दशहरा देवी चामुंडा को है समर्पित या श्री राम को ?

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शारदीय नवरात्र से पूरे देश में Festive Season  की शुरुआत हो जाती है। कोलकाता की दुर्गा पूजा देश के साथ ही विदेश में भी मशहूर है। इसी तरह मैसूर का दशहरा अपने शाही अंदाज के लिए जाना जाता है। इस दिन तक चलने वाले इस त्योहार को देखने के लिए पर्यटक दूर-दूर से यहां आते हैं। मैसूर शहर अपने खानपान और खूबसूरती के लिए जाना जाता है। इस शहर में दशहरा पर्व के आयोजन की परंपरा शुरू हुए 500 साल बीत गए हैं। राज परिवार द्वारा शुरू की गई इस प्रथा को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अब राज्य सरकार ने ले ली है।

Mysore Palace During Dussehra

दशहरा देवी चामुंडा को समर्पित 
पूरा देश जहां दशहरा पर राम की रावण पर विजय का पर्व मना रहा होता है। वहीं मैसूर में दशहरा मां चामुंडा द्वारा राक्षस महिसासुर का वध करने पर मनाया जाने वाला पर्व है। 23 साल के यदुवीर राज कृष्णदत्ता चमराजा वाडेयार ने पहली बार मैसूर पैलेस में शाही दरबार लगाकर यदुवंशी वाडेयार राजघराने के अपने पुरखों की 500 साल पुरानी विरासत को शाही अंदाज में आगे बढ़ाया।

मैसूर में क्यों रावण नहीं बल्कि इस राक्षस के मारे जाने पर मनता है विश्व  प्रसिद्ध दशहरा - in mysore world famous dashahara celebreted not for  killing of ravana but for this
Chamunda Devi

श्रीकांतदत्ता नर्सिम्हाराजा वाडेयार की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी महारानी प्रमोदा देवी ने यदुवीर को गोद लेकर वाडेयार शाही परिवार की बागडोर थमाई। मैसूर में दशहरे के समय खूब रौनक लगती है। यहां 10 दिनों तक बहुत से सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। साथ ही फूड मेला, वुमेन दशहरा जैसे कार्यक्रम भी होते हैं।

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हाथियों पर निकलता है जुलूस 
विजयदशमी के दिन मैसूर की सड़कों पर जुलूस निकलता है। इस जुलूस की खासियत यह होती है कि इसमें सजे-धजे हाथी के ऊपर एक हौदे में चामुंडेश्वरी माता की मूर्ति रखी जाती है। सबसे पहले इस मूर्ति की पूजा मैसूर के Royal Couple करते हैं उसके बाद इसका जुलूस निकाला जाता है। यह मूर्ति सोने की बनी होती है साथ ही हौदा भी सोने का ही होता है। इस जुलूस के साथ म्यूजिक बैंड, डांस ग्रुप, आर्मड फोर्सेज, हाथी, घोड़े और ऊंट चलते हैं। यह जुलूस मैसूर महल से शुरू होकर बनीमन्टप पर खत्म होती है।

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elephants during dussehra in Mysore

वहां लोग बनी के पेड़ की पूजा करते हैं। माना जाता है कि पांडव अपने एक साल के गुप्तवास के दौरान अपने हथियार इस पेड़ के पीछे छुपाते थे और कोई भी युद्ध करने से पहले इस पेड़ की पूजा करते थे। इस मौके पर मैसूर महल के सामने एक प्रदर्शनी भी लगती है। दशहरा से शुरू होकर यह दिसंबर तक चलती है।

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– Taruuna Qasba 

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