहाज से बेहद अहम बनाती है। मिनिकॉय पर प्रस्तावित इंडियन एयरफोर्स के फाइटर एयरबेस का जनरल बिपिन रावत से खास कनेक्शन है।

मिनिकॉय द्वीप समूह अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से रणनीतिक लिहाज से बेहद अहम है। यह तिरुवनंतमपुरम से 425 किलोमीटर दूर स्थित है। इस मिलिटरी बेस का निर्माण भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का हिस्सा है। इसका मकसद समुद्री मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और अरब सागर को नॉन-स्टेट ऐक्टर्स के प्रभाव से मुक्त रखना है।

अंग्रेजी वेबसाइट हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये रणनीति जनरल बिपिन रावत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के कार्यकाल के दौरान ही आकार ली थी। सीडीएस रावत के दौर में ही सबसे पहले इस रणनीति पर चर्चा हुई थी। यह योजना बड़ी सुरक्षा रणनीति का एक हिस्सा है, जिसमें बंगाल की खाड़ी में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के सभी वायु और नौसेना ठिकानों को अपग्रेड करना भी शामिल है। फिलहाल मिनिकॉय द्वीप पर भारतीय नौसेना का एक छोटा दल तैनात है।

सुहेली पार द्वीप और मिनिकॉय के बीच 200 किलोमीटर चौड़ा नाइन-डिग्री चैनल यूरोप, मध्य-पूर्व, दक्षिण-पूर्व एशिया और उत्तरी एशिया के बीच खरबों डॉलर के व्यापारिक जहाजों का रास्ता है। यह मलक्का जलडमरूमध्य से आने-जाने वाले जहाजों के लिए श्रीलंका और दक्षिण हिंद महासागर क्षेत्र सहित एक महत्वपूर्ण मार्ग है। यहां तक कि स्वेज नहर और फारस की खाड़ी से इंडोनेशिया के सुंडा, लोम्बोक या ओम्बी-वेटार जलडमरूमध्य की ओर जाने वाले जहाजों को भी मिनिकॉय द्वीप और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के आसपास से गुजरना पड़ता है। ये यह बताने के लिए काफी है कि मिनिकॉय द्वीप की रणनीतिक अहमियत क्या है।

यह नौ-डिग्री का चैनल दस-डिग्री चैनल के साथ जुड़ता है, जो ग्रेट अंडमान को निकोबार द्वीप समूह से अलग करता है और मलक्का जलडमरूमध्य की ओर जाता है। जनरल रावत मुताबिक, कैंपबेल बे में एयरबेस के अपग्रेडेशन और मलक्का जलडमरूमध्य में प्रवेश करने का इंतजार कर रहे वैश्विक टैंकरों के लिए एक रिफिलिंग सुविधा का निर्माण राष्ट्रीय सुरक्षा योजना का हिस्सा था। इसे QUAD देशों की मदद से धीरे-धीरे लागू किया जा रहा है।

 

मिनिकॉय और कैंपबेल बे में एयरबेस से भारत को न केवल अरब सागर और हिंद महासागर में रणनीतिक बढ़त हासिल होगी बल्कि बल्कि 7500 किलोमीटर लंबी भारतीय तटरेखा को बाहरी खतरे से भी बचाने में मदद मिलेगी। इससे हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी युद्धपोतों पर बारीक नजर रखी जा सकेगी जो अदन की खाड़ी में समुद्री डकैतों के खिलाफ ऑपरेशन के लिए अक्सर आते रहते हैं।

सैन्य लिहाज से मिनिकॉय और कैंपबेल बे के मिलिटरी बेस हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की ताकत दिखाएंगे, क्योंकि वायु सेना के लड़ाकू विमान बीच हवा में ईंधन भरने की तकनीक का उपयोग करके पूरे अरब सागर को पूर्वी अफ्रीका तक कवर कर सकते हैं। इसी तरह इंडियन फाइटर जेट निकोबार द्वीप समूह में कैंपबेल बे से उड़ान भरने के बाद क्वाड सहयोगी ऑस्ट्रेलिया के तट तक पहुंच सकते हैं। अमेरिका से उच्च ऊंचाई वाले लंबी दूरी के हथियारबंद MQ-9B प्रीडेटर ड्रोन की मौजूदगी के साथ भारतीय क्षमता का और विस्तार होगा। मिनिकॉय और कैंपबेल बे में तीनों सेनाओं के संयुक्त सैन्य अड्डे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की विस्तारवादी चुनौतियों का सामना करने की भारत की रणनीति में गेम-चेंजर साबित हो सकते हैं।

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