संध्या बेला

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जया मीना

बूढ़े सूरज बाबा ओझल हुए क्षितिज की ड्योढ़ी से
संध्या सुंदरी उतरी नभ से तमस का काला जाल लिए
सिंदूरी वदन पर एक गुलाबी
मुस्कान लिए
बालों में गूंथे तारक पुष्प रहस्यों का मधुपान किए
लोट रहा पशु वृंद घर को
गौधूली वेला पर खग- विहग ने कलरव गान किए
नाद से रहा मधुर घंटियों का मंदिरो में
विद्युत दीप जल उठे गलियों में
उदित हुआ आकाश अंक में मयंक
गर्वित प्रेमी मुग्ध हुआ संध्या सुंदरी पर
देखो तो अब शाम किधर हैं!
छूप गयी हैं चांद की शुभ्र चादर में
सरोवर की शांत शयनिका पर
हंस युगल भी हुए रोमांचित और अनिल भी अधिक मस्त हो कर बह रहा हे शांत चांदनी चादर पर।

 

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